International Tea Day: कभी 1600 एकड़ में होती थी चाय की खेती, अब यादों में समाया
Jharkhand. पहले रांची में आठ से नौ महीने बारिश होने के कारण चाय की अच्छी खेती होती थी। 1972 में लाए गए चकबंदी कानून के कारण बागान मालिक जमीन बेचने लगे थे।
रांची, जासं। कभी रांची में 1600 एकड़ में चाय की खेती होती थी मगर आज यह शहर कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुका है। शहरीकरण व पर्यावरण प्रदूषण का रांची के मौसम पर बेहद नकारात्मक असर पड़ा। तभी तो आठ से नौ महीने बारिश की फुंहारों से भीगने वाली रांची में अब महज दो से ढ़ाई महीने बारिश होती है। लगभग सालों भर बारिश होने के कारण यहां की जमीन चाय की खेती के अनुकूल थी, लेकिन तेजी से पेड़ों की कटाई और लगातार बढ़ते लोगों के आशियाने से शहर कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया। आज केवल समय-समय पर लोग चाय बागान की चर्चा करते हैं। जिन इलाकों में चाय की खेती होती थी, वहां बड़े-बड़े महल बन चुके हैं।
चाय की खेती को चकबंदी कानून ने भी किया प्रभावित
चाय की खेती को चकबंदी कानून ने भी खूब प्रभावित किया। पहले ओरमांझी, रातू, नामकुम और होटवार को मिलाकर कुल 1600 एकड़ में चाय की खेती होती थी। सरकार द्वारा 1972 ई. में लाए गए चकबंदी कानून के कारण लोगों को 100 एकड़ की जगह सिर्फ 10 एकड़ जमीन रखना मजबूरी बन गया। इस वजह से चाय बागान के मालिकों ने अपने खेत बेचने शुरू कर दिए। चाय की खेती पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा और धीरे-धीरे चाय के बागान रांची से खत्म होते चले गए।
फिर से ग्रीन टी का चलन बढ़ा
कभी ग्र्रीन टी के लिए मशहूर रहे रांची में हाल के दिनों में फिर से ग्र्रीन टी का चलन बढ़ा है। अब लोग सामान्य चाय की अपेक्षा ग्र्रीन टी पीना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। अपर बाजार के खुला चाय कारोबारी दीन दयाल जायसवाल बताते हैं कि आजादी के पहले से अपर बाजार में कई दुकानों में खुले में ग्र्रीन टी की बिक्री होती थी। वह कहते हैं कि रांची में ग्रीन टी की खूब मांग रही है। हाल फिलहाल इसकी मांग तो इसलिए बढ़ी है क्योंकि लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर काफी जागरूक हुए हैं। हां बदला ये है कि अब लोगों ने खुले चाय के बजाए पैकेट वाले वाले ग्रीन टी पीना शुरू कर दिया है।