आदिवासियों की घटती आबादी पर रिपोर्ट अगले महीने

फरवरी में सौंपी जानी थी रिपोर्ट, छह माह का मिला था उपसमिति को विस्तार -क्षेत्र भ्रमण कर लौटी समिति

By Edited By: Publish:Mon, 23 Jul 2018 11:41 AM (IST) Updated:Mon, 23 Jul 2018 11:41 AM (IST)
आदिवासियों की घटती आबादी पर रिपोर्ट अगले महीने
आदिवासियों की घटती आबादी पर रिपोर्ट अगले महीने
-फरवरी में सौंपी जानी थी रिपोर्ट, छह माह का मिला था विस्तार -क्षेत्र भ्रमण कर लौटी समिति तथ्यों का कर रही मूल्यांकन विनोद श्रीवास्तव, रांची झारखंड में आदिवासियों की घटती आबादी के कारणों की तलाश में जुटी जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की उप समिति अगस्त महीने में संबंधित रिपोर्ट सरकार को सौंपने की तैयारी में है। आदिवासियों की घटती आबादी की पड़ताल कर पिछले दिनों क्षेत्र भ्रमण से लौटी उप समिति उपलब्ध तथ्यों और आंकड़ों का मूल्यांकन कर रही है। ग्रामीण विकास विभाग नीलकंठ सिंह मुंडा की अध्यक्षता तथा विधायक ताला मरांडी और मरांडी गंगोत्री कुजूर के अलावा टीएसी सदस्य रतन तिर्की की सदस्यता वाली इस उप समिति को फरवरी तक ही रिपोर्ट सौंपनी थी, परंतु विषय की जटिलता को देखते हुए इसे छह महीने का अतिरिक्त समय दिया गया था। पिछले दिनों राज्य के अनुसूचित 13 तथा तीन आंशिक जिलों का भ्रमण करने की कड़ी में उप समिति ने बुद्धिजीवियों, आदिवासी मामलों के जानकारों, सामाजिक संगठनों, प्रशासनिक सेवा के अफसरों, शिक्षाविदों, आदिवासी बहुल क्षेत्रों के सबसे बुजुर्ग व्यक्तियों के साथ बैठक कर एक आम राय तैयार की है। कल्याण विभाग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार आजादी के इन सात दशकों में झारखंड में आदिवासियों की संख्या में 9.27 फीसद की गिरावट आई है। 1951 में इनकी आबादी जहां 35.8 थी, 1911 की जनगणना में 26.11 फीसद पहुंच गई। इस अवधि में आम आदिवासियों की तुलना में आदिम जनजातियों की जनसंख्या में कहीं अधिक गिरावट दर्ज की गई है। --------- इनसेट पड़ताल इन बिंदुओं पर : - वर्ष 1951 से किन-किन जातियों को आदिवासी की सूची में रखा गया। - वन तथा खनन क्षेत्र की वजह से कितने लोगों का पलायन हुआ। कितने लोगों को वनाधिकार पट्टा मिला। - किन-किन वर्षो में अकाल/सूखा पड़ा और कब-कब, किन-किन परिस्थितियों में पलायन हुआ। -1984 में अस्तित्व में आए भूमि अधिग्रहण कानून के बाद कितने लोग विस्थापित हुए, कहां गए। - रोजी-रोटी की तलाश में मौसमी पलायन करने वाले आदिवासियों की जनगणना पर पड़ने वाले प्रभाव। ---------- कोल से बना कोलकाता, कहलगांव भी इसका हिस्सा : अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में पिछले दशकों में कौन-कौन सी जातियों को जोड़ा गया। छोटानागपुर रीजन में अनुसूचित जनजातियों की कौन-कौन सी जातियां आती हैं। कोल में कौन-कौन सी जातियां समाहित हैं, विधायक ताला मरांडी के इन सुझावों पर भी उप समिति मंथन कर रही है। मरांडी ने दावा किया है कि कोल शब्द से ही कोलकाता बना है और कहलगांव की भी इस जाति से संबद्धता रही है। ऐसे में इसकी वृहद समीक्षा की जरूरत है। -----------
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