झारखंड में कांग्रेस की किचकिच, पार्टी में नहीं है ऑल इज वेल
Jharkhand Congress Political Updates झारखंड में सत्ता में साझीदार कांग्रेस के भीतर-बाहर सबकुछ ठीकठाक नहीं है। पार्टी के नेताओं की महत्वाकांक्षा हिलोरें मार रही है। कोई कुर्सी बचाने के लिए दिल्ली की दौड़ लगा रहा है तो कोई कुर्सी पर काबिज होने को आतुर है।
रांची, [प्रदीप सिंह]। राजस्थान, पंजाब सरीखे प्रांतों में कांग्रेस के भीतर मचा कोलाहल झारखंड तक आ पहुंचा है। यहां झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में कांग्रेस हिस्सेदार है। पार्टी के पास 16 विधायक हैं। चार विधायकों को मंत्रिमंडल में स्थान मिला है। मंत्री के एक और पद की दावेदारी कांग्रेस ने की है, जिसे मोर्चा ने नकार दिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डाॅ. रामेश्वर उरांव भी राज्य सरकार में मंत्री हैं। एक व्यक्ति, एक पद का हवाला देकर जहां एक धड़ा उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटाने पर तुला है।
वहीं विधायकों में इसे लेकर भी आपाधापी मची है कि उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया तो कम से कम महत्वपूर्ण बोर्ड और निगमों में स्थान दिया जाए। इस बाबत आलाकमान के जरिए दबाव बनाने की कोशिशें भी हो रही है। पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अपने विश्वासपात्र नेताओं के साथ दिल्ली की परिक्रमा कर लौटे तो उसके बाद विधायकों का गुट वहां जाकर जम गया है। विधायकों ने प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल से मिलकर दावेदारी की है। बताया जाता है कि इन मसलों को सुलझाने के लिए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह जल्द ही झारखंड का रूख कर सकते हैं।
बोर्ड-निगम में चाहिए भागीदारी
सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दलों के बीच बोर्ड-निगम के बंटवारे को लेकर सहमति बनी थी, लेकिन इस पर बात आगे नहीं बढ़ पाई। दिसंबर में हेमंत सरकार के एक वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह में शिरकत करने आए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह ने संभावना जताई थी कि जल्द ही इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा। विधायकों में असंतोष की बड़ी वजहों में यह एक है। सरकार में कांग्रेस कोटे के चार मंत्री शामिल हैं। विधायकों की दलील है कि बारी-बारी से सबको मौका देना चाहिए। जिन मंत्रियों का प्रदर्शन ठीक नहीं है, उन्हें दूसरी जिम्मेदारी दी जाए।