नियमित कॉलम : सेहत संसार :

अमन मिश्रा नाच न जाने आंगन टेढ़ा नाच न जाने आंगन टेढ़ा। कुछ लोगों में अपनी असफलताओं क

By JagranEdited By: Publish:Tue, 07 Jul 2020 02:06 AM (IST) Updated:Tue, 07 Jul 2020 06:16 AM (IST)
नियमित कॉलम : सेहत संसार :
नियमित कॉलम : सेहत संसार :

अमन मिश्रा

नाच न जाने आंगन टेढ़ा

नाच न जाने आंगन टेढ़ा। कुछ लोगों में अपनी असफलताओं को स्वीकार न करके दोष दूसरों के सर डालने की आदत होती है। राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में इन दिनों कई पात्रों पर यह कहावत सटीक बैठ रही है। एक पदाधिकारी का नाम काफी घोटालों में छन कर बाहर निकला और अब उसी अधिकारी के हाथों सारा कमान जाने की बात आ रही है। रिम्स में चर्चाएं आम है, करना-धरना भी कुछ नहीं, बस जी हुजूरी के चक्कर में माननीय के चहेते बन बैठे हैं। यह हुआ एक पात्र का विवरण। दूसरे तो पद पर विराजमान भी हो गए हैं। पुराने फाइलों में खुद की गड़बड़ियां अभी अपने चहेतों से छांटी जा रही है। क्या करें, क्या नहीं अभी इस बात को लेकर हाई कमान से कोई कमांड नहीं मिला है। भाई ऑर्डर तो जरूरी है। बस इंतजार है..देखिए कब तक आता है। बिन काम, हो गया नाम

कोई काम नहीं था। कोरोना को लेकर लॉकडाउन था। मरीजों के लिए ओपीडी भी बंद था। न मरीज आ रहे थे और न उन्हें देखने का टेंशन था चिकित्सकों को। खूब मस्ती मार रहे थे। अचानक विभाग से आदेश आया और एक कमेटी बना दी गई। कुछ काम करने वालों के साथ एक-आध फुरसतिया लोगों को भी इसमें लगा दिया गया। तीन महीने किसी तरह बीत गए। वाहवाही जैसी कोई काम कमेटी के सदस्यों ने नहीं की, लेकिन एक दिन मंत्रीजी आए और सभी को सम्मानित कर चले गए। हुआ ऐसा कि काम करने वाले सम्मान के आस में बैठे रह गए और मंत्रीजी गुलदस्ता खुद लिए..कमेटी के सदस्यों को सम्मानित किए..डेढ़ घंटे लंबी भाषण के बाद पानी पीकर वहां से निकल गए। अब जिन्हें सम्मान मिला वे तो खुश, जिन्हें नहीं मिला वह भी चेहरी में मायूसी के साथ थोड़ी मुस्कान लेकर बैठे रहे। डाक्टरी में पीआरओ की डिग्री

बाबाजी को हक है गुरु ज्ञान देने का। क्योंकि बाबा जी तो बाबा जी हैं। अगर आप भी बाबा जी हैं तो दीजिए न ज्ञान। किसने मना किया है। लेकिन अगर आप बाबा जी नहीं है तो आपको ज्ञान देने का हक किसने दिया ये जरूर बताइएगा। बहुत बड़े स्वास्थ्य संस्थान में एक डाक्टर साहब को पीआरओ (पब्लिक रिलेशन ऑफिसर) बनने का शौक बचपन से था। लेकिन किस्मत ने डाक्टरी पेशा में लाकर डाल दिया। नतीजा अब यह हुआ कि डाक्टर तो बन गए, दूसरा शौक भी पूरा करना था तो बन गए संस्थान के पीआरओ। अब क्या है, मीडिया को देखते ही गुरुज्ञान शुरू। मुद्दा कोई भी हो, टॉपिक भी खुद निकालना है..बात निष्कर्ष तक पहुंचे इससे पहले टॉपिक से भी भटक जाना है। दूसरे चिकित्सक उनके उतावलेपन देखकर हंस रहे थे। सब समझ जा रहे थे आखिर क्यूं हंस रहे हैं सभी। कौन लड़ेगा हक की लड़ाई

अब कौन हक की लड़ाई लड़ेगा। चिकित्सकों के सम्मान के लिए कौन आवाज उठाएगा। कौन मुद्दों को सरकार तक लेकर जाएगा। असल में अभी इसका फैसला नहीं हुआ है। रिम्स में जूनियर डाक्टरों के हक की आवाज उठाने में जेडीए की अहम भूमिका है। अब जेडीए की पुरानी कमेटी का कार्यकाल खत्म हो चुका है। जैसे ही पुरानी टीम हटी अब एकाएक कई सारे लोग नेता बनने पहुंच रहे हैं। पिछले तीन सालों में जिनका चेहरा नहीं दिखा वे भी नेता जी बनकर सामने आ रहे हैं। कोई कार्यक्रम का आयोजन कर वरीय चिकित्सकों व नेता-मंत्रीजी को खुश करने में लगा है, तो कोई पुरानी कमेटी के सदस्यों से मेलजोल बढ़ा रहा है। अब देखना दिलचस्प होगा कि कमान किसे मिलेगा। हालांकि खुद बड़े पदासीन नेताजी ने भी इस चुनाव के लिए अपना हाथ एक-दो के ऊपर रखा है। कहीं सब गड़बड़ न हो जाए।

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