स्कूलों में बच्चों का ड्रापआउट रोकने के लिए मातृभाषा कारगर

रांची विवि के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग द्वारा एक दिवसीय आनलाइन अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 12 Apr 2021 09:01 AM (IST) Updated:Mon, 12 Apr 2021 09:01 AM (IST)
स्कूलों में बच्चों का ड्रापआउट रोकने के लिए मातृभाषा कारगर
स्कूलों में बच्चों का ड्रापआउट रोकने के लिए मातृभाषा कारगर

जासं, रांची : रांची विवि के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग द्वारा एक दिवसीय आनलाइन अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार का विषय था- बदलते शैक्षिक परिदृश्य में मातृभाषाओं की भूमिका : संभावनाएं और चुनौतियां (झारखंड के संदर्भ में)। मुख्य वक्ता यूनिवर्सिटी आफ कील, जर्मनी के डा. नेत्रा पी. पौडयाल ने कहा कि झारखंड में बहुत सारे डायलेक्ट हैं। उन डायलेक्ट को पता करना जरूरी है। मातृभाषा बच्चों को आत्मविश्वास से भर देता है। स्कूलों में बच्चों के ड्रापआउट को रोकने के लिये मातृभाषा काफी कारगर है। यह बच्चों के बौद्धिक के साथ क्षमता का भी विकास करता है। उन्होंने झारखंडी भाषाओं की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि यहां की भाषाओं में व्याकरणिक भिन्नता है। बच्चों के साथ उनके अभिभावकों को भी मातृभाषा के प्रति रुचि पैदा करना होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष डा हरि उरांव ने कहा कि झारखंड में एक साथ कई भाषाओं में शिक्षा दी जा रही है। उन्होंने कहा कि अपनी मातृभाषाओं के विकास के लिए हमें विभिन्न विधाओं में सामग्री का निर्माण करना होगा। विषय प्रवेश डा. उमेश नंद तिवारी, संचालन डा. बीरेंद्र कुमार महतो तथा धन्यवाद ज्ञापन प्राध्यापक किशोर सुरीन ने किया। भाषाओं के विकास के लिए नए सिद्धांत और कांसेप्ट बने

मुख्य अतिथि यूरोपियन यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट एंड ईस्ट, नीदरलैंड के डा. मोहन कांत गौतम ने कहा कि भारत की तरह ही यूरोप में भी मातृभाषाओं की स्थिति काफी दयनीय है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा की अहमियत को जाने बगैर हम अपनी विकास की कल्पना नहीं कर सकते। छात्रों को मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए संबंधित भाषा के शिक्षकों को बाहर जाकर दूसरी भाषाओं से भी सीखना चाहिए। उन्होंने भाषाओं के मानकीकरण व व्याकरणिक पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि भाषाओं के विकास के लिए नए सिद्धांत और कांसेप्ट बनाया जाय। उन्होंने झारखंड के अलग-अलग भाषाओं के शब्दों को लेकर एक भाषा का निर्माण करने की बात कही। कहा, वर्षों से चले आ रहे पुराने सिस्टम में बदलाव होगा, डिग्लोशिया और बाइलिगुलिया को समझना होगा। बच्चों को मातृभाषा के लिए करें तैयार

नेपाल के भाषाविद सह वरिष्ठ साहित्यकार बेचन उरांव ने कहा कि आदिवासी समुदाय में मातृभाषा की अपनी महत्ता है। परंतु वर्तमान में बच्चों को आधुनिक शिक्षा के चक्कर में हम अपनी मातृभाषा को तरजीह नहीं देते हैं। हम अपने बच्चों को मातृभाषा के प्रति मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पाते हैं। बच्चों के लिए उनके पाठ्य पुस्तकों को उनकी ही मातृभाषाओं में होना चाहिए।

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