COVID-19 & Children: बच्चों पर कोविड-19 का गंभीर असर नहीं हो सकता, रिसर्च
COVID-19 and children ताजा अध्ययन में दावा किया गया है कि कोरोना की तीसरी लहर आए भी तो बच्चों पर इसका गंभीर असर नहीं होगा। अगर बच्चे कोरोना से संक्रमित भी होंगे तो वे गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ेंगे।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। कोरोना वायरस की तीसरी लहर का खौफ़ हर किसी पर सवार है। माना जा रहा है कि इस लहर का कहर बच्चों पर पड़ सकता है। तीसरी लहर का टारगेट बच्चे हो सकते हैं, इसे लेकर पैरेंट्स से लेकर सरकार तक परेशान है। कोरोना की दूसरी लहर का शिकार युवा हुए हैं, और अब यह वायरस बच्चों को प्रभावित कर सकता है। बच्चों की हिफ़ाज़त के लिए सरकार और विशेषज्ञ पूरे इंतज़ाम में जुटे हैं। इन सब कयासों के बीच अब एक अध्ययन में यह बात सामने आई है की कोरोना की तीसर लहर आने पर भी बच्चों पर इस वायरस का उतना असर नहीं होगा।
12 साल की उम्र तक के बच्चों पर गंभीर असर का खतरा कम
जाने माने डॉक्टर्स और इंडियन पीडीऐट्रिक्स कोविड स्टडी ग्रुप द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक इस वायरस से अगर बच्चे संक्रमित भी होंगे तो वे गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ेंगे। अध्ययन के मुताबिक कोरोना से संक्रमित 12 साल तक के बच्चों में मृत्यु दर ना के बराबर होगी।
ज्यादातर बच्चों में हल्के लक्षण
यह अध्ययन पिछले साल नंवबर से लेकर इस साल मार्च के बीच किया गया था। अध्ययन में देश के पांच अस्पतालों में भर्ती 402 कोरोना पीड़ित बच्चों को शामिलकिया गया था, जिसमें यह निष्कर्ष सामने आया है कि बच्चों पर कोरोना का गंभीर असर नहीं होता।
अध्ययन में शामिल बच्चों की उम्र
अध्ययन के मुताबकि 12 साल तक के बच्चों में कोरोना से मरने की आशंका ना के बराबर है। अध्ययन में शामिल 45 बच्चे 1 साल से कम उम्र के थे, 118 बच्चे 1 से 5 साल तक के और 221 बच्चों की उम्र 5 से 12 साल के बीच थी। टीओआई में छपी खबर के मुताबिक अध्ययन में शामिल रहे डॉ. काना राम जाट का कहना है कि कोरोना पीड़ित बच्चों में सबसे सामान्य लक्षण बुखार के थे।
अध्ययन में शामिल बच्चों में लक्षण:
अध्ययन में शामिल 38 फीसदी बच्चों में बुखार के मामले पाए गए। अन्य लक्षणों में खांसी, गले में खराश, पेट दर्ज, उल्टी और दस्त होना शामिल है। वहीं एम्स की पैडियाट्रिक विभाग की असिस्टेंट प्रोफिसर झुमा शंकर ने बताया, 'स्टडी में शामिल बच्चों में ज्यादातर में हल्के लक्षण पाए गए, केवल 10 फीसदी में ही सामान्य से लेकर गंभीर लक्षण मिले।