Jharkhand: नक्सल प्रभावित गांवों की महिलाएं लाह की खेती कर बना रहीं समृद्धि की राह

Jharkhand लातेहार जिले के नक्सल प्रभावित गांवों में लोग धीरे-धीरे फिर लाह की खेती की ओर लौट रहे हैं। बीते दो वर्षों से यहां योजनाबद्ध तरीके से इसकी खेती हो रही है। स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाएं इसे अंजाम दे रही हैं। उनके घरों में समृद्धि आने लगी है।

By Kanchan SinghEdited By: Publish:Mon, 29 Nov 2021 12:01 PM (IST) Updated:Mon, 29 Nov 2021 12:01 PM (IST)
Jharkhand: नक्सल प्रभावित गांवों की महिलाएं लाह की खेती कर बना रहीं समृद्धि की राह
लातेहार जिले के नक्सल प्रभावित गांवों में लाह की खेती कर महिलाएं समृद्धि ला रही हैं।

लातेहार, जासं। लातेहार जिले के नक्सल प्रभावित गांवों में लोग धीरे-धीरे फिर लाह की खेती की ओर लौट रहे हैं। बीते दो वर्षों से यहां योजनाबद्ध तरीके से इसकी खेती हो रही है। स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाएं इसे अंजाम दे रही हैं। इससे उनके घरों में अब समृद्धि भी आने लगी है। बदलाव की इस कहानी को लिखने में जोहार परियोजना की अहम भूमिका है। तीस वर्ष पहले तक लाह उत्पादन के क्षेत्र में लातेहार का नाम देश-दुनिया में विख्यात था, लेकिन मौसम अनुकूल नहीं होने समेत अन्य कई कारणों से लाह का उत्पादन बंद हो गया। लिहाजा बेरोजगारी बढ़ गई और रोजगार के लिए वर्षा के बाद हर साल पलायन करने लगे।

यह सिलसिला कुछ हदतक आज भी जारी है। परंतु, पिछले दो वर्षों के दौरान लाह की खेती को मिले प्रोत्साहन से लोगों की दिलचस्पी इस ओर बढऩे लगी है। मनिका इसका उदाहरण है। इस प्रखंड के विभिन्न गांवों में आज 11 स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर करीब 100 महिलाएं लाह की खेती कर रही हैं। इन्हें प्रशिक्षित करने और बीज उपलब्ध कराने का काम झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी (जेएसएलपीएस) ने किया है। चार माह में तैयार होनेवाले लाह से हर स्वयं सहायता समूह को पचास हजार से लेकर एक लाख रुपये तक की आमदनी हो रही है।

जरूरतें अब हो रहीं पूरी

लाह की खेती से जुड़ी उषा देवी कहती हैं कि खुशी है कि गांव में पुन: लाह की खेती शुरू हो गई है। वहीं, शनिचरवा देवी कहती हैं कि चार माह में समूह को 49 हजार रुपये की आमदनी हुई है। इसी तरह अंकिता देवी कहती हैं कि उनके समूह को 52 हजार रुपये का फायदा हुआ है। इन पैसों से उनकी जरूरतें भी पूरी हो रही हैं।

इस तरह होती है लाह की खेती

कुसुम, खैर, बेर, सिमियालता व पलाश के पेड़ों पर लाह की खेती की जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम लैसिफर लाक्का है। लाह को तैयार होने में लगभग चार महीने का समय लगता है। जिस डाली पर लाह तैयार होते हैं उसे डाली सहित काट लिया जाता है। चूंकि कुसुम के पेड़ बड़े होते हैं, इसलिए इसमें दो क्विंटल तक लाह का उत्पादन हो सकता है, जबकि पलाश और बेर के पेड़ काफी छोटे होते हैं, इनमें 20 से 25 किलो लाह का उत्पादन होता है। जिले में इन पेड़ों की संख्या काफी है, इसलिए भी इसकी खेती सुविधाजनक है।

इन चीजों में लाह की उपयोगिता

लाह का उपयोग चपड़ा, चूड़ी बनाने तथा फर्नीचर पालिश करने, खिलौना रंगने और सोना-चांदी के आभूषणों में रिक्त स्थानों को भरने के लिए होता है। साथ ही इसका उपयोग नेल पालिश, बूट पालिश, हेयरडाई, परफ्यूम, दवा व विद्युत यंत्र बनाने के साथ अन्य कई वस्तुओं के उत्पादन में होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि परफ्यूम में लाह की जो लिक्विड उपयोग में ली जाती है उसकी कीमत हजारों रुपये प्रति लीटर होती है।

लातेहार जिले की महिलाएं समृद्ध हो रही हैं, यह सुखद है। लाह की खेती से समृद्ध हो रहीं महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाएगा। लाह की खेती को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन की ओर से हरसंभव कोशिश की जा रही है।

- अबु इमरान, उपायुक्त, लातेहार।

chat bot
आपका साथी