पतरातू का रारह गांव होगा पहला इको विलेज टूरिज्म
राजधानी रांची से पतरातू की खूबसूरत वादियां घूमने के लिए हर रोज सैकड़ों लेाग जाते हैं।
मधुरेश नारायण, रांची : राजधानी रांची से पतरातू की खूबसूरत वादियां घूमने के लिए हर रोज सैकड़ों लोग जाते हैं। पतरातू लेक को पर्यटन विभाग ने रिसोर्ट के रूप में भी विकसित किया है। कश्मीर की डल झील की तरह यहां आकर्षक सजे हुए शिकारों में पर्यटक जल विहार का आंनद भी लेते हैं। लेकिन अब यहां पर इको विलेज टूरिज्म विकसित करने का योजना बनाई गई है। गांव वालों के घरों में पर्यटकों के रहने की व्यवस्था होगी।
रांची के कांके में रहने वाली राधिका बोर्डे पिछले कुछ वर्षों से पतरातू के रारह गांव में इसके लिए काम कर रही हैं। आदिवासी कला, संस्कृति और धरोहर पर शोध करने वाली राधिका वर्तमान में चेक गणराज्य के चाल्स विश्वविद्यालय में रिसर्च कर रही हैं। वह छह महीने रांची और छह महीने चेक गणराज्य में रहती हैं। गांव की आर्थिक स्थिति में होगा सुधार
राधिका बताती हैं कि आदिवासी समाज में कृषि और वन उत्पाद ही लोगों की आय का मुख्य स्त्रोत है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार देखने को नहीं मिल रहा। दूसरी तरफ अब लोग शहरीकरण के शोर से ऊब चुके हैं। ऐसे में बड़े शहरों में इको टूरिज्म का कल्चर बड़ी तेजी से बढ़ा है। ऐसे में उन्होंने पतरातू के पास रारह गांव के मुखिया से बात की। यहां के लोगों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए इको विलेज टूरिज्म का प्रस्ताव रखा। इसमें रांची में इको विलेज टूरिज्म पर काम करने वाले विनित मुंडू काफी मदद कर रहे हैं। वह अपनी एनजीओ की मदद से गांव के लोगों को इसके लिए तैयार कर रहे हैं। इस टूरिज्म में गांव वालों की पूरी भूमिका हो, इसके लिए स्वयं सहायता समूह बनाए जा रहे हैं। राधिका बताती हैं कि लोगों को गांव में आने के लिए जागरूक करना जरूरी है। ऐसे में हम कोरोना संक्रमण के कम होने या ज्यादातर लोगों के वैक्सीनेटे हो जाने के बाद कई योजनाओं पर काम शुरू होगा। ये है योजना
- प्रस्तावित गांव में नेचर फेस्टिवल व नेचर मैराथन का आयोजन किया जाएगा। इसमें झारखंड सरकार के पर्यटन विभाग की भी मदद ली जाएगी।
- मैराथन ट्रैक या पक्की सड़क के बजाए गांव की गलियों, खेतों और पहाड़ों के बीच होगा। इससे लोगों में गांव व प्रकृति के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। लोग गांव में आकर दो से चार दिनों तक रुक सकेंगे। उनके रुकने की व्यवस्था ग्रामीणों के घर में की जाएगी।
- गांव के परिवेश में ही उन्हें रहने का मौका मिलेगा। साथ ही एक आम ग्रामीण के रूटीन को फॉलो करते हुए चार दिन गुजार सकेंगे।
- इसका अर्थ है कि कोई बनावटीपन नहीं होगा। प्रकृति और गांव के लिए गांव वालों के साथ होगा।
- यहां महिलाएं कई ऐसे उत्पाद बनाती हैं जो अक्सर घरों में इस्तेमाल होता है। मगर उन्हें बाजार नहीं मिल पाता। इको विलेज टूरिज्म से गांव में आने वाले शहर के लोग सीधे इनसे सामान खरीद सकेंगे। इससे उनकी आर्थिक स्थिति ठीक होगी। गांव वालों में भी उत्साह
विनित मुंडू बताते हैं कि इको विलेज टूरिज्म को लेकर शुरू में गांव के लोगों में सहमति बनाना एक मुश्किल काम था। फिर धीरे-धीरे उन्हें समझाया गया। सबसे मुश्किल था शहर से आए अनजान लोगों को किसी के घर में रखने के लिए राजी करना। हालांकि, लोगों के साथ बैठक कर बात करने और उनके विकास के बारे में समझाने से यह मुश्किल भी हल हो गई। अच्छी बात ये है कि हमारी कोशिश यहां पर्यटन को बढ़ावा देने और देखरेख की होगी। ग्रामीण स्वयं सहायता समूह बनाकर सबकुछ करेंगे। पर्यटकों के लिए क्या होगी व्यवस्था
पर्यटकों को ग्रामीण परिवेश में रहना होगा। वर्तमान में मोबाइल और इंटरनेट सेवा लोगों की लाइफलाइन बन गई है। मगर ये मानसिक परेशानी का कारण भी है। गांव में इस परेशानी से आप दूर रहेंगे। हालांकि, अपने घर परिवार से संपर्क करने की पूरी व्यवस्था होगी। पर्यटक ग्रामीणों के बनाए खाद्य उत्पाद, हैंडीक्राफ्ट और वन उत्पाद की खरीदारी कर सकेंगे। उम्मीद है कि केवल झारखंड ही नहीं, दूसरे राज्यों से भी पर्यटक यहां की खूबसूरत वादियों और कला संस्कृति का आनंद उठाएंगे।