भारतीय वैज्ञानिकों ने कैंसर पैदा करने वाला एपस्टीन-बार वायरस की खोज की

वैज्ञानिकों ने कैंसर के लिए जिम्मेदार वायरस की खोज की है जिसका नाम एपस्टीन-बार वायरस है। इस वायरस की मदद से वैज्ञानिक कैंसर के रूप को समझने में कामयाब होंगे। यह कैसे ब्रेन को इंफेक्ट करता है उसका भी पता लगाएंगे।

By Shahina Soni NoorEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 08:13 PM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 08:59 PM (IST)
भारतीय वैज्ञानिकों ने कैंसर पैदा करने वाला एपस्टीन-बार वायरस की खोज की
भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी रिसर्च की है जिससे कैंसर कोशिकाओं को समझने में मदद मिलेगी।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी रिसर्च की है जिससे कैंसर कोशिकाओं को समझने में मदद मिलेगी। यह रिसर्च भविष्य में कैंसर के इलाज में बेहद मददगार साबित होगी। वैज्ञानिकों ने कैंसर के लिए जिम्मेदार वायरस की खोज की है जिसका नाम एपस्टीन-बार वायरस है। इस रिसर्च से वैज्ञानिक यह समझने में कामयाब होंगे कि वायरस का स्वरूप कैसा है और यह किस तरह ब्रेन को प्रभावित करता है।

एपस्टीन-बार वायरस

वैज्ञानिकों ने हाल ही में पाया है कि कैंसर पैदा करने वाला वायरस एपस्टीन-बार वायरस (ईबीवी) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में ग्लियाल कोशिकाओं या गैर-तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करता है और फॉस्फो-इनोसिटोल्स (पीआईपी) जैसे अणुओं को बदल देता है। यह सेल्स सैंट्रल नर्वस सिस्टम में पट जाते हैं जिसे नॉन सेंट्रल सेल्स कहते हैं। यह वायरस सेंट्रल नर्वस सिस्टम के सेल्स को फोस्फो इनिसिटोल मोलिक्यूल में बदल देते हैं। यह मोलीक्यूल बासा ग्लियालसिरोल और कोलोस्ट्रोल की तरह और मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसे न्यूरोलॉजिकल विकारों से पीड़ित रोगियों के मस्तिष्क के ऊतकों में वायरस का पता लगाने में मदद करेंगे।

कैंसर पैदा करने वाले वायरस की खोज

भारतीय वैज्ञानिकों के मुताबकि कैंसर पैदा करने वाला वायरस एपस्टीन-बार वायरस ब्रेन में प्रवेश करके (ईबीवी) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में ग्लियाल कोशिकाओं या गैर-तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करता है और फॉस्फो-इनोसिटोल्स (पीआईपी) जैसे अणुओं को बदल देता है।

रिसर्च ने दिखाया नया रास्ता

यह रिसर्च न्यूरोडीजेनेरेटिव पैथोलॉजी में वायरस की संभावित स्थिति को समझने की दिशा में एक नया रास्ता दिखाती है। यह वायरस अल्जाइमर और पार्किंगसन रोगियों में भी पाया जाता है लेकिन जब यह दिमाग में पहुंच जाता है तो फॉस्फो इंसीटोल मोलिक्यूल में बदल जाता है जो कैंसर का कारण है। यह वायरस ईबीवी नासॉफिरिन्जियल कार्सिनोमा (एक प्रकार का सिर और गर्दन का कैंसर), बी-सेल (एक प्रकार का श्वेत रक्त कोशिकाएं) कैंसर, पेट का कैंसर, बर्केट का लिंफोमा, हॉजकिन का लिंफोमा, पोस्ट-ट्रांसप्लांट लिम्फोइड विकार, और इसी तरह के कैंसर का कारण बन सकता है।

यह रिसर्च आईआईटी इंदौर और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पैथोलॉजी नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने मिलकर की है। 

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