सब्जी उत्पादक तंगहाल, बिचौलिए मालामाल
रांची के सब्जी उत्पादक परेशान हैं।
जागरण संवाददाता, रांची : राजधानी रांची के आसपास के क्षेत्रों में सब्जी का 'अंतरराज्यीय बाजार' होने के बावजूद यहां के किसानों को उनकी उपज की उचित कीमत नहीं मिल पा रही है। हालात इतने बदतर हैं कि कई मौके ऐसे भी आते हैं, जब उन्हें लागत से भी कम कीमत पर अपने उत्पाद बेचने पड़ जाते हैं। कई दौर ऐसा भी आता है जब टमाटर जैसी फसलें खेतों में ही सड़ जाती है। किसानों ने विरोध स्वरूप कई बार सैकड़ों टन टमाटर एनएच 33 पर (रड़गांव, रांची) पर भी फेंक डाला, परंतु किसी ने उनकी सुध नहीं ली। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अब अन्य राज्यों की तरह यहां के किसान भी आत्महत्या करने लगे हैं। इससे इतर किसानों की यह समस्या कभी चुनावी मुद्दा नहीं बनता।
कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों की मानें तो कोल्ड स्टोरेज का चेन बनाकर, किसानों को ई-नाम से जोड़कर उन्हें अंतरराज्यीय बाजार से जोड़कर तथा खाद्य प्रसंस्करण की इकाइयां स्थापित कर उनकी स्थिति में तेजी से बदलाव लाया जा सकता है। इसके अभाव में वे बिचौलिए के हाथों अपने उत्पाद बमुश्किल लागत दर पर बेच डालते हैं। वे कम कीमत पर सब्जियां खरीदकर इसे महंगी कीमत पर अंतरराज्यीय बाजारों में बेच रहे हैं। सब्जी उत्पादन के मामले में रांची आसपास के इलाकों की समृद्धि की बात करें तो पिस्का, नगड़ी, बेड़ो, तमाड़, बुंडु, इटकी आदि इलाकों में बड़े स्तर पर हरी सब्जियां उपजाई जाती हैं। टमाटर, बींस, गोभी, मिर्च, धनिया आदि इनमें मुख्य हैं, लेकिन मुख्य बाजार तक पहुंच नही होने के कारण किसानों की मेहनत पर पानी फिर जाता है।
बहरहाल किसान अपनी उपज को औने-पौने दाम पर बिचौलियों को बेचने पर मजबूर हैं, जबकि दूसरी ओर इन्हीं स्थानीय मंडियों से उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा समेत कई अन्य राज्यों को सब्जियां भेजी जाती हैं। फुल्ले मार्केट नागपुर, बुधवारी बाजार कोलकाता, न्यू मार्केट कोलकाता, विपिन बिहारी गांगुली बाजार सियालदह, गोल बाजार संबलपुर, चारीडीह बिलासपुर समेत राउरकेला, रायगढ़ आदि बाहर की मंडियों में यहां से सब्जियां भेजी जा रही हैं। किसानों की प्रतिक्रिया
जब फसल तैयार होती है, स्थानीय बाजार में उसकी कीमत गिर जाती है। अगर किसानों को सिंचाई, कोल्ड स्टोरेज और बाजार की सुविधा मिलेगी तो उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति समुन्नत होगी।
पवन कुमार महतो, किसान नगड़ी
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कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था नहीं होने से खासकर टमाटर जैसे फसल जल्दी सड़ जाते हैं। सरकार कुछ गांवों के क्लस्टर पर इसका निर्माण कराए। किसानों को ई-नाम से जोड़ने की दिशा में पहल करे।
सोहन मुंडा, किसान, नगड़ी लोकल बाजार में उपज बेचना हमारी मजबूरी है। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो सब्जियां बर्बाद हो जाएगी। सरकार को चाहिए कि वह किसानों की सुध ले।
महेन्द्र मुंडा, किसान, सोनाहातू राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए पिछले पांच वर्षो में कई काम किए गए हैं। सिंचाई के लिए डोभा, सिंचाई कूप, सिंचाई परियोजनाओं का जीर्णोद्धार इसकी बानगी है। अब तो सरकार खेती के लिए किसानों के खाते में पैसे तक डाल रही है।
श्रवण कुमार
प्रवक्ता, प्रदेश जदयू
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राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
झारखंड में किसानों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। जब तक सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं होगी और किसानों को बाजार मुहैया नहीं कराया जाएगा, स्थिति यथावत रहेगी।
योगेंद्र प्रताप सिंह
केंद्रीय प्रवक्ता, झाविमो
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किसानों को उसकी उपज की उचित कीमत नहीं मिलना झारखंड के किसानों की आम कहानी है। उन्हीं की उपज से बिचौलिए मालामाल हो रहे हैं और वे तंगहाल है। यह किसानों के प्रति सरकार की उदासीनता को प्रदर्शित करता है।
मनोज पांडेय
महासचिव, राजद
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एक्सपर्ट राय
किसानों के समक्ष विपणन की बड़ी समस्या है। नतीजतन कई मौके ऐसे भी आते हैं, जब किसानों को लागत मूल्य से भी कम कीमत पर अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं। कई मामलों में उनकी सब्जियां खेतों में ही सड़ जाती हैं। सरकार को चाहिए कि वह हरी सब्जियों के भंडारण के लिए अधिकाधिक कोल्ड स्टोरेज का निर्माण कराए। ऐसा करने से जहां सब्जियां खराब नहीं होगी, वही उसकी उचित कीमत भी मिल सकेगी। अगर सरकार कोल्ड स्टोरेज के साथ-साथ सब्जी आधारित प्रसंस्करण इकाइयां लगाती है तो किसानों को इसका दोहरा लाभ मिलेगा। हाल के वर्षो में ई-नाम से जुड़कर कई प्रदेशों के किसान अच्छी मुनाफा कमा रहे हैं, जिससे झारखंड के किसान अवगत हैं। किसानों को अंतरराज्यीय बाजार मुहैया कराने में यह वरदान साबित हो सकता है।
शंभू गुप्ता
अध्यक्ष, रांची चैंबर ऑफ कॉमर्स