बंजर भूमि पर लग सकते हैं शहतूत, रेशम का होगा बंपर उत्पादन
वाचस्पति मिश्र सिमडेगा दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल अंतर्गत सिमडेगा जिला भी भले पठारी क्षेत्र मे हो सकता है।
वाचस्पति मिश्र
सिमडेगा: दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल अंतर्गत सिमडेगा जिला भी भले पठारी क्षेत्र में आता हो। फिर भी यहां की बंजर भूमि रेशम उत्पादन की दृष्टिकोण से उपयुक्त व लाभदायी है। अगर प्रबल इच्छाशक्ति व श्रम का सही समन्वय हो सिमडेगा जिले अधिकांश परती-पठारी भूमि पर मलबरी रेशम का उत्पादन वृहद स्तर पर किया जा सकता है। इसके माध्यम से हजारों-लाखों लोगों को रोजगार भी दिलाई जा सकती है। वह भी स्थानीय स्तर पर।आज दूरद्रष्टा की कमी की वजह से संसाधनों से संपन्न होने के बावजूद भी सिमडेगा जिला पिछड़ा अथवा आकांक्षी जिला की श्रेणी में आता है। केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से भी बहुसंख्य योजनाएं संचालित की जा रही है। लेकिन आज भी सिमडेगा के ग्रामीणों एवं वनवासियों के जीवन स्तर में अपेक्षित सुधार नहीं आ सका। आज भी बड़ी आबादी रोजी-रोटी के लिए महानगरों की ओर पलायन करने को पूरी तरह विवश हैं। जहां उन्हें केवल मजदूरी का काम ही नसीब आता है। आज कोरोना संकट काल में हजारों की संख्या में श्रमिक अपने घर लौट चुके या लौट रहे हैं। आज उन सबों को रोजगार दिलाना भी बड़ी चुनौती बन गई है। ऐसे में जिले में मौजूद संसाधनों को विकसित व संवर्धित
बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दिलाई जा सकती है। जिससे लोग आत्मनिर्भर बन सकें।इधर रेशम उत्पादन की बात करें तो जिले में कुछ किसान अब रेशम उत्पादन की ओर आकर्षित हुए हैं। लोग अपनी खाली पड़ी जमीन पर भी मलबरी अर्थात शहतूत के पौधे लगा रहे हैं। यहां तक कि धार्मिक संस्थाएं एवं शिक्षण संस्थान भी रेशम उत्पादन के क्षेत्र को अपना रहे हैं। सेरीकल्चर का कारोबार धीरे-धीरे क्षेत्र में बढ़ रहा है। परंतु इस और तेज गति के साथ विकसित करने की आवश्यकता है। किसानों व ग्रामीणों को इसके लिए जागरूक करने की आवश्यकता है। जिससे कि लोग समझ सकें कि पारंपरिक खेती की तुलना में कैसे व्यापारिक खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सकें। जिले में प्रसिद्ध डॉ. विलियम टेटे ने फॉर्म में करीब डेढ़ एकड़ में शहतूत के पौधे लगवाया है। 79 वर्षीय डॉ.विलियम टेटे कहते हैं कि मलबरी रेशम का उत्पादन के लिए उन्होंने शेड भी बनावाया है।उन्होंने कहा कि जिले में रेशम उत्पादन के क्षेत्र जिले में लाखों लोगों को रोजगार दिलाया जा सकता है। इधर विवियाना कुल्लू के द्वारा फरसाबेड़ा में भी डेढ़ एकड़ भूमि में शहतूत का पौधा लगाया है। इधर तस्सर केन्द्र में विभाग के द्वारा शहतूत के पौधे लगाए गए हैं, जहां इस बार वृहद स्तर पर मलबरी रेशम उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। रेशम उत्पादन को प्रोत्साहन दे रहे अनुग्रह
सिमडेगा:बैंकिग क्षेत्र की नौकरी को छोड़कर सामटोली निवासी अनुग्रह टेटे भी रेशम उत्पादन की दिशा में लगातार प्रत्यत्नशील हैं। उन्होंने कहा कि वे अपनी पहल से करीब 22 एकड़ में शहतूत के पौधे लगवाए हैं। जिसपर मलबरी रेशम का उत्पादन हो सकेगा।उन्होंने कहा कि उनकी योजना है जिले में 100 एकड़ या उससे भी ज्यादा भूमि में रेशम का उत्पादन हो। जिससे कि सिमडेगा रेशम उत्पादन में हब बन सके। उन्होंने कहा कि सिमडेगा में रेशम प्रमुख फसल हो सकता है। उन्होंनें कहा कि आज इंटरनेशनल मार्केट में भी रेशम व रेशम उत्पादों की बहुत मांग है।