नागरिकता तो मिली पर आज भी कहलाते रिफ्यूजी
नव कुमार मिश्रा उधवा (साहिबगंज) जिले के उधवा तथा राजमहल प्रखंड में 1960 के दशक में सैक
नव कुमार मिश्रा, उधवा (साहिबगंज): जिले के उधवा तथा राजमहल प्रखंड में 1960 के दशक में सैकड़ों की संख्या में लोग बांग्लादेश के फरीदपुर से आकर यहां बसे। वर्तमान समय जिले में बांग्लादेश से आकर बसे लोगों की संख्या बीस हजार से अधिक होगी। इनमें उधवा प्रखंड केश्रीघर दियारा में सबसे बड़ी आबादी आकर बसी। जहां वर्तमान समय 4.5 वर्ग किलोमीटर के दायरे 11 कॉलोनियों ऐसी है। जहां बांग्लादेशी बसे हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक इन परिवार के 1008 सदस्यों को भारतीयता की नागरिकता दी गई। बांग्लादेश से आए सभी शरणार्थी यहां पूरी तरह से रच बस गए। इन सब के बावजूद लोग उन्हें आज भी रिफ्यूजी ही कहते हैं। यहां रह रहे श्रीधर के तत्वोरंजन मंडल बताते हैं कि उसके परिवार के लोगों मूल रूप से बांग्लादेश के फरीदपुर रहने वाले हैं। अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध स्वदेशी आंदोलन में उनके दादा हिस्सा लेते हुए विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया था। यहीं नहीं उन दिनों घर (वर्तमान समय बांग्लादेश) पर रहते हुए गांधीजी के आंदोलन का अनुशरण कर चरखा तक चलाया था। देश की आजादी के बाद भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ। वर्ष 1964 में धर्म के आधार पर पूर्वी पाकिस्तान में अस्थिरता उत्पन्न हो गई थी। पुरुषों की हत्या और महिलाओं के साथ दुष्कर्म जैसी घटनाएं वहां आम हो चली थी। ऐसे में मेरे परिवार को जान बचाकर फरीदपुर से भारत आ गए। उन दिनों उनकी उम्र महज इक्कीस साल की थी। पहले वे लोग राधानगर पंचायत के गाजियापाड़ा में बसे इसके बाद श्रीघर दियारा में आकर रहने लगे। श्रीघर कॉलोनी नंबर नौ के रह रहे बिराज विश्वास बताते हैं कि देश विभाजन के बाद आज जो बांग्लादेश का हिस्सा है वहां हिंसा का दौर शुरू। वहां कमजोर पड़ते हिन्दुओं के पास पलायन ही एक मात्र रास्ता था। ऐसे में गरीब घर वार छोड़कर बड़ी आसानी से भाग रहे थे लेकिन संपन्न परिवार के लोगों के लिए सबकुछ छोड़कर पलायन करना इतना आसान नहीं था। भारत से पलायन करने वाले मुसलमानों के साथ जमीन का हस्तांतरण तो आसान था लेकिन बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए जमीन जायदाद बिक्री उतना आसान नहीं था। हमारे परिवार के कुछ सदस्य पश्चिम बंगाल सहित आसपास के राज्यों में जमीन तलाश करते हुए यहां आकर बसे थे। उन दिनों की अनिश्चितता की स्थिति काफी पीड़ादायक थी। श्रीघर कॉलोनी नंबर नौ के निवासी जितेन मजूमदार बताते हैं कि वे लोग वर्ष 1973 में भारत आए थे। आज भी बांग्लादेश में हजारों की संख्या में हिन्दू परिवार रहते हैं। 1971 से पहले से जारी बांग्लादेश के बहुसंख्यक मुसलमानों के एक वर्ग ने अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार और अनाचार शुरू कर दिया था। जिससे मजबूर होकर वे लोग यहां आए थे। वर्तमान में श्रीघर दियारा रहकर उन्हें जीने का वह सब अधिकार मिला। जिसकी उन्हें उम्मीद थी। भारत सरकार ने हमें नागरिकता दी। हमारे बच्चों को सरकारी सुविधाएं मिल रही है। सरकारी नौकरी कर रहे हैं व देश की प्रगति में अपना योगदान भी दे रहे हैं। इसी तरह की पीड़ा फरीदपुर से आकर बसे सिदाम विश्वास, दिनेश मल्लिक, दिनेश राय, परान सरकार, योगेश्वर राय, यामिनी मंडल, रुपचांद सरकार, क्षेत्रमोहन विश्वास के साथ भी है।