अखंड सौभाग्य के लिए एक पखवारे तक नवविवाहिताएं रखती हैं व्रत
एक पखवारे तक चलने वाला मधुश्रावणी व्रत का बुधवार को समापन हो जाएगा।
जासं रांची : एक पखवारे तक चलने वाला मधुश्रावणी व्रत का बुधवार को समापन हो जाएगा। मधुश्रावणी मिथिलांचल का प्रमुख लोक पर्व है। सुहाग की सुरक्षा एवं सुखमय दांपत्य जीवन के लिए नवविवाहिताएं एक पखवारे तक पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं। खासबात ये है कि पूजा पंडित द्वारा नहीं बल्कि घर की बुजुर्ग महिला कराती हैं। शिव-पार्वती के साथ नागदेव की कथा सुनाती हैं।
मिथिलानी समूह की निशा झा बताती हैं कि मधुश्रावणी पर्व मिथिला की नव विवाहिताओं के लिए होता है। उनके लिए ये एक प्रकार से साधना है। नवविवाहिता एक पखवारे तक चलने वाले इस व्रत में सात्विक जीवन व्यतीत करती हैं। बिना नमक का खाना खाती हैं। जमीन पर सोती हैं। झाड़ू नहीं छूती हैं। बहुत ही नियम से रहना पड़ता है। नवविवाहिताएं अपनी सखी-सहेलियों के साथ बगीचे में फूल तोड़ने जाती हैं। पूजा का समापन टेमी (रूई की बाती) दागने से समाप्त होती है। ससुराल से आई रूई की बाती से नवविवाहिता के पांव पर टेमी दागी जाती हैं। ये रस्म एक प्रकार की अग्निपरीक्षा के समान होती है।
इस साधना में प्रतिदिन सुबह में स्नान ध्यान कर के नवविवाहिता बिशहरा यानि नाग वंश की पूजा और मां गौरी की पूजा अर्चना करती है। फिर गीत नाद होता है और कथा सुनती है। इस पूरे पर्व के दौरान एक पखवारे तक की अलग-अलग कथाएं हैं। इसमें भाग लेने के लिए घर के साथ आस पड़ोस की महिलाएं भी आती हैं। उसके बाद शाम को अपनी सखी सहेलियों के साथ फूल लोढ़ने जाती है। इस बासी फूल से ही मां गौरी की पूजा होती है। एक पखवारे तक यही क्रिया चलती रहती है। इसमें विवाहिता के साथ-साथ पूरे परिवार का कपड़ा, मिठाई, खाजा, लड्डू, केला, दही आदि ससुराल से भेजा जाता है। ये सामान मधुश्रावणी के दिन सभी के बीच बांटा जाता है और खिलाया जाता है।
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क्या है पौराणिक महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार नाग देवता और मां गौरी की पूजा करने वाली महिलाएं जीवनभर सुहागिन बनी रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि आदिकाल में कुरूप्रदेश के राजा को तपस्या से प्राप्त अल्पायु पुत्र चिरायु भी अपनी पत्नी मंगलागौरी की नाग पूजा से दीर्घायु होने में सफल हुए थे। अपने पुत्र के दीर्घायु होने से प्रसन्न राजा ने इसे राजकीय पूजा का स्थान दिया था। इस पर्व का मिथिला में विशेष महत्व है। हरियाली तीज आज, बाजार में महकी सौंधी घेवर
हरियाली तीज का व्रत बुधवार को रखा जाएगा। हिदू पंचांग के मुताबि़क हर वर्ष श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का व्रत रखा जाता है। हरियाली तीज का पर्व महिलाओं के सबसे प्रिय पर्वों में से एक है। इस दिन व्रत रखकर सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। हरियाली तीज पर महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। इसके साथ ही इस पर्व पर घेवर की खास मांग रहती है। इसे पूजा में भगवान शिव-पार्वती को अर्पित किया जाता है।
हरियाली तीज पर महिलाएं सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करके मायके से आए हुए वस्त्र पहनती हैं। इस पर्व में सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है। पूजा शुरू करने से पहले एक चौकी पर मिट्टी में गंगा जल मिलाकर शिवलिग, भगवान गणेश, माता पार्वती की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके साथ ही एक थाली में 16 श्रृंगार सुहाग की सामग्री माता पार्वती को अर्पित कर पूजा शुरू की जाती है। इसके बाद भगवान शिव को अक्षत, धूप, दीप, गंधक आदि चढ़ाया जाता है। दोनों की फल और मिठाई की भोग लगाई जाती है और आरती की जाती है।
हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 अगस्त को शाम 6 बजकर 06 मिनट से 11 अगस्त दिन बुधवार को शाम 4 बजकर 54 मिनट तक है। हरियाली तीज व्रत की पूजा का समय 11 अगस्त को सुबह 4.25 बजे से लेकर 5.17 बजे तक है जबकि दूसरा मुहूर्त दोपहर 2.30 बजे से 3.07 बजे तक है।