Kerala's White & Gold Saree: केरल में क्यों पहनी जाती है सफेद और गोल्ड साड़ी, जानें इसका इतिहास

White Gold Kerala Saree इस साड़ी को मलयाली समुदाय मंदिरों शादी और अंतिम संस्कारों पर पहनता है। आज कई सालों बाद भी इस बेहद पुराने शिल्प को किसी नए डिज़ाइन की ज़रूरत नहीं है।

By Ruhee ParvezEdited By: Publish:Sun, 15 Dec 2019 08:00 AM (IST) Updated:Mon, 16 Dec 2019 05:39 PM (IST)
Kerala's White & Gold Saree: केरल में क्यों पहनी जाती है सफेद और गोल्ड साड़ी, जानें इसका इतिहास
Kerala's White & Gold Saree: केरल में क्यों पहनी जाती है सफेद और गोल्ड साड़ी, जानें इसका इतिहास

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। White & Gold Kerala Saree: बेशुमार पैटर्न्स और बोल्ड रंगों से भरे भारत जैसे देश का एक हिस्सा केरल वह शहर है, जहां पारंपरिक कासवु साड़ी की अपनी शान है और वह भीड़ में बिल्कुल अलग दिखती है। यह साड़ी दिखने में भले ही बिल्कुल सिम्पल हो, लेकिन इसके साथ जुड़ी है एक बेहद पुरानी सांस्कृतिक विरासत और अनोखी कला। इस साड़ी को मलयाली समुदाय मंदिरों, शादी और अंतिम संस्कारों के मौके पर पहनता है। आज, कई सालों बाद भी इस बेहद पुराने शिल्प को किसी नए डिज़ाइन की ज़रूरत नहीं है।

कासवू साड़ी क्या है?

कासवू शब्द का मतलब दरअसल, केरल की इस साड़ी के बॉर्डर में इस्तेमाल की जाने वाली ज़री है और साड़ी से नहीं। इस साड़ी बनाते हुए जिस सामग्री इस्तेमाल किया जाता है ये उसका नाम है। इसी तरह, जब कासवु मुंडू (धोती) का हिस्सा बन जाता है, तो इसे कासवु मुंडू कहा जाता है।

केरल में, साड़ी, मुंडू (धोती) और सेतु मुंडू (एक टू-पीस साड़ी) जैसे पारंपरिक पोशाक को आम तौर पर कैथारी, यानी हथकरघा कहा जाता है। साड़ी की पहचान आमतौर उसकी बनावट और काम से तय होती है। केरल में तीन समूह हैं जिन्हें भारत सरकार द्वारा भौगोलिक संकेत टैग दिए गए हैं, और ये सभी कस्टर्स कसावा साड़ी के लिए जाने जाते हैं। सफेद केरल की साड़ियां जिसमें गोल्ड की जगह कासु बॉर्डर रंगीन होता है उसे कारा कहा जाता है। ये तीन प्रसिद्ध समूह हैं बालारामपुरम, चेन्दामंगलम और कुथमपुल्लि।

कहां से हुई शुरुआत? 

इतिहास देखा जाए तो केरल में साड़ी पहनने की परंपरा नहीं थी। इसकी जगह था मुंडू। पुरुष हों या महिलाएं, सभी कमर से नीचे मुंडू पहना करते थे और उसके ऊपर कुछ नहीं। किसी को भी शरीर के ऊपरी हिस्से को ढकने की ज़रूरत नहीं थी। इसके उलट, कई जगहों पर महिलाओं को अपने ऊपरी शरीर को ढकने की अनुमति नहीं थी, और ऐसा करने पर उन्हें टैक्स देना पड़ता था। 

हालांकि, उपनिवेशवाद के बाद, महिलाओं ने अपने ऊपरी शरीर पर एक अगवस्त्र यानी एक शॉल के समान कपड़ा पहनना शुरू कर दिया था। और इस तरह मुंडू टू-पीस सेतु मुंडू में बदल गया। लोग कमर में एक मुंडू पहनते हैं, और दूसरे को साड़ी के पल्लू की तरह ओढ़ते हैं। सिंगल-पीस साड़ी काफी समय बाद आई, जिसके बाद ब्लाउज़ की लोकप्रियता बढ़ गई। यह पहला सिला हुआ कपड़ा था जो केरल के लोगों ने पहना था।

chat bot
आपका साथी