तिरुलडीह गोलीकांड का अड़तीस साल बाद भी नहीं हुआ खुलासा

संवाद सूत्र चांडिल ईचागढ़ के तत्कालीन प्रखंड मुख्यालय तिरूलडीह में 21 अक्टूबर 1982 को हुए

By JagranEdited By: Publish:Wed, 21 Oct 2020 01:36 AM (IST) Updated:Wed, 21 Oct 2020 05:16 AM (IST)
तिरुलडीह गोलीकांड का अड़तीस साल बाद भी नहीं हुआ खुलासा
तिरुलडीह गोलीकांड का अड़तीस साल बाद भी नहीं हुआ खुलासा

संवाद सूत्र, चांडिल : ईचागढ़ के तत्कालीन प्रखंड मुख्यालय तिरूलडीह में 21 अक्टूबर 1982 को हुए गोलीकांड का 38 साल बाद भी खुलासा नहीं हो पाया है। ऐसे इस घटना में मारे गए क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के दो सदस्य चौका के कुरली निवासी व सिंहभूम कॉलेज चांडिल के छात्र अजीत महतो एवं ईचागढ़ के आदरडीह गांव निवासी धनंजय महतो की याद में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला शहादत दिवस महज औपचारिकता ही रह गया है। सरकार ने इस घटना को तवज्जो नहीं दिया। बिहार सरकार से तो लोगों को उम्मीद नहीं थी लेकिन झारखंड अलग राज्य गठन के बाद इस मामले में न्याय की उम्मीद जगी थी जोकि सरकार की उदासीनता के चलते धूमिल होती जा रही है।

बता दें, यह गोलकांड उस समय हुआ था जब मोर्चा का एक प्रतिनिधिमंडल अंचलाधिकारी के कार्यालय में विभिन्न मांगों को लेकर अधिकारी से लिखित आश्वासन ले रहा था। मोर्चा के सदस्य समझ नहीं पाए कि गोली कैसे और किसके आदेश से चली, जबकि अंचलाधिकारी खुद कार्यालय में मौजूद थे।

घटना के बाद प्रखंड मुख्यालय में मौजूद 42 लोगों को हिरासत में ले लिया गया था। हालांकि, आंदोलन के कारण हिरासत में लिए लोगों को छोड़ना पड़ा था। तत्समय घटना की जांच के लिए एक टीम गठित की गई थी जिसकी रिपोर्ट अबतक सार्वजनिक नहीं की गई है। सरकार भी अब तक नहीं बता पाई है कि घटना के लिए जिम्मेदार कौन हैं? वक्त के साथ-साथ लोग मायूस होते गए लेकिन हर साल 21 अक्टूबर को शहादत दिवस मनाकर अजीत व धनंजय को याद करना नहीं भूले। इस समारोह में आने वाले नेता शहीदों और उनके आश्रितों के बारे में बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं लेकिन उनपर अमल अबतक सामने नहीं आया है। जबकि धनंजय महतो के पुत्र उपेन महतो को झारखंड मुक्ति मोर्चा की शिबू सोरेन सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था जो अबतक पूरा नहीं हुआ है। अब सूबे में एक बार फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है और शहीद पुत्र को हेमंत सरकार से बहुत उम्मीद है।

मेरे पिता के नाम पर ईचागढ़ में होती है राजनीति : आदरडीह गांव निवासी शहीद धनंजय महतो के पुत्र उपेन महतो का कहना है कि उनके पिता ने समाज के लिए आंदोलन करते हुए अपनी जान गंवा दी। उनकी मांगों में झारखंड को अलग राज्य बनाने, चांडिल डैम के विस्थापितों को न्याय दिलाने, भ्रष्टाचार समेत कई मामले शामिल थे। उनकी हत्या के बाद उनके आश्रितों की सबने अनदेखी की। जबकि उनके नाम पर सभी ईचागढ़ में राजनीति करते हैं। हर साल शहादत दिवस पर बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं लेकिन उनके पिता को शहीद का दर्जा नहीं दिला सके।

आश्रितों को मिले नौकरी : ईचागढ़ के पूर्व विधायक साधु चरण महतो ने कहा कि गोलीकांड की घटना में हुई एफआइआर कापी से तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने षडयंत्र के तहत अजीत महतो एवं धनंजय महतो के नाम को हटा दिया है। उन्होंने कहा कि शहीद हुए अजीत व धनंजय के परिवारों को सरकारी लाभ के साथ नौकरी मिलनी चाहिए। साथ ही दोनों को शहीद का दर्जा मिले।

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