Weekly News Roundup Ranchi: बिना मान्यता के दांत उखाड़ रहा डेंटल कॉलेज... पढ़ें स्वास्थ्य क्षेत्र की हफ्तेभर की हलचल
Weekly News Roundup Ranchi. रिम्स कर्मियों की कमी का रोना रो रहा है। दूसरी ओर डॉक्टर भी अपनी कमाई को ही पहले देखते हैं। इस स्थिति में मरीज बेचारा बन कर रह जाता है।
रांची, [अमन मिश्रा]। अस्पतालों में मरीज अपनी बीमारी का इलाज कराने जाते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि खुद अस्पताल ही बीमार हैं। झारखंड का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स कर्मियों की कमी का रोना रो रहा है। दूसरी ओर डॉक्टर भी अपनी कमाई को ही पहले देखते हैं। इस स्थिति में मरीज बेचारा बन कर रह जाता है। रिम्स में बना डेंटल कॉलेज बिना डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया के मान्यता के मरीजों का दांत उखाड़ रहा है। आइए जानते हैं स्वास्थ्य के क्षेत्र में सप्ताहभर में क्या रही हलचल...
इंजेक्शन के लिए भी इंतजार
राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में मरीजों को होने वाली परेशानी नई बात नहीं। बात बस इतनी है कि हर बार बस सिर्फ बातें ही होती है। बात के अनुसार व्यवस्था नहीं बदलती। आलम यह कि अस्पताल के कई विभागों में 50-50 मरीजों पर सिर्फ एक नर्स है। मरीजों को इंजेक्शन के लिए दो-दो घंटे इंतजार करना पड़ता है। वहीं कुछ विभागों में 38 मरीजों पर 38 नर्से हैं। अस्पताल में उपकरण मौजूद हैं।
प्रशिक्षित लोगों की कमी के कारण इनका संचालन नहीं हो पा रहा। करोड़ों की जीवन रक्षक मशीनें जवानी से बुढ़ापे में पहुंच रही हैं। मेंटेनेंस अवधि खत्म होने को है। इससे सिर्फ और सिर्फ मरीजों को परेशानी होती है। चिकित्साकर्मियों की कमी दूर करने को कई बार वैकेंसी निकाली गई। हर बार फंस गई। फाइलें स्वास्थ्य विभाग से लेकर रिम्स प्रबंधन के बीच चलती और फिर थक कर आधे रास्ते में ही रुक जाती।
कमीशन के चक्कर में डॉक्टर साहब
मुफ्त के पैसे कई लोगों को पसंद होते हैं। शॉर्टकट का यह तरीका कई लोगों के जीवन का फलसफा ही बन जाता है। यह बात अलग है कि इसके फायदे और नुकसान का अनुमान बाद में लगता है। रिम्स के दर्जन भर डाक्टरों ने कमाई के लिए दवा दुकानों पर अपने घाट बिठा रखे हैं। डॉक्टर मालामाल हो रहे। गरीब मरीज इसमें पिस रहे हैं। रिम्स के कई विभागों में यह धंधा चल रहा।
अस्पताल में मिलने वाली मुफ्त की दवाइयों के लिए मरीजों से मोटी रकम वसूली जा रही। निजी दवा दुकानों से टाइअप रहने के कारण मरीजों को दुकान तक पहुंचाने के सारे उपक्रम किए जाते हैं। कई बार डॉक्टर के बताए दुकान से दवा नहीं खरीदने पर मरीजों के परिजनों को वापस तक भेज दिया जाता है। बेचारे मरीज इतनी दूर राजधानी पहुंचकर यह समझ नहीं पाता है कि करे तो क्या करे। कौन सुनेगा फरियाद।
दांत उखाड़ रहा डेंटल कॉलेज
दंत चिकित्सा के लिए रिम्स में अलग से डेंटल कॉलेज खोला गया। यह कॉलेज सिर्फ मरीजों के दांत उखाडऩे और लगाने का काम कर रहा। आधुनिक संसाधनों से लैस इस कॉलेज को अबतक डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता नहीं मिल सकी है। न सीटें बढ़ रही हैं, न विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पा रही है। कॉलेज की शुरुआत बड़ी उम्मीद से की गई। अब अधिकारी अपनी योजना को दांत के चक्कर में फंसा देखकर दांत दबा रहे हैं।
अत्याधुनिक मशीनें, अनुभवी विशेषज्ञ होने के बावजूद विभाग मरीजों को अपनी ओर नहीं खींच पा रहा। दरअसल, सारी परेशानी इसके व्यवस्थित संचालन में आ रही है। इस कारण मरीजों का विश्वास नहीं जम रहा। रांची शहर में थोक के भाव से खुले डेंटल अस्पताल व क्लिनिक मरीजों को अपनी तरफ आकर्षित कर ले रहे। तमाम संसाधन और उपकरण के बावजूद इस सरकारी कॉलेज का विस्तार नहीं हो रहा।
अस्पतालों में लुट रहे गरीब
राज्य के बड़े अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट कोई बड़ी बात नहीं है। पैसे कमाने के लिए कई बड़े अस्पताल छोटी बीमारी को भी बड़ा बना देते हैं। गरीबों के लिए सरकार ने जब आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की तो इसे क्रांतिकारी और मरीजों के लिए वरदान बताया गया। लेकिन शहर के कुछ अस्पतालों ने इसमें पलीता लगाने की ठान ही ली है। शहर का एक सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल इसका जीता जागता उदाहरण है।
यहां मरीज आयुष्मान कार्ड लेकर जाए या बगैर कार्ड जाए बात बराबर है। मरीज कितना भी पैसा बचाना चाहे मुमकिन ही नहीं है। आए दिन यहां मरीज और अस्पताल प्रबंधन के बीच खींचतान की शिकायत मिलती है। इस अस्पताल ने बीमारियों के हिसाब से आयुष्मान में अपना निबंधन भी कराया है, लेकिन सुविधा किसी सरकारी अस्पताल के बराबर भी नहीं है। अमूमन शहर के हर दूसरे अस्पताल में आयुष्मान की इसी तरह लूट मची है।