World Rose Day: हिम्मत और मनोबल से जीती कैंसर से जंग, पढ़ें इन मरीजों के संघर्ष की कहानी
World Rose Day Cancer Patients Struggle Jharkhand News कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका पता चलते ही मरीज के परिवार का हर सदस्य हताशा की स्थिति में पहुंच जाता है। मरीजों के जल्द ठीक होने के लिए उनकी काउंसलिंग की जाती है।
रांची, जासं। आज वर्ल्ड रोज डे है। यह प्रति वर्ष 22 सितंबर को कनाडा की मेलिंडा रोज की स्मृति में मनाया जाता है। मेलिंडा रोज महज 12 वर्ष की उम्र में बल्ड कैंसर की चपेट में आ गई थीं। आज वह इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन कैंसर पीड़ित होने के बावजूद मेलिंडा ने अपनी छोटी सी जिंदगी में कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और इसी के साथ वे यह सीख दे गई कि कुछ भी हो जाए, हमें जीवन के प्रति कभी निराशा की भावना नहीं रखनी चाहिए। कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसका पता चलते ही मरीज के परिवार का हर सदस्य हताशा की स्थिति में पहुंच जाता है। मरीज से पहले उसके स्वजनों को मानसिक तौर पर मजबूत होने की जरूरत पड़ती है, क्योंकि कैंसर मरीज को विशेष देखभाल की जरूरत होती है।
ऐसे में अगर किसी को पता चले कि उसके परिवार के सदस्य को एक नहीं, बल्कि दो-दो प्रकार का कैंसर है, तो उस परिवार की मन:स्थिति क्या हो सकती है। कुछ ऐसे ही विकट परिस्थतियों का सामना हजारीबाग के रामलाल (बदला नाम) को करना पड़ा, जब उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी रामेश्वरी देवी (बदला नाम) को ब्रेस्ट कैंसर के बाद गर्भाशय का कैंसर भी है। रिम्स रांची में दोनों कैंसर का सफलतापूर्वक ऑपरेशन होने के बाद यह परिवार अब चैन की सांस ले रहा है। लेकिन 2017 से इस परिवार ने मानसिक तौर पर जिन परिस्थितियों का सामना किया, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।
रामलाल और उनके बेटे ने बताया कि रामेश्वरी देवी के स्तन में लगभग 20 वर्ष पूर्व एक गांठ निकला था। टाटा कंपनी के वेस्ट बोकारो घाटो कोलियारी में कार्यरत रामलाल ने 2014 में पत्नी का इलाज कंपनी के अस्पताल में करवाया था। उस वक्त ही चिकित्सकों ने ब्रेस्ट कैंसर की संभावना व्यक्त करते हुए सर्जरी की सलाह दी थी। 2016 में रामलाल भी सेवानिवृत्त हो गए। मर्ज बढ़ने के बाद 2017 में रिम्स में डा. अजीत कुशवाहा ने बायोप्सी की, तो रिपोर्ट निगेटिव आई। लेकिन गांठ धीरे-धीरे बढ़ रहा था। फरवरी, 2020 को उन्हें फिर रिम्स लाया गया और विभिन्न जांच के बाद ब्रेस्ट कैंसर के दूसरे स्टेज की पुष्टि हुई।
तीन मार्च को रामेश्वरी देवी के स्तन के गांठ को साफ कर निकाल दिया गया। उसके बाद उनकी आठ कीमोथेरेपी हुई। कीमोथेरेपी के बाद टीएमएच में रेडिएशन थेरेपी हुई। इसी माह टीएमएच में जब पूरे शरीर का पेट-सीटी स्कैन हुआ, तो चिकित्सकों ने गर्भाशय में कुछ आशंका व्यक्त की। चिकित्सकों की सलाह पर स्वजन उन्हें गायनोक्लॉजिस्ट के पास ले गए। चार सितंबर को बायोप्सी हुआ। जांच रिपोर्ट में गर्भाशय कैंसर की पुष्टि हुई, जो पहले स्टेज में था। लेकिन इस खबर ने परिवार को एक बार फिर से मानसिक तौर पर झकझोर कर रख दिया। लेकिन परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और स्वयं को मजबूत करते हुए उन्हें दोबारा रिम्स लेकर पहुंचे। चार दिन पहले ही गर्भाशय कैंसर का सफल ऑपरेशन हुआ है।
उनके बेटे ने बताया कि मां की बीमारी की वजह से पूरा परिवार मानसिक तौर पर घबरा गया था। मैं दिल्ली में एक बैंक में कार्यरत था। निजी बैंक होने की वजह से बार-बार छुट्टी भी नहीं मिलती थी। ऐसे में, नौकरी छोड़ देना ही एकमात्र विकल्प बचा था, क्योंकि पिताजी अकेले पड़ गए थे। बहन भी कहां तक संभालती। उन्होंने बताया कि बीमारी के विषय में मां से कभी नहीं छुपाया। मेरी मां भी मजबूत इच्छाशक्ति रखने वाली महिला है। कभी-कभी जब हम सब हताश हो जाते थे, तब मां ही हमारा हिम्मत बढ़ाती थी। इस दौरान किसी भी विपरीत परिस्थतियों में जिजीविषा के साथ लड़ने की सीख हमलोगों ने मां से ही जाना। उनके दोनों कैंसर के सफल इलाज होने से हम सब खुश हैं।
चौथे स्टेज के बाद भी हिम्मत नहीं हारी, ओवेरियन कैंसर का हुआ सफल ऑपरेशन
धनबाद के पाथरडीह निवासी सुभाष कुमार (बदला नाम) ने बताया कि उनकी मां शीतल देवी (बदला नाम) को सीए ओवरी (ओवेरियन कैंसर) था। जनवरी में धनबाद में ही एक चिकित्सक को दिखाया तो चिकित्सक ने यूएसजी की सलाह दी। यूएसजी रिपोर्ट में ओवरी में गांठ का पता चला। मैंने उसी वक्त रिम्स में मां की सारी जांच रिपोर्ट ऑनलाइन प्रेषित कर दी थी। उसके बाद 26 जनवरी को उनका रिम्स में बायोप्सी हुआ। पता चला कि ओवेरियन कैंसर चौथे स्टेज में है।
यह पता चलने पर हमारा पूरा परिवार घबरा गया। लेकिन हमलोगों ने हिम्मत नहीं हारी। हमलोग सर्जन डॉ. रोहित कुमार झा से मिले। डॉ. अजीत कुशवाहा के पास केस रेफर किया गया। 20 सितंबर को उनकी सर्जरी हुई। फिलहाल मां ठीक हैं और ऑपरेशन होने से हम सब भी चैन की सांस ले रहे हैं। इस विकट परिस्थितियों के बावजूद हमने अपनी हिम्मत नहीं हारी और न ही मां को यह अहसास होने दिया। इस अनुभव ने हमें यह जरूर सिखाया कि परिस्थितियां भले ही विकट क्यों न हो, अगर हम मानसिक तौर पर मजबूत हों, तो बड़ी सी बड़ी समस्या पर जीत हासिल कर सकते हैं।
मरीज के साथ-साथ स्वजनों का मनोबल बढ़ाना भी जरूरी
रिम्स रांची में सर्जिकल आंकोलॉजी विभाग के एचओडी डा. रोहित कुमार झा कहते हैं कि जब कैंसर के नए मरीज इलाज के लिए आते हैं, तो वे और उनके स्वजन जल्दी यह स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि उन्हें कैंसर है। ऐसे में, उनका मनोबल बढ़ाना जरूरी हो जाता है। इस परिस्थिति से निकलने के लिए हम मरीज की काउंसलिंग करते हैं।
उन्हें दूसरे कैंसर सर्वाइवर से मिलाते हैं, ताकि वे इलाज को लेकर सहज हो सकें और उनके अंदर यह विश्वास जगे कि जब और लोग ठीक हो सकते हैं, तो वे क्यों नहीं। डा. झा ने कहा कि उसी प्रकार सर्जरी के मामले में हम मरीज की बात किसी ऐसे कैंसर सर्वाइवर से कराते हैं, जिसकी सफल सर्जरी हो गई हो। क्योंकि इस तरह के लोगों से मिलने के बाद मरीज की हिम्मत बढ़ती है और वह सर्जरी के लिए मानसिक तौर पर मजबूत होता है।
छोटी शारीरिक व्याधियों को न करें नजरअंदाज
रिम्स रांची में सर्जिकल आंकोलॉजी के सहायक प्रोफेसर डॉ. अजीत कुशवाहा का कहना है कि अमूमन देखा जाता है कि शुरू-शुरू में लोग छोटी शारीरिक व्याधियों को नजरअंदाज कर देते हैं, जो आगे जाकर उनके लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है। मुंह और स्तन कैंसर का दुष्प्रभाव तो पहले स्टेज से ही दिखने लगता है, जबकि ओवेरियन कैंसर का शुरू-शुरू में पता नहीं चल पता है।
इसका असर तीसरे स्टेज में दिखता है। ऐसे में, हम चिकित्सकों की मरीजों से यही अपील रहती है कि कम से कम शरीर की जो व्याधियां दिखती हैं, उसके इलाज में विलंब नहीं करनी चाहिए। नहीं तो, यही छोटी-छोटी व्याधियां आगे जाकर बड़ा रूप ले लेती हैं। उन्होंने कहा कि कैसर के मरीजों के लिए पॉजिटिव रहना बेहद जरूरी है और साथ ही उनका केयर करने वालों को पॉजिटिव रहना जरूरी है।