मां दुर्गा के दर्शन कर भक्त मांग रहे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद

पश्चिम सिंहभूम समेत जिले के कई हिस्सों में दुर्गा पूजा का प्रारंभ षष्ठी पूजा के साथ हो गया है। पूजा समितियों द्वारा शुक्रवार को नदी तालाब व पोखर से घट लाकर मां दुर्गा सप्तमी पूजा का शुभारंभ किया गया। हिदू कैलेंडर के अनुसार शारदीय नवरात्रि के समय में ही दुर्गा पूजा का उत्सव भी मनाया जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Oct 2020 09:24 PM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 05:09 AM (IST)
मां दुर्गा के दर्शन कर भक्त मांग रहे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद
मां दुर्गा के दर्शन कर भक्त मांग रहे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद

जागरण संवाददाता, चाईबासा : पश्चिम सिंहभूम समेत जिले के कई हिस्सों में दुर्गा पूजा का प्रारंभ षष्ठी पूजा के साथ हो गया है। पूजा समितियों द्वारा शुक्रवार को नदी, तालाब व पोखर से घट लाकर मां दुर्गा सप्तमी पूजा का शुभारंभ किया गया। हिदू कैलेंडर के अनुसार शारदीय नवरात्रि के समय में ही दुर्गा पूजा का उत्सव भी मनाया जाता है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा का शुभारंभ होता है और दशमी के दिन समापन होता है। शारदीय नवरात्रि की षष्ठी से दुर्गा पूजा का आगाज होता है। दुर्गा पूजा 5 दिन षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के समय में मां दुर्गा के ही नव स्वरूपों की पूजा की जाती है। जिसमें षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा के प्रारंभ से मां दुर्गा के साथ माता लक्ष्मी, माता सरस्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा के प्रथम दिन मां की मूर्ति स्थापित की जाती है, प्राण प्रतिष्ठा होती है और 5वें दिन उनका विसर्जन किया जाता है। बता दें कि कोरोना काल होने के कारण चाईबासा सहित जिले के अन्य जगहों में बड़े व थीम आधारित पंडालों का निर्माण नहीं किया गया है, लेकिन मां दुर्गा की आस्था का प्रतीक है कि छोटा पंडाल बनाकर मां दुर्गा को स्थापित किया गया है। मां दुर्गा के दर्शन के लिए भक्त शुक्रवार यानि सप्तमी से पंडालों में दर्शन के लिए पहुंचने लगे हैं। पंडालों में पूजा समितियां तामझाम छोड़कर साधारण तरीके से पूजा को संपन्न कराने में लगी हैं। -------------------------

दुर्गा बलिदान के रूप में दी जाती कोहणा बलि

दुर्गा बलिदान का तात्पर्य दुर्गा पूजा के समय दी जाने वाली कोहणा बलि से है। यह हमेशा नवरात्रि की नवमी तिथि को दी जाती है। बलिदान के लिए दोपहर का समय अच्छा माना गया है। हालांकि अब लोग पशु बलि की जगह सब्जियों के साथ सांकेतिक बलि भी देते हैं।

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--- सिदूर खेला ----

जिस दिन मां दुर्गा को विदा किया जाता है यानी जिस दिन प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। उस दिन चाईबासा समेत पूरे जिले के दुर्गा पूजा पंडाल में सिदूर खेला या सिदूर उत्सव होता है। यह विदाई का उत्सव होता है। इस दिन सुहागन महिलाएं पान के पत्ते से मां दुर्गा को सिदूर अर्पित करती हैं। इसके बाद एक-दूसरे को सिदूर लगाती हैं और उत्सव मनाती हैं। एक-दूसरे के सुहाग की लंबी आयु की शुभकामनाएं भी देती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि मां दुर्गा नौ दिन तक मायके में रहने के बाद ससुराल जा रही हैं, इस अवसर पर सिदूर उत्सव मनाया जाता है।

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