ओडिशा की लकड़ियों से मुक्तिधाम में मुक्ति
पश्चिमी सिंहभूम जिले के बड़ाजामदा वन विभाग डिपो से लोगों को दाह संस्कार के लिए पिछले छह महीने से लकड़ी देना बंद कर दिया गया है। लकड़ी के अभाव में दाह संस्कार के लिए पड़ोसी राज्य ओडिशा पर लकड़ी के लिए निर्भर रहना पड़ रहा है।
संसू, नोवामुंडी : पश्चिमी सिंहभूम जिले के बड़ाजामदा वन विभाग डिपो से लोगों को दाह संस्कार के लिए पिछले छह महीने से लकड़ी देना बंद कर दिया गया है। लकड़ी के अभाव में दाह संस्कार के लिए पड़ोसी राज्य ओडिशा पर लकड़ी के लिए निर्भर रहना पड़ रहा है। एशिया प्रसिद्ध सारंडा जंगल से सटे बड़ाजामदा शहरी क्षेत्र में इन दिनों दाह संस्कार के लिए लकड़ियों का जुगाड़ करना लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। ओडिशा के वन विभाग से लकड़ी लेने के लिए वहां के किसी परिचित व्यक्ति के आधार कार्ड को दिखाना पड़ता है। यदि वह व्यक्ति आधार कार्ड देने से मना कर दिया तो समझ जाइए आपको लकड़ी मिलना संभव नहीं है। लकड़ी के अभाव में कई लोग तो गड्ढे खोदकर शव को दफना कर औपचारिकता पूरी कर चुके हैं। हाल ही के दिन रामकुमार यादव की मां का निधन के समय भी 1500 रुपये खर्च करके ओडिशा फारेस्ट विभाग के डिपो से लकड़ी खरीदकर दाह संस्कार किया गया था। बड़ाजामदा अस्पताल चौक में वन विभाग का डिपो है परंतु डिपो में दाह संस्कार के लिए लकड़ी उपलब्ध नहीं है। पुराने डाकघर मुहल्ले के निकट भी लकड़ी के बिना वन विभाग की जमीन खाली पड़ी है। वन विभाग से पूछताछ करने पर यह कहकर चुप्पी साध लेते हैं कि ऑनलाइन के माध्यम से लकड़ी का ऑक्शन हो रहा है। इसके लिए डिपो से लकड़ी उपलब्ध कराना संभव नहीं है। भाजपा सारंडा मंडल संयोजक विनोद साहू ने बताया कि डिपो से जलावन लकड़ी तक नसीब नहीं हो रही है। ऐसे स्थिति में विभाग से दाह संस्कार के लिए लकड़ी की उम्मीद करना व्यर्थ है। फारेस्ट विभाग केवल जंगलों से सूखे जलावन लकड़ी लेने वाले गरीबों को जेल भेजने तक सीमित है। भाजपा सारंडा मंडल उपाध्यक्ष मनोज सुल्तानिया ने बताया कि झारखंड के लोगों को शव दाह संस्कार के लिए ओडिशा राज्य की लकड़ियों पर आश्रित हैं, इससे बड़ा और क्या आश्चर्य हो सकता है। यदि हम जंगल की सूखी लकड़ी काटकर दाह संस्कार करते हैं तो विभाग वन अधिनियम की धारा लगाकर जेल भेज देता है।