दलहन-तिलहन के नये प्रकार का 200 एकड़ भूमि में हो रहा प्रयोग

रामकृष्ण मिशन के दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा दलहन-तिलहन के नए प्रकार का प्रयोग किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 06:09 PM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 06:09 PM (IST)
दलहन-तिलहन के नये प्रकार का 200 एकड़ भूमि में हो रहा प्रयोग
दलहन-तिलहन के नये प्रकार का 200 एकड़ भूमि में हो रहा प्रयोग

जागरण संवाददाता, रांची: रामकृष्ण मिशन के दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा दलहन-तिलहन के नये प्रकार का प्रत्यक्षण (प्रयोग) किया जा रहा है। रांची के बुढ़मू, अनगड़ा, बेड़ो व मांडर गांव के करीब 200 एकड़ भूमि को इसके लिए चयनित किया गया है। यह प्रत्यक्षण कृषि प्रद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (आइसीएआर) अटारी के दिशानिर्देश पर सीएफएलडी कार्यक्रम के तहत किया जा रहा है। दाल में अरहर 25 एकड़ ,उड़द 25 एकड़, मूंग 25 एकड़ में समूह प्रत्यक्षण किया जा रहा है जिसमें अरहर की नई प्रभेद राजीव लोचन, उड़द की प्रभेद पंत उड़द 31, तथा मूंग की प्रभेद एसएमएल 668 शामिल है। इन बीजों को राइजोबियम कल्चर व पीएसबी से शोधित करके बुवाई पद्धति से लाइन से लगायी जायेगी।

जबकि खरीफ तिलहन में सरगुजा 62.5 एकड़ एवं तिल 50 एकड़ में लगाने की तैयारी की जा रही है जिसमें सरगुजा की प्रभेद बिरसा नाइजर 3 व पूसा 1 एवं तिल की प्रभेद लिनसीड-66, (एसएलएस-66) व रुचि (एलससीके-5021) शामिल है। प्रत्यक्षण तय मानक के अनुरूप हो सके इसको लेकर पोषक तत्व प्रबंधन, समेकित कीट प्रबंधन एवं समेकित रोग प्रबंधन पर विशेष ध्यान रखा जायेगा। जिनके खेत में प्रत्यक्षण होगा उन किसानों को भी ट्रेंड किया गया हैं।

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क्या कहते हैं कृषि विज्ञानी

दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि विज्ञानी डा. मनोज कुमार सिंह के अनुसार नये प्रभेद और रोपाई की नई विधि से बेहतर उपज की उम्मीद है। भिन्न-भिन्न जलवायु व स्थान पर हुए प्रत्यक्षण में सकारात्मक परिणाम आये हैं। बेहतर उपज देखने को मिल रहा है। वहीं, फसल को रोग भी अपेक्षाकृत कम लगते हैं। नये प्रभेद झारखंड के मौसम व मिट्टी के अनुरूप है या नहीं प्रत्यक्षण से पता चल जायेगा। अगर रिजल्ट बेहतर हुये तो किसानों को नये प्रभेद की बुवाई के लिए प्रेरित किया जायेगा।

समय-समय पर बीज को उन्नत कर किया जाता है प्रत्यक्षण

डा. मनोज कुमार सिंह के अनुसार समय के साथ बीज में कई बदलाव आ जाते हैं। फसल में रोग लगने के साथ पैदावार घटने लगती है। इसी कारण समय-समय पर संस्थानों द्वारा बीज को उन्नत किया जाता है। फिर इसकी जांच के लिए भिन्न जलवायु और मिट्टी पर प्रत्यक्षण किया जाता है। जरूरी नहीं है कि जो बीज रांची की मिट्टी पर बेहतर उपज अन्य स्थानों पर भी हो।

71-199 दिनों में तैयार हो जाती है अरहर की फसल

आइजीकेवी, रायपुर द्वारा तैयार अरहर का नया प्रभेद राजीव लोचन 171-199 दिनों में तैयार हो जाता है। पैदावार की बात करें तो प्रति हेक्टेयर 22.47 क्विटल उपज होती है। झारखंड में अभी ज्यादा पैमाने पर बहार, आशा आदि की बुवाई की जाती है। अगर उपज में तुलना करें तो आशा के मुकाबले राजीव लोचन बीज का पैदावार 11.80 प्रतिशत तक ज्यादा है। वहीं, रोग भी अपेक्षाकृत कम लगते हैं।

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