भवनों को तोड़ने के आदेश पर रोक लगाने की मांग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल

रांची के विभिन्न क्षेत्रों में अतिक्रमण के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। प्रार्थी दिलीप कुमार सिंह की ओर से अधिवक्ता देवर्षि मंडल ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

By Vikram GiriEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 01:53 PM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 02:24 PM (IST)
भवनों को तोड़ने के आदेश पर रोक लगाने की मांग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल
भवनों को तोड़ने के आदेश पर रोक लगाने की मांग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल। जागरण

रांची, राज्य ब्यूरो। रांची के विभिन्न क्षेत्रों में अतिक्रमण के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। प्रार्थी दिलीप कुमार सिंह की ओर से अधिवक्ता देवर्षि मंडल ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इस दौरान कुल चालीस लोगों की ओर से याचिका दाखिल की गई है। देवर्षि मंडल ने बताया कि याचिका में हिनू के बंधु नगर के रहने वाले लोगों ने याचिका दाखिल कर रांची नगर निगम के आदेश पर रोक लगाने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि नगर निगम की ओर से उनका नक्शा नहीं पास होने की वजह से अवैध निर्माण मानते हुए भवनों को तोड़ने का आदेश दिया गया है। लेकिन उन लोगों को किसी प्रकार का नोटिस नहीं मिला है।

अखबार में इस संबंध में नोटिस जारी किया गया था। इसके बाद इन लोगों ने नगर आयुक्त के यहां आवेदन दिया, लेकिन उन्होंने उनका बिना पक्ष सुने ही आदेश जारी कर दिया। यह नैसर्गिग न्याय के खिलाफ है। इसके अलावा नगर निगम की ओर से की जाने वाली कार्रवाई झारखंड म्यूनिसिपल एक्ट- 2012 के नियमों के विरुद्ध है। ऐसे में नगर निगम के आदेश पर रोक लगाते हुए इसे निरस्त किया जाए। बता दें कि झारखंड हाई कोर्ट के आदेश के बाद रांची शहर के विभिन्न क्षेत्रों में सार्वजनिक भूमि पर किए गए अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है।

हाई कोर्ट ने इसको लेकर रांची उपायुक्त और नगर आयुक्त को कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा था कि जलस्रोत, डैम और नदी के किनारे हुए अतिक्रमण को जल्द से जल्द हटाया जाए। इसमें किसी प्रकार कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। इस मामले में पहले धुर्वा के लावालौंग के सात लोगों ने हाई कोर्ट के दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद अदालत ने सीओ नगड़ी के आदेश को निरस्त करते हुए दोबारा उन लोगों को आवेदन पर सुनवाई कर निर्णय लेने का आदेश दिया था।

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