जल संकट ने बदली सोच, पानी का पहरेदार बना गांव

उज्जवल गुप्ता बेड़ो (रांची) राजधानी रांची से 35 किलोमीटर दूर बेड़ो प्रखंड के लमकाना गाव अबक

By JagranEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 07:06 AM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 07:06 AM (IST)
जल संकट ने बदली सोच, पानी का पहरेदार बना गांव
जल संकट ने बदली सोच, पानी का पहरेदार बना गांव

उज्जवल गुप्ता, बेड़ो (रांची) : राजधानी रांची से 35 किलोमीटर दूर बेड़ो प्रखंड के लमकाना गाव अबकी अप्रैल-मई की गर्मी में भीषण पेयजल संकट से जूझ रहा था। पेयजल के लिए लोगों को दर-दर भटकना पड़ा। अब जून का महीना है, सो परेशानी पहले जैसी नहीं रही, लेकिन जल संकट ने ग्रामीणों की न सिर्फ आंखें खोल दीं, बल्कि बारिश बूंदें सहेजने को सामुदायिक प्रयास के लिए भी जागरूक कर दिया है। आलम ये है कि समूचा गांव मिलकर मानसून पूर्व जल संरक्षण के लिए श्रमदान से ट्रेंच बनाने में जुटा है। कोशिश हो रही कि बारिश की हर बूंद धरती के गर्भ में जाए और जलस्तर ऊपर आने से गांव में खुशहाली लौट सके।

जंगल में ट्रेंच बनाने वालों में शामिल गांव के समाजसेवी घनश्याम उराव, वार्ड सदस्य राजेश उराव व ग्राम प्रधान परनु भगत कहते हैं कि इसबार गांव में जल संकट ने ग्रामीणों की सोच बदल दी है। भविष्य में कहीं यह संकट और गहरा न जाए, इसलिए हर कोई बारिश का पानी सहेजने के प्रति संजीदा हो गया है। जंगल में अब बड़ी संख्या में ट्रेंच बना दिए गए हैं। इससे मिट्टी का कटाव तो रुकेगा ही, बारिश का पानी बह कर बर्बाद भी नहीं होगा। बूंद-बूंद पानी धरती में समा जाएगा।

श्रमदान करने वाले ग्रामीण ज्वेल गोवर्धन, रामदयाल राम, मंगलू, जय विलास, मंगरा और रोहित कहते हैं कि उनका गांव अगली गर्मी में जल संकट का सामना नहीं करना चाहता है। लोग बहुत बुरे दौर का सामना कर चुके हैं। पेयजल के लिए दूसरे गांवों में जाना पड़ रहा था। इसलिए अब बारिश का पानी सहेज कर गांव के जल स्तर को ठीक करने की कोशिश में जुट गए हैं। वहीं, गांव के हरिनाथ, शभु, कुलदीप, धनंजय, अरुण और वंदे कहते हैं कि जल संकट से सबको सबक मिल गई है। बारिश का पानी सहेज कर ही गांव में जल संकट को दूर किया जा सकता है। ऐसा नहीं हुआ तो पलायन करने की मजबूरी होगी। इसी वजह से ग्रामीणों ने सामुदायिक पहलकर जल संरक्षण की दिशा में कदम उठाया है। ग्रामीण बसवा, बंधना, रवींद्र, सुकेश, सेवक, पंकज व ओम कहते हैं कि जागरूकता की कमी से लोग बारिश का पानी नहीं सहेज पाते थे। जल संकट ने उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर दिया है। अब खेत का पानी खेत में रहेगा। जंगल का पानी जंगल को आबाद करेगा। बारिश की एक बूंद बर्बाद नहीं होगी।

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वन रक्षा समिति की पहल से ग्रामीणों में आई जागरूकता

लोगों की सोच बदलने में वन रक्षा समिति की भूमिका अहम रही। समिति ने बैठककर ग्रामीणों को वर्षा जल व जंगल संरक्षण का न सिर्फ तरीका बताया, बल्कि सामुदायिक प्रयास के प्रति जागरूक भी किया। ग्रामीण जगे, गोलबंद हुए और श्रमदान से जंगल में दर्जनों ट्रेंच बना डाला। बैठक बीते रविवार को हुई थी। सामाजिक कार्यकर्ता घनश्याम उराव की पहल पर यह बैठक हुई थी। वे कहते हैं कि समस्या का निदान हमें खुद करना होगा। उन्होंने जल व जंगल के महत्व को समझाया तो गांव वाले तुरंत सामुदायिक श्रमदान के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सरकार से मनरेगा के तहत मेड़बंदी की भी मांग की है।

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ग्रामीणों की पहल से इस तरह जंगल को भी होगा फायदा

गांव के मुखिया बुधराम बड़ा कहते हैं कि पहले जंगल में सखुआ के बीज गिरकर यूं ही बर्बाद हो जाते थे। अब जंगल में ट्रेंच होने से पानी रुकेगा और बीजों को अंकुरित होने में फायदा मिलेगा। इससे जंगल में पेड़ों की संख्या बढ़ेगी। जंगल घना होगा। ग्रामीणों ने सामुदायिक पहल से नजीर पेश की है। लमकाना गाव के इस काम को देख कर आसपास गाव भी जागरूक बनेंगे।

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कोट --

ग्रामीणों की सामुदायिक पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। जल संरक्षण का कार्य इसी तरह संभव है। हर व्यक्ति बारिश की बूंद सहेजने के प्रति सजग हो जाए तो गांव से जल संकट दूर हो जाएगा।

विजय कुमार सोनी, बीडीओ, बेड़ो प्रखंड

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