Ranchi : रांची में पर्ल फार्मिंग : जाने मीठे जल में कैसे होता है मोतियों का उत्पादन, आय के साथ रोजगार का भी होगा सृजन

Ranchi झारखंड में मोती उत्पादन(Pearl Farming In Jharkhand) की संभावनाओं को देखते हुए राजधानी रांची में पायलट प्रोजेक्ट के तहत मत्स्य अनुसंधान केंद्र(Fisheries Research Center) शालीमार में मोती पालन का कार्य वर्ष 2018 से शुरू किया गया है। मार्च 2019 में हार्वेस्टिंग से 1400 मोतियों का उत्पादन हुआ।

By Sanjay KumarEdited By: Publish:Thu, 25 Nov 2021 05:34 PM (IST) Updated:Thu, 25 Nov 2021 05:34 PM (IST)
Ranchi : रांची में पर्ल फार्मिंग : जाने मीठे जल में कैसे होता है मोतियों का उत्पादन, आय के साथ रोजगार का भी होगा सृजन
Ranchi : रांची में पर्ल फार्मिंग : जाने मीठे जल में कैसे होता है मोतियों का उत्पादन

रांची (सुरेन्द्र प्रसाद)। झारखंड में मोती उत्पादन(Pearl Farming In Jharkhand) की संभावनाओं को देखते हुए राजधानी रांची में पायलट प्रोजेक्ट के तहत मत्स्य अनुसंधान केंद्र(Fisheries Research Center), शालीमार में मोती पालन का कार्य वर्ष 2018 से शुरू किया गया है। हालांकि इससे पूर्व वर्ष 2016 में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एग्रीकल्चर (सीफा), भुवनेश्वर द्वारा यहां प्रयोग के तौर पर फ्रेश वाटर में मोती उत्पादन की विधि डेवलप की गई थी। जो सफल रहा था। अनुसंधान केंद्र में फिलहाल प्रोडक्शन पर फोकस किया जा रहा है। बेहतर परिणाम मिला तो किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा आय के लिए मार्केटिंग पर भी काम किया जाएगा।

पायलट प्रोजेक्ट के तहत तालाब में डाले गए थे 2000 सीप :

मत्स्य अनुसंधान केंद्र में नवंबर, 2018 को पायलट प्रोजेक्ट(Pilot Project) के तहत 2000 सीप के अंदर न्यूक्लीयस प्रत्यारोपित कर मीठे जल के तालाब में डाले गए। मार्च, 2019 को जब हार्वेस्टिंग की गई तो उनमें से 1400 मोतियों का उत्पादन हुआ।

अब चार यूनिट में डाले गए 72 हजार सीप :

बताया गया कि इस सफलता के बाद वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान अक्टूबर माह में चार यूनिट में एक साथ 72 हजार सीप तालाब(Oyster Pond) में डाले गए हैं। प्रत्येक यूनिट में तालाब का दायरा एक एकड़ में फैला है। यानि कि हर तालाब में 12 हजार सीप के अंदर न्यूक्लीयस प्रत्यारोपित किया गया है। सीप के अंदर मोती तैयार होने में 12 से 15 माह का समय लगेगा। उसके बाद हार्वेस्टिंग(Harvesting) की जाएगी।

फार्मिंग के दौरान खराब हो जाते हैं 25 प्रतिशत मोती :

अनुसंधान केंद्र के पदाधिकारियों के मुताबिक मोती उत्पादन की प्रक्रिया पूरी होने पर जब उन्हें निकाला जाता है, तो उनमें से 25 प्रतिशत रिजेक्टेड मोती निकलते हैं। उत्पादन के लिए एक सीप में दो न्यूक्लीयस का प्रत्यारोपण किया जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर तालाब में 1000 सीप डाले जाते हैं, तो उनमें से जीवित 750 सीप ही होते हैं और उन जीवित सीपों में 1500 मोती बनते हैं। हालांकि, उनमें से लगभग 500 खराब मोती निकलते हैं।

एक हजार सीप डालने के लिए 30 हजार की लागत :

मोतियों के भी दो ग्रेड होते हैं। ए और बी ग्रेड। बाजार में ए ग्रेड मोती की बढ़िया कीमत मिलती है। अमूमन तालाब में 1000 सीप डालने के लिए लगभग 30 हजार की लागत आती है। अगर 500 ए ग्रेड मोती 200 रुपये के दर से भी बिके तो भी किसान को 70 हजार का लाभ होता है।

ऐसे बनता है मोती :

विशेषज्ञों ने बताया कि हर सीप में मोती नहीं होता है। यदि सीप के अंदर बालू के कण या ईंट-पत्थर के छोटे टुकड़े घुस जाए तो सीप के अंदर इस कण के ऊपर भी एकुमुलेशन होता है, जो मोती का रूप ले लेता है।

अलग-अलग आकार के होते हैं मोती :

अनुसंधान केंद्र में बताया गया कि मीठे जल में पर्ल फार्मिंग से निकला मोती अलग-अलग आकार का होता है। इसे इसे काट-छांट कर सही शेप में लाया जाता है। इस तरह के मोती से ज्यादातर पेंडेंट बनाए जाते हैं। प्राकृतिक रूप से पूरी तरह गोल मोती सिर्फ समुद्र में ही पैदा होता है। 

आय के साथ-साथ रोजगार का भी होगा सृजन:

रांची के सहायक मत्स्य निदेशक नवराजन तिर्की ने कहा कि यदि मोती के उत्पादन को बढ़ावा मिले, तो इससे आय के साथ-साथ रोजगार का भी सृजन होगा। अभी अनुसंधान केंद्र में ही पर्ल फार्मिंग की जा रही है। आने वाले समय में महिला समूह और किसानों को भी इस प्रोजेक्ट के तहत जोड़ा जाएगा और उन्हें प्रशिक्षण प्रदान कर बड़े स्तर पर पर्ल फार्मिंग करने के साथ ही मार्केटिंग भी की जाएगी।

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