सुनो साहिबान
कोई किसी से कम नहीं सूबे की राजधानी रांची में साहब छोटे हों या बड़े पैरवी सिफारिश
कोई किसी से कम नहीं
सूबे की राजधानी रांची में साहब छोटे हों या बड़े, पैरवी सिफारिश में कोई किसी से कम नहीं है। खासकर छोटे साहब लोग तो अपनी सीधी पैरवी का झंडा बुलंद किए हुए हैं। इन पर किसी की धमकी, घुड़की या डांट-फटकार का कहीं कोई असर हो ही नहीं रहा है। बड़े हाकिम लोग इनकी इस बेअदबी और हुक्मऊदूली से हलकान परेशान हैं। कहीं से भी कोई पेश नहीं चल रहा है और कोई काम-धंधा भी नहीं हो पा रहा है। एक साहब, खनन-खोदाई वाले.. तो ऐसे हैं कि जब से कोरोना काल शुरू हुआ है, तब से जो हाथ-पैर बटोर कर चुप्पी साधे हैं कि लोग इनकी आवाज सुनने और शक्ल देखने के लिए तरस गए हैं। धुआं-धक्कड़ और प्रदूषण की लगातार शिकायतें आ रही हैं। जांच-पड़ताल, छापेमारी के लिए लगातार दबाव दिया जा रहा है, लेकिन साहब अभी निकलने के मूड में नहीं हैं। कोरोना के बहाने..
राजधानी के पुलिस महकमे में इस समय कोरोना को लेकर खूब खुसुर-फुसुर हो रही है। अधिकारी हों या कर्मचारी, सबकी जुबान पर कोरोना को लेकर हो रहे खेल की ही चर्चा है। कचहरी चौक पर एक पुराने अधिकारी ने इस खेल का खुलासा किया। सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ। खेल के बारे में जानकर आप भी चौंके बिना नहीं रह पाएंगे। दरअसल, राजधानी में ही कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों ने दो-चार अस्पतालों को सेट कर रखा है। ये अस्पताल मात्र एक हजार रुपये में किसी की भी कोरोना जांच की रिपोर्ट पॉजिटिव दे दे रहे हैं। फिर क्या, रिपोर्ट निगेटिव आने तक पूरा आराम। फिर 14 दिन तक क्वारंटाइन का सुख। ड्यूटी के झंझट से मुक्ति और चोरी-चुपके अपने परिवार में जाकर लगभग महीने भर सुखमय जीवन बिताने का परम आनंद। लंबे समय से ये सब चल रहा है। जब तक कोई धरा नहीं जाता चलता रहेगा।
तो क्या उखड़ जाएगा तंबू-कनात
मोरहाबादी मैदान अपने-अपने मुद्दे और मांग को लेकर आंदोलन करने वालों का अड्डा है। घनघोर कोरोना काल में भी ये मैदान आंदोलनों का गवाह रहा है। अभी सोमवार को ही विधि-व्यवस्था की जिम्मेदारी उठाने वाली मैडम ने मोरहाबादी मैदान के पास विभिन्न मांगों को लेकर धरना दे रहे लोगों को जल्द से जल्द मैदान खाली करने का नोटिस थमा दिया। चेतावनी दी कि कोविड-19 के प्रसार के खतरे के मद्देनजर रांची अनुमंडल में किसी भी स्थान पर भीड़-भाड़ लगाने की मनाही है। आदेश की अवहेलना करने वालों के खिलाफ पैंडेमिक एक्ट सहित भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत कार्रवाई की जाएगी। इतना ही नहीं, खौफ हो इसलिए आंदोलनकारियों के सामने नोटिस पढ़ कर सुना भी दिया गया। लेकिन, आंदोनकारियों पर कोई असर नहीं हुआ। वे अभी भी मैदान में जमे हुए हैं। ऐसे में लगता तो नहीं कि मैदान से तंबू-कनात उखड़ पाएगा। वरदान तो मिला पर मनचाहा नहीं
राजधानी के ही एक हाकिम हैं गाड़ी-घोड़ा वाले महकमे में। पुरानी सरकार में राजधानी भेजे गए थे। तब इन्होंने खूब जोर लगाया, अपनी पुरानी जगह पर फिर से भेज दिए जाने के लिए, लेकिन इनकी वहां नहीं चली। सरकार बदली तो सीधे महकमे के मंत्री तक पहुंच बना ली। खूब दुखड़ा रोया। नेताजी का दिल पसीज गया। चर्चा तो ये भी है कि कुछ दान-दक्षिणा भी हुआ। बहरहाल दिल पसीजा तो हाकिम को फायदा भी हुआ। बिना किसी प्रक्रिया के एकलौती चिट्ठी निकाल कर इनको इनकी पुरानी जगह पर भेज दिया गया। वरदान पाकर बहुत खुश हुए, लेकिन काम आधा-अधूरा ही हुआ। इसलिए अब तक इनके दिल में कसक है। और, वो ये कि वरदान तो मिला, पर मनचाहा नहीं। क्योंकि, विभाग बदल गया। बदले विभाग में बहुत कुछ न करने को है और न ही कुछ मिलने मिलाने वाला ही लग रहा है।