Jharkhand Assembly Election 2019 : भाजपा के बागी प्रत्याशी ने बनाया मझगांव चुनाव को त्रिकोणात्मक
नया चेहरा और वोटों के बिखराव का झामुमो को मिल सकता लाभ हर बार विधायक बदलने वाले इस क्षेत्र में दो ही चेहरे रहे हैं खास
मझगांव (एम. अखलाक)। तवा पर रोटी पलटते रहिए, वरना जल जाएगी- डा. राममनोहर लोहिया के इस सियासी फार्मूले पर विधायक चुनने वाला पश्चिम सिंहभूम जिले का मझगांव विधानसभा क्षेत्र चुनावी रफ्तार पकड़ रहा हैै।
बीस साल से सिर्फ दो नेताओं के इर्द-गिर्द घूम रही यहां की सियासत में इसबार क्या होगा, वोटर थोड़ा असमंजस में हैं। जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आएगी, असमंजस के बादल भी छंटते जाएंगे। तस्वीर पूरी तरह साफ हो जाएगी। यह इलाका सियासी रूप से थोड़ा अधिक जागरूक रहा है। इसलिए गांवों में भले ही दबी जुबान से चर्चा हो रही हो, कस्बाई दुकानों पर वोटर खुलकर गणित समझा रहे हैं। यहां दुकानें राजनीति की पाठशाला बन गई हैं।
चाईबासा-मझगांव रोड से होते हुए मंझारी चौक पर पहुंचकर नाश्ते की दुकान पर गुल्लगुल्ला का स्वाद चखते हुए इसे कोई भी महसूस कर सकता है। इसी दुकान पर बैठे सेलाडीह गांव के श्रीराम बिरुवा और हरिश्चंद्र केसरी बताने लगे कि यहां एकबार झामुमो तो दूसरी बार भाजपा को लोग चुनते रहे हैं। इसबार मौसम भाजपा के अनुकूल था, लेकिन बड़कुवर गागराई के बागी प्रत्याशी हो जाने और भूषण पाट पिंगुवा जैसे नए और स्थानीय चेहरा उतार दिए जाने से गणित बिगड़ता दिख रहा है। यदि प्रत्याशी ही बदलना था तो पार्टी को यह काम साल भर पहले कर देना चाहिए था। इस बात से एकराय रखते दूसरे वोटर तर्क देते हैं- देखिए, लोकसभा चुनाव में भाजपा के लक्ष्मण गिलुवा इसलिए इस क्षेत्र से चुनाव हार गए क्योंकि उन्हें कोई पहचानता ही नहीं था। इसबार भी नए प्रत्याशी का कार्यकर्ताओं से कनेक्शन नहीं बन पाया है।
पार्टी सिम्बल और बागी प्रत्याशी के बीच वोट बिखरते नजर आ रहे हैं। एक और फैक्टर यह कि कांग्रेस-झामुमो गठबंध की गीता कोड़ा को गत लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र से काफी बढ़त मिली थी। भाजपा के समक्ष यह भी गंभीर चुनौती होगी। नीलचक्रपदा गांव के अजीत कुमार कहते हैं कि झामुमो विधायक निरल पूरती के खाते में बस एक ही उल्लेखनीय काम दर्ज है।
विधानसभा में आवाज उठाकर तोरलो डैम का निर्माण करा दिया। इससे मंझारी और तांतनगर प्रखंड में सिंचाई की सुविधा हो गई। एंटी इन कंबेंसी पर यह काम भारी पड़ेगा। रास्ते में पड़ने वाले बड़बिल गांव के सुधन्यो बेहरा को उम्मीद है कि यहां लड़ाई त्रिकोणात्मक हो सकती है। झामुमो के निरल पूरती, भाजपा के भूषण पाट पिंगुवा और बागी बनकर भारतीय आजाद सेना से मैदान में उतरे बड़कुवर गागराई के बीच।
मंझारी प्रखंड के तुंगा गांव के युवा और बुजुर्ग वोटर भी यही गणित और सीन समझाते हैं। ओड़िशा सीमा पर बसे इस गांव के लोग इलाज के लिए 15 किलोमीटर दूर मंझारी स्वास्थ्य केंद्र नहीं जाकर एक किलोमीटर दूर ओडिशा के मनबीर जाना पसंद करते हैं। कहते हैं कि सड़क बेहद खराब है, अपने यहां स्वास्थ्य केंद्र में सुविधा ही नहीं है। पास में करंजो नदी पार किया और पहुंच गए ओड़िशा। ग्रामीणों की पीड़ा है कि यहां विधायक कभी आते ही नहीं। आशीष कुमार गागराई, लालमुनी बारीक और सुपाय भूमिज कहते हैं कि नदी से पाइप के सहारे पानी गांव में पहुंच जाए तो खेत-खलिहान चहक उठेंगे।
सब्जी की खेती से लोग अपनी बेरोजगारी दूर कर लेंगे। इसबार जो इस मुद्दे पर बात करेगा, उसे ही गांव एकमुश्त वोट करेगा। वोटर प्रत्याशियों के गांव आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
खैर, मंझारी भरभरिया रोड होते हुए कुमारडुंगी के रास्ते मझगांव पहुंचते ही यहां की सियासी तस्वीर थोड़ी और साफ हो जाती है। यहां के वोटर कुछ ज्यादा ही मुखर हैं।सड़क किनारे देखते ही देखते अच्छी जुटान हो गई। मानकी मुंडा संघ के अध्यक्ष युगल किशोर पिंगुवा समझाने लगे कि यहां झामुमो का चेहरा पुराना है और भाजपा के नया। नया चेहरा भले ही मझगांव का स्थानीय है, लेकिन बाकी गांवों में तो पहचान का संकट है। ऐसे में भाजपा के बागी प्रत्याशी चुनाव के आखिर तक आर-पार का टक्कर देते नजर आ सकते हैं। उनका इशारा बड़कुवर गागराई की ओर था।
मैंने भीड़ से पूछा- इनकी बात से कितना इत्तफाक रखते हैं। मो. असरार अहमद, लक्ष्मण चातर, दिलवर हुसैन, रवीन्द्र गोराई समेत सबने समवेत स्वर में कहा- ठीक कह रहे हैं। फिर रवीन्द्र गोराई ने कहा- इसबार बहुत कम वोटों से हार-जीत होगी। वोट के बिखराव के साथ युवा वोटरों का पलायन भी इसका कारण होगा। इसी बीच गोविंद महरना सलाह देते हुए बोल पड़े- आजतक मझगांव से एक भी आदमी विधायक नहीं बना है। भूषण पाट पिंगुवा को भाजपा ने उतारा है तो कोई नजरअंदाज भी नहीं करेगा, बाकी उनका भाग्य...। शब्बीर अहमद बात काटते हुए दो टूक बोले- आदिवासी समाज के बीच जल, जंगल, जमीन बड़ा मुद्दा है। यह भी बहुत कुछ तय करेगा।
तभी भीड़ से किसी ने कहा- सरकार की योजनाएं जमीन पर ठीक से नहीं उतार पा रही हैं। स्कूल में शिक्षक नहीं, अस्पताल में डाक्टर नहीं, खेत में पानी नहीं, गांव में रोजगार नहीं...., आजादी के बाद कहां बदला है गांव। चुनाव लड़ने वालों को मुद्दों से कोई मतलब ही नहीं। बहरहाल, एक लाख 92 हजार वोटरों में सर्वाधिक 98 हजार महिला वोटरों वाले इस विधानसभा क्षेत्र से जदयू के सालखन मुर्मू और आजसू पार्टी के नंदलाल बिरुवा भी मैदान में उतरे हैं। लड़ाई जब परवान चढ़ेगी तो इनकी भूमिका क्या होगी, इस पर वोटरों की भी नजर रहेगी।