किसी कमी से कोई ना बदले धर्म, इसलिए प्रहरी की तरह देते हैं सेवा

भारत के संविधान ने नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 02:52 AM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 06:14 AM (IST)
किसी कमी से कोई ना बदले धर्म, इसलिए प्रहरी की तरह देते हैं सेवा
किसी कमी से कोई ना बदले धर्म, इसलिए प्रहरी की तरह देते हैं सेवा

रांची (जागरण संवाददाता)। भारत के संविधान ने नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। मतलब यह कि भारत के समस्त नागरिकों को अपने रीति-रिवाज का पालन करने की स्वतंत्रता है। भारतीय संविधान के अनुसार धार्मिक स्वतंत्रता देश के प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के तृतीय भाग में लिखित वो अधिकार है जिनको सामान्य स्थिति में सरकार द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता है और जिनकी सुरक्षा स्वयं भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। सेवा, लोभ, लालच या फिर जबरन धर्मांतरण को अपराध माना गया है। हालांकि, आजादी से काफी पहले से भारत में धर्मांतरण धड़ल्ले से होता रहा है। इसके खिलाफ जगह-जगह से विरोध की स्वर भी मुखर होते रहे हैं। तत्कालीन रघुवर सरकार ने झारखंड में धर्मांतरण विधेयक 2017 कानून लागू किया जिसके तहत जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने के जुर्म में तीन साल तक की सजा का प्रावधान किया गया। दूसरी ओर, कई ऐसे संगठन हैं जो लगातार धर्मांतरण के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं। झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति के अध्यक्ष मेघा उरांव की पहचान धर्मांतरण के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले योद्धा की है। मेघा उरांव के नेतृत्व में समिति पिछले 20 सालों से धर्मांतरण के खिलाफ सुदूरवर्ती इलाके में सक्रिय है। अशिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में लोगों का धर्मांतरण न हो इस कारण लगातार विभिन्न आंदोलन के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने में जुटे हुए हैं। संगठन का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि अगर कहीं भी धर्मांतरण की बात होती है तो तत्काल इन्हें इसकी सूचना मिल जाती है।

धर्मांतरण विधेयक कानून और संगठन की तत्परता का ही असर है कि रांची से सटे सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा, खूंटी में धर्मांतरण की रफ्तार काफी कम हो गई है। सेवा के नाम पर धर्मांतरण कराने वालों को एक बार जरूर सोचना पड़ता है कि कहीं बवाल न हो जाए। मेघा उरांव बताते हैं कि कई बार धमकी भी मिल चुकी है। तथाकथित फर्जी धर्म गुरुओं को खड़ा कर समाज से बेदखल करने का भय दिखाया जाता है हालांकि, इस सबके बावजूद धर्मांतरण के खिलाफ आवाज कमजोर नहीं हुई। मेघा उरांव के अनुसार 20 सालों में गढ़वा, पश्चिमी सिंहभूम, गोड्डा, पाकुड़, गुमला, सिमडेगा, लोरहदगा आदि संवेदनशील इलाकों के धर्म परिवर्तन करनेवाले करीब तीन सौ लोगों की घर वापसी कराई गई। खुशी इस बात कि है कि घर वापसी कर चुके लोग अब खुद धर्मांतरण के खिलाफ सहभागी बन चुके हैं।

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