लोगों को भा रहे हाइवे पर बने ढाबे, लांग ड्राइव के साथ मौज-मस्ती भी Ranchi News

Jharkhand. रांची के आसपास के इलाकों में वेज और नॉन वेज खाने का स्वाद लेने के लिए लोग पहुंच रहे हैं। अच्छे फैमली ढाबों पर सुरक्षा के पूरे इंतजाम हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Sun, 15 Dec 2019 01:38 PM (IST) Updated:Sun, 15 Dec 2019 01:38 PM (IST)
लोगों को भा रहे हाइवे पर बने ढाबे, लांग ड्राइव के साथ मौज-मस्ती भी Ranchi News
लोगों को भा रहे हाइवे पर बने ढाबे, लांग ड्राइव के साथ मौज-मस्ती भी Ranchi News

रांची, जासं। राजधानी में पिछले कुछ सालों में वीकेंड मनाने के परिवेश में बदलाव आया है। लोग छुïट्टी वाले दिन अपने परिवार के साथ घरों से निकलकर हाईवे का रुख कर रहें हैं। यहां कुछ सालों में कई फैमली ढाबे खुले हैं जिनमें वीकेंड में काफी भीड़ होती है। लोग यहां अपने परिवार संग मौज-मस्ती के साथ अच्छे खाने का स्वाद लेने आते हैं। ओरमांझी, नामकुम और कांके की तरफ कई फैमली ढाबे हैं जो लोगों को स्वादिष्ट खाना उपलब्ध करा रहे हैं। इन ढाबों पर वेज के साथ नॉन वेज खाने सस्ते दर पर उपलब्ध है।

मेंटल रिलैक्स के लिए जरूरी है घुमना

रांची लाईफ में भी अब कम दौड़ भाग नहीं है। ऐसे में लोगों को अपने परिवार के साथ अच्छा समय बिताने का वक्त नहीं मिल पाता है। एक स्टडी में पाया गया है कि परिवार के साथ एक दिन क्वालिटी टाइम बिताने से लोगों की कार्य क्षमता का विकास होता है। इसके साथ ही मानसिक शांति भी मिलती है। लोग जब घुमने निकलते हैं तो घर आकर खाना बनाने की झंझट से बचने के लिए ढाबे पर पहुंच जाते हैं।

सुरक्षा का रखा जाता है ख्याल

शहर के बाहर होने के कारण कई लोग इन ढाबों को सुरक्षित नहीं मानते। मगर शहर के बाहर ज्यादातर ढाबे खुद को सुरक्षित बताते हैं। इनमें फैमली के बैठने की अलग से व्यवस्था होती है। इसके साथ ही ज्यादातर फैमली ढाबों में सीसीटीवी भी लगाया गया है। इसके साथ ही कई ढाबे ऐसे हैं जिनमें शराब आदि का सेवन पर पूरी तरह से रोक है।

'सप्ताह में एक दिन काम से छुïट्टी मिलती है। ऐसे में मैं अपना सारा समय अपने परिवार को देता हूं। शाम में हमलोग ज्यादातर हाईवे पर बने किसी ढाबे में ही खाना खाते हैं।' -राजेश कुमार, कोकर।

'हर सप्ताह तो संभव नहीं है। पर महीने में एक या दो बार मैं अपने परिवार के साथ वीकेंड पर रेस्टोरेंट में जाकर खाना खाता हूं। शहर में कई अच्छे होटल हैं पर ढाबे पर खाने जाने से थोड़ा घुमना भी हो जाता है।' -रविशंकर, बूटी बस्ती।

'मैं परिवार के साथ अक्सर शहर के बाहर ढाबे पर खाने जाता हूं। कुछ अच्छे फैमिली रेस्टोरेंट हैं। इनमें आज तक मुझे असुरक्षा महसूस नहीं हुई। इसके साथ ही अच्छे दर पर स्वादिष्ट खाना भी मिल जाता है।' -मनोज कुमार, बूटी बस्ती।

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