मातृभाषा की अहमियत को जाने बगैर हम अपनी विकास की कल्पना नहीं

Jharkhand रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग द्वारा एक दिवसीय आनलाइन अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार का विषय था कि बदलते शैक्षिक परिदृश्य में मातृभाषाओं की भूमिका संभावनाएं और चुनौतियां (झारखंड के संदर्भ में)।

By Vikram GiriEdited By: Publish:Mon, 12 Apr 2021 07:54 AM (IST) Updated:Mon, 12 Apr 2021 07:54 AM (IST)
मातृभाषा की अहमियत को जाने बगैर हम अपनी विकास की कल्पना नहीं
मातृभाषा की अहमियत को जाने बगैर हम अपनी विकास की कल्पना नहीं। जागरण

रांची, जासं । रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग द्वारा एक दिवसीय आनलाइन अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार का विषय था कि बदलते शैक्षिक परिदृश्य में मातृ भाषाओं की भूमिका: संभावनाएं और चुनौतियां (झारखंड के संदर्भ में)। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में यूरोपियन यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट एंड ईस्ट कर्न इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियाई स्टडीज, लेडन नीदरलैंड के प्रोफेसर डा मोहन कांत गौतम, मुख्य वक्ता यूनिवर्सिटी आफ कील, जर्मनी के डा नेत्रा पी पौडयाल, नेपाल के भाषाविद सह वरिष्ठ साहित्यकार बेचन उरांव मौजूद थे।

अध्यक्षता टीआरएल विभाग के विभागाध्यक्ष डा हरि उरांव, विषय प्रवेश प्राध्यापक डा उमेश नंद तिवारी, संचालन प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो तथा धन्यवाद ज्ञापन प्राध्यापक किशोर सुरिन ने किया। मुख्य अतिथि प्रोफेसर डा मोहन कांत गौतम ने यूरोपियन देशों और भारत के भाषाओं पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत की तरह ही यूरोप में भी मातृभाषाओं की स्थिति काफी दयनीय है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा की अहमियत को जाने बगैर हम अपनी विकास की कल्पना नहीं कर सकते।

छात्रों को मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए संबंधित भाषा के शिक्षकों को बाहर जाकर दूसरी भाषाओं से भी सीखना चाहिए। उन्होंने भाषाओं के मानकीकरण व व्याकरणिक पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि भाषाओं के विकास के लिए नए सिद्धांत और कांसेप्ट बनाया जाय। उन्होंने झारखंड के अलग-अलग भाषाओं के शब्दों को लेकर एक भाषा का निर्माण करने की बात कही। उन्होंने कहा कि वर्षों से चले आ रहे पुराने सिस्टम में बदलाव होगा, डिग्लोशिया और बाइलिंगुलिया को समझना होगा।

मुख्य वक्ता यूनिवर्सिटी आफ कील, जर्मनी के भाषा वैज्ञानिक डा नेत्रा पी पौडयाल ने झारखंड की जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं पर काफी सूक्ष्मता से प्रकाश डालते हुए कहा कि झारखंड में बहुत सारे डायलेक्ट हैं। उन डायलेक्ट को पता करना जरूरी है। मातृभाषा बच्चों को आत्मविश्वास से भर देता है। स्कूलों में बच्चों के ड्रापआउट को रोकने के लिये मातृभाषा काफी कारगर है। यह बच्चों के बौद्धिक विकास के साथ साथ क्षमता का भी विकास करता है। उन्होंने झारखंडी भाषाओं की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि यहां की भाषाओं में व्याकरणिक भिन्नता है। उन भिन्नताओं को दूर करना होगा। बच्चों के साथ उनके अभिभावकों को भी मातृभाषा के प्रति रुचि पैदा करना होगा।

नेपाल के भाषाविद सह वरिष्ठ साहित्यकार बेचन उरांव ने कहा कि आदिवासी समुदाय में मातृभाषा की अपनी महत्ता है। परंतु वर्तमान में बच्चों को आधुनिक शिक्षा के चक्कर में हम अपनी मातृभाषा को तरजीह नहीं देकर अन्तर्राष्ट्रीय भाषाओं की ओर भेज देते हैं। हम अपने बच्चों को मातृभाषा के प्रति मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पाते हैं। उन्होंने मातृभाषाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि बच्चों के लिए उनके पाठ्य पुस्तकों को उनकी ही मातृभाषाओं में होना चाहिए, तभी हमारा सर्वांगीण विकास संभव हो पायेगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष डा हरि उरांव ने कहा कि झारखंड ही एक ऐसा प्रांत है जहां एक साथ  कई भाषाओं में शिक्षा दी जा रही है। उन्होंने कहा कि अपनी मातृभाषाओं के विकास के लिए हमें विभिन्न विधाओं में सामग्री का निर्माण करना होगा। इस आनलाईन एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनार में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के अलावा देश व विदेश के प्राध्यापक, शोधार्थी, भाषाविद एवं छात्र छात्राएं मौजूद थे।

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