लेपचा समुदाय के लीजेंड हैं सोनम शेरिंग

आक्टेव में भाग लेने आए दार्जिलिंग के पद्मश्री सोनम शेरिंग लेपचा 91 की उम्र छू रहे हैं। दो लाख की आबादी वाले आदिवासी समुदाय लेपचा के लीजेंड हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 06 Dec 2016 05:03 AM (IST) Updated:Tue, 06 Dec 2016 05:17 AM (IST)
लेपचा समुदाय के लीजेंड हैं सोनम शेरिंग

संजय कृष्ण, रांची। आक्टेव में भाग लेने आए दार्जिलिंग के पद्मश्री सोनम शेरिंग लेपचा 91 की उम्र छू रहे हैं। दो लाख की आबादी वाले आदिवासी समुदाय लेपचा के लीजेंड हैं। साहित्य, संगीत और कला में पारंगत भी। इसलिए, उन्हें सम्मान से लोग लुपन बुलाते हैं। यानी गुरुजी।
सोमवार को उनसे बातचीत हुई। इस उम्र में भी स्वस्थ रहने का राज बताया। योग को वे आधा घंटा प्रतिदिन योग करते हैं। इसके साथ रियाज तो है ही। बताते हैं कि लेपचा समुदाय में करीब बीस तरह के पारंपरिक वाद्य यंत्र हैं। इन सभी वाद्यों में वे पारंगत ही नहीं, इनके संरक्षण और संवर्धन का काम भी 1986 से कर रहे हैं।

दार्जिलिंग के कालिंपोंग में उनका म्यूजियम है, जहां हर तरह के परंपरागत वाद्य यंत्र और पहनावे रखे गए हैं।
गीत-संगीत के प्रति रुझान के बारे में बताया कि उनकी चाची के पिता की बहन प्रिस्ट थीं। मातृ प्रधान समाज में महिला प्रिस्ट ही होती हैं। सभी कर्मकांड वही करातीं। बचपन में उनके साथ जाया करता था। जब वे पूजा करतीं तो तरह-तरह के अलापा निकालती थीं। उन अलापों को सुना। इसके साथ फिर पारंपरिक कई रागों पर काम किया। इसकी टाइमिंग पर काम किया।
कक्षा दो तक पढ़े सोनम बताते हैं, इस तरह राग को पकडऩे-छोडऩे, ताल देने लगे। फिर पारंपरिक वाद्य यंत्रों को बजाने का काम शुरू किया। करीब बीस तरह के प्रचलित पारंपरिक वाद्य यंत्रों को बजाना सीखा।
सोनम कहते हैं, जीवन में भी कई तरह के उतार-चढ़ाव आए। 35 साल की उम्र में मां चल बसी। बड़े भाई आर्मी में थे। वे 1944 में शहीद हो गए। इसी समय मैं भी आर्मी की ट्रेनिंग ले रहा था। 11 महीना पूरा हो गया था, लेकिन छोड़कर घर आ गया। शादी हुई। लोकल प्रिटिंग प्रेस में काम करने लगा। रात में स्वयंसेवक का काम करता था। एक रात चोरों के सरदार को पकड़ लिया। इस पर सरकार ने अवार्ड दिया। फिर कुछ दिनों तक पुलिस में काम किया। यह भी छोड़ दिया। गीत-संगीत में रुचि थी। गांव-गांव प्रोग्राम देता था। पं. बंगाल सरकार ने दार्जिलिंग में लोक मनोरंजन शाखा खोली तो उसमें लेपचा आर्टिस्ट के रूप में नियुक्ति हो गई। यह 1965 की बात है। 28 साल सर्विस की। इसी दौरान एक म्यूजियम खोला। चारों तरफ प्रसिद्धि मिली।
धर्म-संस्कृति पर भी किताबें लिखीं
इसी दौरान लेपचा भाषा में अपने धर्म, कर्मकांड, संस्कृति, संस्कार के बारे में अलग-अलग किताबें लिखीं। हमारे यहां जन्म-मृत्यु के संस्कार अलग हैं। हम मूल आदिवासी हैं। भूमिपुत्र हैं। इसलिए, हमारे पूजा के विधान अलग हैं।
परिवार के बारे में कहा कि तीन शादी हुई है। पहली पत्नी की निधन हो गया। पहली पत्नी से छह, दूसरी से चार और तीसरी पत्नी से एक बेटी है। तीसरी पत्नी को भी कला के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री मिल चुका है।
विरासत को कौन संभालेगा? इस सवाल पर कहते हैं, पहली पत्नी के बेटे नार्ब शेङ्क्षरग लेपचा को आगे बढ़ा रहे हैं। रांची भी उनके साथ आए हंै। 66 की उम्र है। आर्मी में 28 साल सर्विस के बाद अवकाश ग्रहण किया है। वैसे, 91 की उम्र में सोनम सक्रिय हैं। अपने समाज के लिए काम करते हैं। सोनम अपने समुदाय के पहले रेडियो कलाकार भी हैं।
पुरस्कार-सम्मान
पद्मश्री 2007
संगीत नाटक अकादमी 1997
गुरु रवींद्र रत्नम 2008
बंग विभूषण 2011 ।

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