78 की उम्र में देश के लिए दौड़ रहे कोल्हान के दद्दू, 100 से अधिक मैराथन में ले चुके हैं भाग

दौड़ने का शौक तो उन्हें बचपन से ही था, लेकिन पहली बार चाईबासा टाटा कालेज में पढ़ाई के दौरान वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता में एक पदक जीता।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Sun, 18 Nov 2018 11:35 AM (IST) Updated:Sun, 18 Nov 2018 11:53 AM (IST)
78 की उम्र में देश के लिए दौड़ रहे कोल्हान के दद्दू, 100 से अधिक मैराथन में ले चुके हैं भाग
78 की उम्र में देश के लिए दौड़ रहे कोल्हान के दद्दू, 100 से अधिक मैराथन में ले चुके हैं भाग

चाईबासा, सुधीर पांडेय। उम्र 78 साल, मगर जीने की भरपूर चाह। युवाओं वाला जोश। उम्र के इस पड़ाव में भी हौसले जरा भी कम नहीं। बुजुर्ग टिपरिया तियु आज भी देश के लिए दौड़ रहे हैं। पदकों की झड़ी लगा रहे हैं। टिपरिया राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की 100 से ज्यादा मैराथन रेस जीत कर देश का नाम रोशन कर चुके हैं।

इस उम्र में टिपरिया तियु के जज्बे को देख कर झारखंड के कोल्हान प्रमंडल के अनेक युवा न सिर्फ मैराथन के क्षेत्र में प्रेरित हुए हैं, बल्कि आगे चलकर उनके जैसा बनना चाहते हैं। चाईबासा शहर के डालियामर्चा निवासी टिपरिया तियु को कोल्हान प्रमंडल के बच्चे प्यार से दद्दू पुकारते हैं। वर्तमान में वे क्षेत्र के बच्चों को धावक बनाने में लगे हुए हैं।

इस तरह बन गए धावक

टिपरिया बताते हैं कि दौड़ने का शौक तो उन्हें बचपन से ही था, लेकिन पहली बार चाईबासा टाटा कालेज में पढ़ाई के दौरान वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता में एक पदक जीता। इसके बाद तो हौसला परवाज भरने लगा। उस समय वे 400 मीटर, 800 मीटर व 1500 मीटर की दौड़ प्रतियोगिता में अव्वल रहे थे। टाटा स्टील कंपनी में नौकरी के दौरान वर्ष 2000 में नौवीं एशियन वेटरन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक जीता।

वरीय स्पोट़र्स ऑर्गेनाइजर के पद से एक अगस्त 2001 में सेवानिवृत हुए। उस समय तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई एथलेटिक्स मीट में विजेता रहे। सेवानिवृत्त होने के बाद वर्ष 2006 तक किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया। उसी दौरान कुछ प्रशंसकों ने फिर से दौड़ने के लिए प्रेरित किया। तब से आजतक दौड़ते आ रहे हैं।

अब बच्चों को दे रहे ट्रेनिंग 

टिपरिया तियु अब तक 105 पदक जीत चुके हैं। उनके पुत्र नोवामुंडी टाटा स्टील में कर्मचारी हैं। 2008 से नोवामुंडी स्थित फीडर सेंटर एथलेटिक डिविजन में बच्चों को ट्रेनिंग देनी शुरू की। पर कंपनी ने जून 2018 में ट्रेनिंग सेंटर को बंद कर दिया। इस वजह से अब वहां ट्रेनिंग नहीं हो रही। सो गांव आकर बच्चों को दौड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। करीब एक दर्जन बच्चे हर दिन उनके साथ दौड़ते हैं। सुबह पांच से सात बजे तक रोजाना पांच से दस किलोमीटर दौड़ लगाते मिल जाएंगे दद्दू। वे कहते हैं, जब तक सेहत साथ देगी, दौड़ता रहूंगा। दरअसल, दौड़ने से ही मैं जिंदा हूं..।

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