सरायकेला में सालाना नौ हजार टन मछली का हो रहा उत्पादन

सरायकेला-खरसावां जिले में किसानों के बीच मछली का जीरा वितरण किया जाएगा। जिला मत्स्य विभाग ने जीरा वितरण की तैयारी पूरी कर ली है..

By JagranEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 06:30 AM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 06:30 AM (IST)
सरायकेला में सालाना नौ हजार टन मछली का हो रहा उत्पादन
सरायकेला में सालाना नौ हजार टन मछली का हो रहा उत्पादन

जागरण संवाददाता, सरायकेला : सरायकेला-खरसावां जिले में किसानों के बीच मछली का जीरा वितरण किया जाएगा। जिला मत्स्य विभाग ने जीरा वितरण की तैयारी पूरी कर ली है। इस वर्ष लगभग चार सौ किसानों के बीच 10 हजार सात सौ लाख मछली जीरा का वितरण होना है। जीरा के साथ-साथ मत्स्य पालकों को जाल भी दिया जाएगा। मत्स्य पालकों को 90 फीसद के अनुदान पर जीरा दिया जाएगा। मत्स्य पालकों को प्रति जाल के लिए दो हजार रुपये डीबीटी के माध्यम से भुगतान किया जाएगा। जिला मत्स्य पदाधिकारी प्रदीप कुमार ने बताया कि किसानों को दिए जाने वाले मछली जीरा को बड़ा आकार देने का काम किया जाएगा। उसके बाद उन्हें वृहद जल क्षेत्र में छोड़ा जाएगा। कहा, स्थानीय मत्स्य पालकों को सुगमता से मछली जीरा उपलब्ध होगा। किसानों को राज्य स्तरीय कार्यक्रम के तहत विशेष प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है। प्रशिक्षण के तहत मछली के जीरा का देखभाल करने, फीड आदि की जानकारी दी गई है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक किसान को मछली जीरा के साथ एक पैकेट फीड भी दिया जाएगा। वर्तमान में मत्स्य पालकों में मछली पालन के प्रति काफी रूचि है। पिछले वर्षों की तुलना में अब मत्स्य पालक मछली पालन कर ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। पूर्व में जानकारी के अभाव में मत्स्य पालकों को नुकसान होता था। उन्होने बताया कि अब तक 78 किसानों के बीच एक हजार 220 लाख मछली का जीरा वितरण किया जा चुका है। किसानों को मोबाइल रिचार्ज के लिए अलग से पांच सौ रुपये मिलेंगे। जिले में हेचरी में 80 लाख मछली जीरा का उत्पादन किया गया है। चांडिल केज में दो लाख पंगाज मछली जीरा स्टाक किया गया है। जिले के कई ऐसे किसान हैं, जो मछली पालन कर अपने जीवन स्तर को ऊंचाइयों की ओर ले जा रहे हैं। चांडिल डैम मछली पालन में काफी आगे है। वर्तमान में चांडिल डैम के मछली पालन की राज्य में काफी सराहना की गई है, जो नीला क्रांति के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है। देश के लिए रोल मॉडल बना चांडिल डैम का मत्स्य पालन : चांडिल डैम में केज कल्चर के माध्यम से हो रहा मत्स्य पालन पूरे देश के लिए रोल मॉडल बन गया है। यहां मत्स्य पालन के जरिए हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है। सरकार व जिला प्रशासन की ओर से मत्स्य पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिले में उत्पादित मछली को बाहर भेजा जाता है। 300 विस्थापित केज कल्चर से कर रहे मछली पालन : चांडिल डैम में करीब 300 विस्थापित परिवार मत्स्य पालन से जुड़े हैं। डैम में छोटे-बड़े मिलाकर करीब 22 समिति केज कल्चर के माध्यम से मत्स्य पालन कर रहे हैं। 22 समिति के लोग मत्स्य पालन को बढ़ावा देने का भी काम कर रहे हैं। हर साल मत्स्य विभाग की ओर से चांडिल डैम में रोहू, कतला व पंगेशियस मछली छोड़ा जाता है। डैम के किनारे बसे विस्थापित भी मछली पकड़ कर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। डैम के खुले हिस्से में करीब एक हजार विस्थापित मछली पकड़ कर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। साल में नौ हजार टन मछली का हो रहा उत्पादन : वर्तमान में सरायकेला-खरसावां जिले के पांच बड़े जलाशयों, 511 सरकारी व 4700 निजी तालाबों में लगभग नौ हजार टन मछली का वार्षिक उत्पादन हो रहा है। चांडिल डैम में केज कल्चर से किया जा रहा पंगेशियश मछली पालन प्रदेश ही नहीं, देश में अपनी पहचान बना चुका है। इसे देखने पर्यटक ही नहीं, बल्कि मत्स्य पालन से जुड़े किसान व पदाधिकारी भी आते हैं।

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