Tantra Ke Gan: खुद संक्रमित होकर भी निभाया फर्ज, अस्पताल में भर्ती होकर भी की ड्यूटी

Tantra Ke Gan कोरोना वायरस के पहले मामले से लेकर बढ़ते मामले तक की सारी व्यवस्थाएं की। मरीजों को किसी तरह की परेशानी नहीं होने दी। रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद अस्पताल में भर्ती होकर भी फोन से अपने सारे काम निपटाए।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 01:05 PM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 01:33 PM (IST)
Tantra Ke Gan: खुद संक्रमित होकर भी निभाया फर्ज, अस्पताल में भर्ती होकर भी की ड्यूटी
मरीजों को किसी तरह की परेशानी नहीं होने दी।

रांची, जासं। कोरोना वायरस का पहला मामला रांची जिला में 31 मार्च को आया था। तब किसी को भी नहीं पता था कि वायरस है क्या? इसके क्या परिणाम हैं। जब जिले में मामला बढ़ेगा तो किस तरह इसपर काबू पाया जाएगा। शुरुआत में क्वारंटाइन सेंटर तक की व्यवस्था नहीं थी। इस दौरान जिले के सिविल सर्जन डॉ वीबी प्रसाद ने अपनी भूमिका खूब निभाई। मामले को कंट्रोल करने से लेकर स्वास्थ्य संबंधित उपकरण और सुविधा तक उपलब्ध कराने में पीछे नहीं रहे। अधिकारियों के साथ हर दिन बैठक कर कोरोना को मात देने की योजना बनाई।

आइसोलेशन सेंटर कम पड़ रहे थे तो निजी अस्पताल के संचालकों के साथ बैठक कर उन्हें राजी कराया। खेलगांव में 1000 से अधिक बेड की उपलब्धता सुनिश्चित कराई। जब कोरोना संक्रमण का मामला चरम पर पहुंचा तो ये खुद भी संक्रमित हो गए। रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद अस्पताल में भर्ती होकर भी फोन से अपने सारे काम निपटाए। देखते ही वैक्सीन भी आ गई। किसे-किसे वैक्सीन दिया जाए, इसकी रणनीति भी खुद से तय की। रांची के सिविल सर्जन डॉ. वीबी प्रसाद ने कोरोना काल में अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई।

दिल से करते हैं दिल का इलाज

दिल के डॉक्टर नन्हें बच्चों के मामले में दिल से दिल तक का इलाज करते हैं। वैसे पेशेगत काम के रूप में डॉ. प्रशांत कुमार रिम्स में कार्डियोलॉजिस्ट हैं। लेकिन नौकरी के अतिरिक्त बच्चों के प्रति उनका गहरा भावनात्मक लगाव है। वैसे तीन दर्जन बच्चों को उनके द्वारा नई जिंदगी दी गई है जिन्हें जन्मजात दिल की बीमारी थी। अमूमन इस तरह की बीमारी जल्दी ठीक नहीं होती है। बच्चों से लगाव का ही नतीजा है कि न सिर्फ अतिरिक्त रूप से बच्चों के दिल का इलाज करते हैं, बल्कि अभिभावकों को भी जागरूक करते रहते हैं।

दूसरे सहयोगियों को भी इस संबंध में ट्रेनिंग देते रहते हैं। यही नहीं बच्चों को दिल की बीमारी से निजात मिले, इसके लिए विभिन्न प्रखंडों में जाकर शिविर भी लगाते हैं। वहां ऐसे बच्चों को चिन्हित कर उनके इलाज में सहयोग करते हैं। अभिभावक को नहीं मालूम है कि इस रोग से कैसे निजात पाया जा सके या किस तरह की योजनाओं का लाभ ले सकते हैं। मुफ्त में या फिर कम खर्च पर ।

डॉ. प्रशांत कुमार ने राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत झारखंड में पहली बार 2018 को इस योजना के अंतर्गत जन्मजात बीमारी से जूझ रहे कई बच्चों को जिंदगी दी। एक साल से 18 साल तक के बच्चे इस रोग से मुक्ति पा सकते हैं। यह अभियान उनका आज भी जारी है। अपने ड्यूटी के साथ-साथ वह इस दिशा में पूरी तरह से जुटे हुए हैं।

परिचय

डॉ. प्रशांत कुमार रिम्स के कार्डियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं। रिम्स से ही उन्होंने एमबीबीएस किया। 2010-13 तक के बीच में एमडी की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 2017 में कोलकाता से डीएम की पढ़ाई पूरी की।

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