रांची से सुभाष चंद्र बोस ने मां को लिखा था पत्र, भारत की आजादी के बारे में कही थी ये खास बात...

नेता जी सुभाष चंद्र बोस की कल जयंती है। नेताजी का रांची बड़े विशेष लगाव रहा है। वो कई बार रांची आए। इसमें से कई बार वो अल्प समय तो कभी लंबा वास किया। इस दौरान उन्होंने यहां से अपने मित्र और स्वजनों को कई पत्र लिखे।

By Vikram GiriEdited By: Publish:Fri, 22 Jan 2021 02:55 PM (IST) Updated:Fri, 22 Jan 2021 02:55 PM (IST)
रांची से सुभाष चंद्र बोस ने मां को लिखा था पत्र, भारत की आजादी के बारे में कही थी ये खास बात...
Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 रांची से सुभाष चंद्र बोस ने मां को लिखा था पत्र। जागरण

रांची, जासं । Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 नेता जी सुभाष चंद्र बोस की कल जयंती है। नेताजी का रांची बड़े विशेष लगाव रहा है। वो कई बार रांची आए। इसमें से कई बार वो अल्प समय, तो कभी लंबा वास किया। इस दौरान उन्होंने यहां से अपने मित्र और स्वजनों को कई पत्र लिखे। इसमें से एक पत्र उन्होंने अपनी मां को भी लिखा। इसमें भारत की आजादी और युवाओं में जोश पर उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए, कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। आप भी पढ़िए सुभाष चंद्र बोस ने अपनी मां को पत्र में क्या लिखा...

आदरणीय मां

मुझे काफी समय से कलकत्ता के समाचार नहीं मिले हैं। आशा करता हूं कि आप सब स्वस्थ होंगे। मैं समझता हूं कि आपने शायद समयाभाव के कारण पत्र नहीं लिखा है। मेज दादा की परीक्षा कैसी रही? क्या आपने मेरा पूरा पत्र पढ़ लिया था? अगर आपने नहीं पढ़ा तो मुझे दुख होगा।

मां, मैं सोचता हूं कि क्या इस समय भारत माता का एक भी सपूत ऐसा नहीं है, स्वार्थरहित हो? क्या हमारी मातृभूमि इतनी अभागी है? कैसा था हमारा स्वर्णिम अतीत और कैसा है यह वर्तमान! वे आर्यवीर आज कहां हैं, जो भारत माता की सेवा के लिए अपना बहुमूल्य जीवन प्रसन्नता से न्यौछावर कर देते थे? आप मां हैं, लेकिन क्या आप केवल हमारी ही माता हैं? नहीं, आप सभी भारतीयों की मां हैं, और यदि सभी भारतीय आपके पुत्र हैं तो क्या आपके पुत्रों का दुख आपको व्यथा से विचलित नहीं कर देता? क्या कोई भी माता हृदयहीन हो सकती है? फिर क्या कारण है कि उसके बच्चों की ऐसी दुर्दशा होते हुए भी मां अप्रभावित बनी हुई है? मेरी मां, आपने सभी देशों की यात्रा की है, क्या भारतीयों की वर्तमान दशा को देखकर आपका हृदय रक्त के आंसू नहीं बहाता? हम अज्ञानी हैं और इसलिए हम स्वार्थी बन सकते हैं, लेकिन कोई मां कभी भी स्वार्थी नहीं बन सकती क्योंकि मां अपने बच्चों के लिए जीवित रहती है। अगर यह सच है तो क्या कारण है कि उसके बच्चे कष्ट से बिलबिला रहे हैं और वह फिर भी अप्रभावित है। तो, क्या मां भी स्वार्थी हो सकती है? नहीं, नहीं ऐसा कभी नहीं हो सकता, मां कभी स्वार्थी नहीं बन सकती।

मां, केवल देश की ही दुर्दशा नहीं हो रही है। आप देखिए कि हमारे धर्म की हालत क्या है? हमारा हिंदू धर्म कितना और कैसा पवित्र था और आज वह किस प्रकार पतन के गर्त में जा रहा है। आप उन आर्यों की बात सोचें जिन्होंने इस धरती की शोभ बढ़ाई थी और अब उनके पतित वंशजों को देखें। तो क्या हमारा सनातन धर्म विलुप्त होने जा रहा है? आप देखें कि किस प्रकार नास्तिकता, श्रद्धाहीनता और अंधविश्वास का बोलबाला है। इसी का परिणाम है कि इतना अधिक पाप और जन-जन के लिए दुख और कष्ट। बोलो मां, क्या यह सब देखकर और इन सब बातों को सुनकर तुम्हारा दिल नहीं दहल जाता, तुम्हारी आंखें नहीं डबडबा आतीं, तुम्हारा मन व्याकुल नहीं हो जाता? मैं नहीं मान सकता कि ऐसा नहीं होता। मां कभी हृदयहीन नहीं हो सकती।

मां, तुम अपने बच्चों की दुखद अवस्था को अच्छी तरह देखो। पाप, दुख-कष्ट, भूख, प्यार की प्यास, ईष्र्या, स्वार्थपरता और इस सबसे अधिक धर्म का अभाव, इन सबने मिलकर उनका अस्तित्व नारकीय बना दिया है। और अपने पवित्र सनातन धर्म की दुर्दशा पर भी दृष्टि डालो। देखो कि किस प्रकार वह लुप्ता होता जा रहा है। श्रद्धाहीनता, नास्तिकता और अंधविश्वास उसे पतन की ओर ले जा रहा है और कुरूप बना रहे हैं। कहां तो हमारे प्राचीन काल के पवित्र ब्राह्मण थे और कहां आज के पाखंडी ब्राह्मण! आज जहां कहीं भी थोड़ा बहुत धर्माचरण होता है, वहां कट्टरता और पाप हावी हो जाते हैं।

बड़े दुख की बात है कि हम क्या थे और क्या हो गए हैं। हमारा धर्म कहां से कहां पहुंच गया। मां, इन सब बातों को सोचकर तुम्हें बेचैनी नहीं होती, क्या तुम्हारे हृदय में पीड़ा से हाहाकार नहीं मच जाता।....

मेरी प्रभु से प्रार्थना है कि  मैं संपूर्ण जीवन दूसरों की सहायता में बिता सकूं। मुझे आशा है कि वहां सब कुशल हैं। यहां हम सानंद हैं। कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें। और इस पत्र का उत्तर अवश्य दें।

सदैव आपका प्रिय पुत्र

सुभाष

रांची

(नोटः ये पत्र का संक्षिप्त और संपादित अंश है)

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