झारखंड में भी विधायकों की अनदेखी का खामियाजा न उठाना पड़े कांग्रेस को

काग्रेस के लिए झारखंड में भी आने वाले दिनों के लिए हालात अच्छे नहीं दिख रहे।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 13 Jul 2020 01:27 AM (IST) Updated:Mon, 13 Jul 2020 01:27 AM (IST)
झारखंड में भी विधायकों की अनदेखी का खामियाजा न उठाना पड़े कांग्रेस को
झारखंड में भी विधायकों की अनदेखी का खामियाजा न उठाना पड़े कांग्रेस को

राज्य ब्यूरो, राची : सरकार और संगठन की बागडोर एक ही हाथ में रहने का खामियाजा मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में उठा रही काग्रेस के लिए झारखंड में भी आने वाले दिनों के लिए हालात अच्छे नहीं दिख रहे। पार्टी में कई स्तरों पर एक व्यक्ति एक पद की माग उठ चुकी हैं, परंतु इसकी अनदेखी से आने वाले दिनों में खतरा टलने की बजाय बढ़ने की संभावना प्रबल होती दिख रही है। झारखंड के विधायक भले ही अभी कुछ बोल नहीं रहे हैं, लेकिन संगठन से दूरी बनाने लगे हैं। यही कारण है कि कई विधायक अपने स्तर से मुख्यमंत्री के गुडबुक में शामिल होने की कोशिश कर चुके हैं। आलाकमान ने ध्यान नहीं दिया तो इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि झारखंड प्रदेश कांग्रेस में भी बगावत हो जाए।

सत्ता और संगठन के बीच समन्वय बनाने की असफलता की शुरुआत पिछले महीने नौ जून को ही हो गई थी। तब काग्रेस के विधायक राज्यसभा चुनाव की रणनीति बनाने के लिए जुटे थे, जिसमें विधायकों के मन में छिपी भावनाएं बाहर निकलने लगी। कई विधायकों ने यहा तक कहा था कि सरकार में रहकर भी जब छोटा-छोटा काम न हो तो फिर क्या मतलब है। इस मामले ने तूल नहीं पकड़ा लेकिन इतना जरूर हुआ कि छह महीने में ही विधायकों की नाराजगी उभरने लगी।

उस वक्त कई विधायकों ने संगठन स्तर पर इस बात की माग की थी कि उनके जिले में पहले से नियुक्त कुछ अधिकारियों को हटाया जाए। संगठन के स्तर से अनदेखी के बाद विधायक खुद भी मुख्यमंत्री से मिलकर इन बातों को रख चुके हैं।

सिमडेगा जिले के दोनों विधायक वहा के डीसी और एसपी को हटाने के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगा चुके हैं। इस मामले में संगठन का साथ नहीं मिला है। अधिकारी अभी भी नहीं बदले हैं और नाराजगी कहीं ना कहीं दिलों में घर कर रही है। कई और जिलों में इसी तरह के हालात हैं। इस मसले पर कोई कुछ बोल तो नहीं रहा लेकिन एक सीनियर नेता इतना जरूर बोलें कि केंद्रीय नेता कपिल सिब्बल का बयान ही काफी है। सिब्बल ने कहा है कि काग्रेस तब जगती है जब घोड़े अस्तबल से भाग चुके होते हैं।

इधर पार्टी का एक खेमा संगठन की अनदेखी से नाराज भी है। मध्यप्रदेश में जहा सत्ता और संगठन की कमान कमलनाथ के हाथ में थी वहीं राजस्थान में सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष भी थे और मंत्री भी। काग्रेस नेताओं की मानें तो ऐसे ही निर्णय से पार्टी दो ध्रुवों में बंटी, जिसका नतीजा सभी देख रहे हैं। झारखंड में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकात सहाय पहले ही संगठन से नाराज चल रहे हैं, हालाकि उन्हें महज एक-दो विधायकों का साथ मिल सकता है। कई मुद्दों पर विधायक इरफान अंसारी अपना विरोध सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर चुके हैं। पार्टी में डॉ रामेश्वर राव के पास वित्त एवं आपूíत जैसा महत्वपूर्ण विभाग भी है और प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व भी। कुछ लोग दबी जुबान से इसका विरोध लगातार कर रहे हैं। देखने की बात यह होगी कि विरोध कब उग्र रूप धारण करता है।

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