जेएसएससी परीक्षा की नई नियमावली से हिंदी भाषा को हटाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल

झारखंड के संस्थानों से दसवीं और प्लस टू योग्यता वाले अभ्यर्थियों को ही जेएसएससी परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता रखी गई है। इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है। नई नियमावली को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।

By Kanchan SinghEdited By: Publish:Fri, 24 Sep 2021 01:53 PM (IST) Updated:Fri, 24 Sep 2021 01:53 PM (IST)
जेएसएससी परीक्षा की नई नियमावली से हिंदी भाषा को हटाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल
जेएसससी परीक्षा की नई नियमावली से हिंदी भाषा को हटाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है।

रांची, राब्यू।  सरकार की ओर से झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (स्नातक संचालन संशोधन नियमवाली)-2021 बनाई गई है। इसमें राज्य के संस्थानों से दसवीं और प्लस टू योग्यता वाले अभ्यर्थियों को ही परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता रखी गई है। इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है। जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को रखा गया है। नई नियमावली को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।

प्रार्थी कुशल कुमार और रमेश हांसदा की ओर से दाखिल याचिका में नई नियमावली को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज, कुमारी सुगंधा और तान्या सिंह ने बताया कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। क्योंकि वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है। नई नियमवाली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना सरकार की राजनीतिक मंशा का परिणाम है। ऐसा सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है। राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है। भाषा एवं धर्म के आधार पर राज्य के नागरिकों को बांटने एवं प्रलोभित करने का काम किया जा रहा है। उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग ही मदरसे में करते हैं। ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी बाहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है। इसलिए नई नियमवाली में निहित दोनों प्रविधानों को निरस्त किया जाए।

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