Coronavirus Vaccine: कोरोना वायरस ही नहीं, इन बीमारियों के लिए भी नहीं बन सकी है वैक्सीन
Coronavirus Vaccine WHO के हेल्थ इमरजेंसी डायरेक्टर माइकल रेयान ने ये तक कह दिया है कि हमें इस वायरस के साथ रहना पड़ सकता है। ऐसा हुआ तो इस वायरस के साथ रहना विनाशकारी हो सकती है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Coronavirus Vaccine: दुनिया इस वक्त कोरोना वायरस के कहर से जूझ रही है। 2019 के अंत में शुरू हुआ ये वायरस आज दुनिया के लगभग सभी देशों में तेज़ी से फैल रहा है। ऐसे में करोड़ों लोग इस ख़तरनाक बीमारी से छुटकारा पाने के लिए वैक्सीन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। एक्सपर्ट्स की माने तो, वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया कितनी भी तेज़ कर दी जाए, ये अगले साल से पहले तैयार नहीं हो पाएगी। यहां तक कि ऐसा भी हो सकता है कि इसकी वैक्सीन कभी न बन पाए।
WHO के हेल्थ इमरजेंसी डायरेक्टर माइकल रेयान ने ये तक कह दिया है कि हमें इस वायरस के साथ रहना पड़ सकता है। ऐसा हुआ तो इस वायरस के साथ रहना विनाशकारी साबित हो सकता है क्योंकि सच्चाई तो यह है कि एक करोड़ से ज़्यादा लोग अब तक कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, वहीं, पांच से ज़्यादा लोग इस संक्रमण से अपनी जान गवां चुके हैं।
कब आएगी कोरोना वायरस की वैक्सीन?
अगर वैक्सीन का इतिहास देखा जाए, तो ऐसा भी हो सकता है कि कोविड-19 की वैक्सीन की तलाश सालों या दशकों तक चले। ऐसी कई बीमारियां हैं, जिनकी वैक्सीन के लिए सालों की कोशिशें बेकार गईं, वहीं कई बार नतीजे अच्छे भी आते हैं, जैसा कि इबोला के मामले में हुआ।
पहली बार इबोला के बारे में साल 1976 में पता चला था। तब इससे मरने वालों की मृत्यु दर 50 फीसदी थी। इस साल की शुरुआत तक इसकी कोई वैक्सीन नहीं बन पाई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन और कुछ देशों ने इसकी रोकथाम के लिए आख़िरकार एक वैक्सीन को मान्यता दे दी है। लेकिन, ऐसे कई जानलेवा वायरस हैं, जिनके लिए सालों बाद आज तक कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है।
एचआईवी
एचआईवी वायरस कोई नया नाम नहीं है, इसके बारे में पता चले तीस साल से ज़्यादा का समय हो चुका है। एचआईवी वायरस ही किसी व्यक्ति में एड्स का कारण बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एड्स की बीमारी की वजह से अब तक दुनिया भर में 3.2 करोड़ लोगों की जान जा चुकी है।
एचआईवी की वजह से लोगों को अपनी यौन आदतों को बदलना पड़ा क्योंकि एचआईवी का मुख्य कारण यौन संबंध ही है। आज करीब चार दशक बाद भी इसकी कोई दवा नहीं बन पाई है। पूरी दुनिया में चार करोड़ लोग इससे प्रभावित हो चुके हैं। हालांकि, इसके असर और इससे बचने का तरीका सिर्फ परहेज़ है, जिससे इससे संक्रमित इंसान एक सामान्य जीवन जी सके।
एवियन इंफ्लूएंज़ा
90 के दशक के आख़िरी दौर से लेकर अब तक दो तरह के एवियन इंफ्लूएंज़ा के मामले सामने आए हैं। अभी तक कई लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं और कई मारे भी जा चुके हैं। ये संक्रमण चिड़ियों के मल से इंसानों में फैलता है। 1997 में H5N1 वायरस का सबसे पहले हांगकांग में पता चला था। उस वक्त वहां बड़े पैमाने पर मुर्गियों को मारा गया था।
MERS
मर्स-कोव यानी मिडल ईस्ट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम, भी एक तरह का कोरोना वायरस ही है। इसके बारे में सबसे पहले साल 2012 में पता चला था। इस वायरस से जो बीमारी होती है उसे मर्स कहा जाता है। इस बीमारी का मृत्यु दर भी काफी ज़्यादा है। नवंबर 2019 तक पूरी दुनिया में इस वायरस से 2494 लोग संक्रमित हुए। इनमें से 858 लोगों की मौत हो गई थी।
इस वायरस के बारे में सबसे पहले सऊदी अरब में पता चला था लेकिन उसके बाद से 27 देशों में यह वायरस पाया जा चुका है। इनमें मध्य पूर्व के 12 देश शामिल हैं। मूल तौर पर जानवरों से इंसानों में इस वायरस का संक्रमण होता है। अरबी ऊंट को इस वायरस का मुख्य स्रोत माना जाता है।
SARS
सार्स एक तरह का कोरोना वायरस ही है। इसका सबसे पहला मामला साल 2003 में सामने आया था। अभी तक इस पर जितना शोध हुआ है, इसमें ये पाया गया कि SARS चमगादड़ों से इंसान में फैलता है। चीन के गुआंगजू इलाके में साल 2002 में इसके संक्रमण का पहला मामला सामने आया था। इस वायरस की वजह से सांस लेने की गंभीर समस्या होती है। 2003 में 26 देशों में इससे करीब 8000 से ज़्यादा लोग संक्रमित हुए थे। हालांकि, उसके बाद से इसके संक्रमण के कम ही मामले सामने आए हैं।