Online Education: पापा अब नहीं कहते, मोबाइल लिया तो होगी पिटाई
Online Education ऑनलाइन क्लास होने से अचानक से स्मार्टफोन की बिक्री भी बढ़ गई है। पैरेंट्स की सोच भी बदल गई है। पापा अब कहते हैं कि मोबाइल से अपनी पढ़ाई करो। अब सब कुछ डिजिटल होने से किताबों का रूप बदल गया है।
लोहरदगा, [राकेश कुमार सिन्हा]। चौक, ब्लैकबोर्ड, रबर-पेंसिल, इंक पेन, बॉल पेन, जेल पेन और अब डिजिटल। यह शिक्षा का बदलता स्वरूप है। कभी आपने भी चौक और ब्लैक बोर्ड पर पढ़ाई की होगी। हाथों को पकड़कर किसी ने कागज पर पेंसिल से लिखना जरूर सिखाया होगा। कॉपी-कलम और पेंसिल से लिखना तो आज भी होता है, पर मास्टर साहब क्लास रूम में नहीं बल्कि अपने घर के डिजिटल रूम से माध्यम से पढ़ा रहे हैं। पढ़ाने का तरीका बिल्कुल बदल गया। भीड़ से अलग अपने घर में बैठकर बच्चे पढ़ते हैं और शिक्षक अपने घर से ऑनलाइन पढ़ाते हैं। सब कुछ इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप पर निर्भर रह गया है।
बदल गया बच्चों के पढ़ने का तरीका
परिस्थितियां बदली तो बच्चों के पढ़ने का तरीका भी बदल गया। पढ़ाई अब किताबों से नहीं बल्कि मोबाइल से होती है। बच्चों की लाइफ स्टाइल भी डिजिटल हो गई है। अचानक से स्मार्ट क्लास और ऑनलाइन पढ़ाई शुरू होने से स्मार्टफोन की बिक्री भी बढ़ गई है। माता-पिता विवश होकर बच्चों के लिए स्मार्टफोन खरीद रहे हैं। पता नहीं, कब तक इसी तरह से काम चलेगा। पहले तो मोबाइल छूने पर भी बच्चों को डांट मिलती थी। अब तो मोबाइल लेकर ना पढ़ाई करो तो मार मिलती है।
मोबाइल की बिक्री में हुई बढ़ोतरी
स्मार्ट क्लास, ऑनलाइन क्लास का मुद्दा जोर पकड़ते ही स्मार्टफोन की बिक्री में भी तेजी आ गई है। दुकान में हर रेंज के मोबाइल फोन उपलब्ध हैं। अभिभावकों ने तो शुरू-शुरू में सोचा कि चलो अपने मोबाइल से ही बच्चों को कुछ घंटे पढ़ने के लिए दे देते हैं। क्या पता था कि देखते ही देखते महीनों इसी तरह का दौर चलता रहेगा। स्मार्ट क्लास, ऑनलाइन क्लास अब कुछ यूं ही चलेगा।
बच्चों को मोबाइल, फोन, लैपटॉप, टैबलेट की आदत डालनी पड़ेगी। थक-हार कर अभिभावकों ने बच्चों के लिए अलग से मोबाइल फोन खरीदना शुरू कर दिया है। मोबाइल फोन की डिमांड में अचानक से बढ़ोतरी हो गई है। हालांकि ग्राहकों की मांग के अनुरूप मोबाइल फोन की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। समय ने मांग और आपूर्ति दोनों को प्रभावित किया है। बच्चों का ज्यादातर समय मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट आदि में ही गुजर रहा है।
अभिभावकों को लगने लगा है डर
मोबाइल के लगातार उपयोग की वजह से अभिभावकों को बच्चों की आंखों और मन-मस्तिष्क को लेकर डर लगने लगा है। अभिभावकों को लग रहा है कि पता नहीं बच्चों के दिमाग पर क्या असर पड़े। उनकी आंखों पर भी असर पड़ता नजर आ रहा है। परिणाम यह हो रहा है कि कम उम्र में ही बच्चों को चश्मा लग रहा है। कई-कई घंटे मोबाइल, लैपटॉप आदि में समय गुजारने की वजह से बच्चों के दिमाग और उनकी दैनिक क्रिया पर भी असर पड़ने लगा है। अभिभावक इन तमाम परिस्थितियों को लेकर चिंतित हैं।