इस पर्व में नवविवाहिताएं बासी फूल से करती हैं मां गौरी और नाग की पूजा, जानें विधि व महत्व
Madhushravani Jharkhand Hindi News इस पर्व में बहुत ही नियम से रहना पड़ता है। नवविवाहिताएं लगातार 15 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में सात्विक जीवन व्यतीत करती हैं। बिना नमक का खाना खाती है। जमीन पर सोती है।
रांची, जासं। मिथिला के लोकपर्व मधुश्रावणी की शुरुआत हो चुकी है। पति की लंबी आयु के लिए किए जाने वाले इस पर्व की शुरुआत 28 जुलाई से हुई है। इसकी समाप्ति 11 अगस्त को तीज के दिन होगी। मिथिलानी समूह की निशा झा बताती हैं कि मधुश्रावणी पर्व मिथिला की नवविवाहिताओं के लिए होती है। उनके लिए यह एक प्रकार से साधना है। नवविवाहिता लगातार 15 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में सात्विक जीवन व्यतीत करती है। बिना नमक का खाना खाती है। जमीन पर सोती है। झाड़ू नहीं छूती है।
बहुत ही नियम से रहना पड़ता है। मिथिलांचल की पुष्पांजलि बताती हैं कि इस साधना में प्रति दिन सुबह में स्नान ध्यान कर नवविवाहिता बिशहरा यानि नाग वंश की पूजा और मां गौरी की पूजा अर्चना करती है। फिर गीत नाद होता है और कथा सुनती है। इस पूरे पर्व के दौरान 15 दिनों की अलग-अलग कथाएं हैं। इसमें भाग लेने के लिए घर के साथ आस-पड़ोस की महिलाएं भी आती हैं। उसके बाद शाम को अपनी सखी सहेलियों के साथ फूल लोढ़ने जाती हैं। इस बासी फूल से ही मां गौरी की पूजा होती है। 15 दिनों तक यही क्रिया चलती रहती है।
ससुराल की सामग्री से होती है पूजा
यह पर्व नव विवाहिता अपने मायके में मनाती है। इस पर्व के लिए ससुराल से सामान आता है। इसमें विवाहिता के साथ-साथ पूरे परिवार का कपड़ा, मिठाई, खाजा, लड्डू, केला, दही आदि होता है। यह सामान मधुश्रावणी के दिन सभी के बीच बांटा जाता है और खिलाया जाता है।
क्या है पौराणिक महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार नाग देवता और मां गौरी की पूजा करने वाली महिलाएं जीवनभर सुहागिन बनी रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि आदिकाल में कुरूप्रदेश के राजा को तपस्या से प्राप्त अल्पायु पुत्र चिरायु भी अपनी पत्नी मंगलागौरी की नाग पूजा से दीर्घायु होने में सफल हुए थे। अपने पुत्र के दीर्घायु होने से प्रसन्न राजा ने इसे राजकीय पूजा का स्थान दिया था। इस पर्व का मिथिला में विशेष महत्व है।