माता-पिता की कड़वी बातें भी हितकारी : डॉ. पद्मराज

सिमडेगा:जैन भवन में चातुर्मास पर्व मना रहे कथावाचक डॉ. पद्मराज जी महाराज ने आज श्रद्धालुओं क

By JagranEdited By: Publish:Mon, 19 Nov 2018 09:08 PM (IST) Updated:Mon, 19 Nov 2018 09:08 PM (IST)
माता-पिता की कड़वी बातें भी हितकारी : डॉ. पद्मराज
माता-पिता की कड़वी बातें भी हितकारी : डॉ. पद्मराज

सिमडेगा:जैन भवन में चातुर्मास पर्व मना रहे कथावाचक डॉ. पद्मराज जी महाराज ने आज श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा माता-पिता की बातें कड़वी होने पर भी वह दवाई की भांति सदा हितकारी होती हैं। जो बच्चे माता- पिता को अंधेरे में रखकर अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय कर लेते हैं, उन्हें अवश्य पछताना पड़ता है। बच्चों को यह बात हृदय में बैठा लेनी चाहिए कि वे अपने बच्चों के साथ कितना भी कठोर व्यवहार क्यों न करलें, किन्तु वे कभी भी बच्चों के शत्रु नहीं हो सकते। एकाध अपवाद के कारण हम इस सत्य को नकार नहीं सकते।

स्वामी जी ने आगे बताया ज्ञान के बिना चरित्र का निर्माण कभी नहीं हो सकता और बिना चरित्र के ज्ञान कभी भी यथार्थ नहीं होता। ज्ञान का स्वभाव ही यही है कि वह चरित्र को प्रगट करे। यह कार्य सैद्धांतिक ज्ञान से नहीं, अनुभूति के ज्ञान से सम्भव होता है।

स्वामी जी ने आगे कहा कि कभी भी अति उत्साह या उत्तेजना में कोई फैसला नहीं करना चाहिए। ऐसे में लिया गया फैसला प्राय: आपके खिलाफ जाता है। इसीलिए धर्म की आवश्यकता हर मौके पर पड़ती है। यदि तुम धर्म के साथ हो तो तुम गलत फैसला कर ही नहीं पाओगे। व्यक्ति धर्म को मात्र परलोक के लिए मानता है जबकि उसकी जरूरत हमें अपने प्रत्येक व्यवहार के लिए होती है। स्वामी जी ने श्रेणिक कथा में सती चेलना का प्रकरण सुनाते हुए कहा चेलना ने माता-पिता की अनुमति के बिना अपनी मर्जी से विवाह किया और बाद में पछताना पड़ा। यहां तक कि उसे अपना जीवन ही व्यर्थ लगने लगा। वह निराश हो गई। ठीक ऐसे वक्त में हमें हमारा धर्म सम्भालता है। धर्महीन व्यक्ति ऐसे में बिल्कुल टूट जाता है जबकि धर्मात्मा कोई न कोई मार्ग खोज ही लेता है। चेलना ने भी मार्ग खोजा और अपने जीवन को खुशहाल बना लिया।

सचमुच में माता पिता और बच्चों का सम्बंध मात्र दैहिक न होकर हार्दिक और आत्मिक होता है। वे न केवल हमारे शरीर से प्रेम करते हैं अपितु हमारे मन, हृदय और आत्मा से भी प्रेम करते हैं। इसीलिए वे चाहते हैं कि हमारा शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, हार्दिक और आत्मिक विकास हो। अर्थात हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास उन्हें अपेक्षित होता है। जब उनकी इस अपेक्षा को हम कमतर आंकते हैं तब उन्हें तकलीफ होती है और हमारे रिश्ते बिगड़ने लगते हैं।

प्रवचन सभा में रोशन रोहिल्ला, प्रधान अशोक जैन, प्रवीण जैन, रामोतार बंसल, गो¨वद बंसल, विमल जैन, सुशील जैन, पवन जैन, संजय जैन, विजय अग्रवाल आदि बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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