चतरा के प्रवीण कजाकिस्तान में बजा रहे मगही, भोजपुरी व झारखंडी लोक संगीत का डंका
विदेश मंत्रालय भारत सरकार की तरफ से चुनिंंदा संगीत शिक्षकों को कजाकिस्तान के लोगों को प्रशिक्षण देने के लिए भेजा गया है। कजाकिस्तान में लोग भारतीय संगीत को काफी पसंद कर रहे हैं। चतरा के प्रवीण दुबे भी इसी सिलसिले में वहां गए हैं। लोगों की दीवानगी देखकर गदगद हैं।
चतरा (अमरेंद्र सिंंह) : चतरा जिले के प्रवीण दुबे ने मित्र देश कजाकिस्तान में भारतीय संगीत का डंका बजा रहे हैं। वहां कुछ महीनों से शास्त्रीय संगीत के अलावा मगही, भोजपुरी और झारखंड के गीत गूंज रहे हैं। ऊंचा नीचा जंगल पहाड़ झरना, हाय रे हमर झारखंड परदेस..., यह नागपुरी गीत कजाकिस्तान में खूब पसंद किया जा रहा है।
हाल ही में 'मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंगलिशतानी सिर पर लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिंंदुस्तानी... पर लोग खूब थिरके। दरअसल, ये गीत-संगीत वहां महज मनोरंजन के लिए नहीं गाए जा रहे, बल्कि वहां के लोगों को बकायदा इसका प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। उस देश की धरती पर भारतीय संस्कृति और उसमें संगीत के योगदान से मित्र राष्ट्र के लोगों का साक्षात्कार कराया जा रहा है। वह इसे न सिर्फ खूब पसंद कर रहे हैं। बल्कि इसे आत्मसात भी कर रहे हैं।
विदेश मंत्रालय ने भारतीय संगीत प्रशिक्षक के रूप में भेजा है वहां
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत वहां भारतीय संगीत के प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की है। भारत से चुनिंंदा कुछ संगीत शिक्षकों को वहां के लोगों को प्रशिक्षण देने के लिए भेजा गया है। उन्हीं संगीत प्रशिक्षकों में एक हैं चतरा जिले के हंटरगंज प्रखंड स्थित बारा गांव के प्रवीण दुबे। प्रवीण दुबे दिल्ली के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में संगीत के शिक्षक हैं। उनका पूरा परिवार संगीत को समर्पित है। शास्त्रीय संगीत में एक हस्ताक्षर के रूप में उस परिवार को माना जाता है।
विभिन्न शहरों में मास्टर क्लासेस आयोजित कर रहे प्रवीण
फिलवक्त प्रवीण कजाकिस्तान के विभिन्न शहरों में मास्टर क्लासेस आयोजित कर रहे हैं। उन क्लासेस में भारतीय संगीत का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रवीण दुबे ने दैनिक जागरण से दूरभाष पर कहा- यहां के लोगों में भारत के प्रति सम्मान और भारतीय संगीत के प्रति गजब की दीवानगी है। लोग भारतीय संगीत सीखने में काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। पिछले 15 नवंबर को जब पूरा झारखंड अपना स्थापना दिवस मना रहा था, तब कजाकिस्तान में भी नागपुरी गीत गूंज रहे थे। लोग प्रवीण दुबे के साथ- ऊंचा नीचा धरती जंगल पहाड़ झरना, हाय रहे हमर झारखंड परदेस पर थिरक रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय संगीत के प्रशिक्षण का दौर अभी जारी रहेगा। यहां के लोगों में सीखने की गजब इच्छाशक्ति है। लोग भारत व खासकर झारखंड के लोक संगीत को काफी पसंद कर रहे हैं।