पुलिस को बदलनी होगी अपनी मानसिकता : संजय विद्रोही

सुनील सिंह रांची दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच हुई मारपीट की आलोचना अधिवक्ता संजय कुमार विद्रोही ने की। वे दैनिक जागरण के विमर्श कार्यक्रम में बोल रहे थे।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 12 Nov 2019 04:18 AM (IST) Updated:Tue, 12 Nov 2019 06:33 AM (IST)
पुलिस को बदलनी होगी अपनी मानसिकता : संजय विद्रोही
पुलिस को बदलनी होगी अपनी मानसिकता : संजय विद्रोही

सुनील सिंह, रांची : दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच हुई मारपीट की घटना के पीछे ईगो (अहम) क्लैश है। इस घटना को पुलिस ने जरूरत से अधिक तूल दिया। अधिवक्ताओं को बदनाम करने की कोशिश की गई। पुलिस अपने को कानून से ऊपर समझती है। पुलिस को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। देश बदल रहा है, तो पुलिस को अपनी छवि और कार्यशैली बदलनी होगी। यह कहना है कि सिविल कोर्ट के वरीय अधिवक्ता व बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव संजय कुमार विद्रोही का। विद्रोही सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय मे आयोजित जागरण विमर्श कार्यक्रम में बोल रहे थे। विषय था - कैसे थमें आए दिन के पुलिस और अधिवक्ताओं का टकराव? विद्रोही ने कहा कि जो लोग वर्दी या खास ड्रेस में रहते हैं उनके अंदर कुछ ईगो रहता है। रोक-टोक करने पर क्लैश करता है। इसके बाद झगड़ा शुरू होता है। तीस हजारी कोर्ट में घटना की शुरुआत एक अधिवक्ता के कार पार्किग को लेकर हुई थी। इस विवाद में पुलिस ने जल्दबाजी में किसी अधिकारी या कोर्ट को सूचना दिए अधिवक्ता को हाजत में बंद कर दिया।

विद्रोही ने कहा कि इस मामले को लेकर जब दिल्ली हाई कोर्ट ने न्यायिक जांच का आदेश दे दिया तो इस मामले को यहीं खत्म करना चाहिए था। लेकिन पुलिस के लोग परिवार के साथ सड़कों पर उतर गए। कानून के रखवाली करने वाले ही कानून को हाथ में लेकर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने लगे। सरकार भी इस मामले में चुप रही।

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कानून से डरता है वकील

विद्रोही ने कहा कि कानून से वकील डरता है। लेकिन पुलिस वाले नहीं डरते हैं। वर्दी का रौब उनके ऊपर रहता है। लोग पुलिस से डरते हैं। थाने में मुकदमा दर्ज करने जाना नहीं चाहते हैं। क्योंकि पुलिस उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती है। मुकदमा दर्ज करने में पुलिस आनाकानी करती है। पुलिस कानून के नाम पर लोगों से अमानवीय व्यवहार करती है। ऑनलाइन मुकदमों की स्थिति काफी खराब है।

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रांची सिविल कोर्ट में भी होती है नोकझोंक

विद्रोही ने कहा कि रांची सिविल कोर्ट में भी अधिवक्ताओं के साथ पार्किग को लेकर अक्सर पुलिसकर्मियों से नोकझोंक होती है। हर दिन चार हजार से अधिक वकील और पांच हजार मुवक्किल कोर्ट आते हैं। छोटे-बड़े हजारों वाहन आते हैं। लेकिन कहीं पार्किग की जगह नहीं है। सरकार और प्रशासन ने कोर्ट आने के रास्ते रास्ते बंद कर दिए हैं। जो स्थान पार्किग के लिए चिह्नित की गई थी वहां रविंद्र भवन बन रहा है। समाहरणालय बन गया। पार्किग को लेकर कोर्ट और बार की ओर से कई सुझाव दिए गए थे लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि सरकार यह सोचे की पुलिस को कैसे नियंत्रित किया जाए। पुलिस के अधिकारों में कटौती करने की जरूरत है। पुलिस का व्यवहार लोगों के साथ अच्छा नहीं है। रांची में भी अक्सर ऐसी घटनाएं होती हैं।

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