राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार से सम्‍मानित शिक्षक मनोज बोले- बच्चे पढ़-लिखकर कुछ हासिल करें, यही गुरु दक्षिणा

National Teachers Award Jharkhand Hindi News रांची के नेपाल हाउस में शिक्षक दिवस पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हाथों आनलाइन सम्मानित होने के बाद मनोज कुमार सिंह ने कहा कि दूसरे शिक्षक निस्वार्थ भाव से बच्चों के लिए काम करते रहें।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Sun, 05 Sep 2021 09:43 PM (IST) Updated:Sun, 05 Sep 2021 09:46 PM (IST)
राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार से सम्‍मानित शिक्षक मनोज बोले- बच्चे पढ़-लिखकर कुछ हासिल करें, यही गुरु दक्षिणा
National Teachers Award, Jharkhand Hindi News शिक्षक दिवस पर मनोज राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हाथों आनलाइन सम्मानित हुए।

रांची, जासं। शिक्षक दिवस पर पूर्वी सिंहभूम के जमशेदपुर स्थित हिंदुस्तान मित्रमंडल मिडिल स्कूल के शिक्षक मनोज कुमार सिंह को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कोविड काल में बच्चों को इनोवेटिव शिक्षा देने के लिए सम्मानित किया। यह सम्मान उन्होंने रांची के नेपाल हाउस में आनलाइन ग्रहण किया। कार्यक्रम के बाद मनोज कुमार सिंह ने कहा कि उनके लिए सबसे बड़ी गुरु दक्षिणा यह है कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर कुछ हासिल करें। यह उनके लिए गर्व का विषय है कि देश के प्रथम नागरिक के हाथों सम्मानित होने का मौका मिला है।

कहा कि मुझे खुशी है कि मेरे कारण राज्य, जिला और स्कूल का नाम राष्ट्रीय पटल पर आया है। दूसरे शिक्षकों से अपील है कि जो बच्चों के लिए करते हैं, उसे नि:स्वार्थ भाव से करते रहें। इससे बच्चों का विकास होता है। जब बच्चे बेहतर करेंगे तो उससे ही हमारा नाम होता है। उनके सफल होने का सारा श्रेय शिक्षक को ही मिलता है।

शिक्षकों को उनके कर्तव्य की याद दिलाई

मनोज कुमार ने बताया कि राष्ट्रपति ने देश के 44 शिक्षकों को सम्मानित किया। राष्ट्रपति ने कहा कि यह संतोष की बात है कि हमारे देश का भविष्य ऐसे शिक्षकों के हाथ में है। उन्होंने कोरोना संक्रमण के दौरान शिक्षा के प्रसार के लिए शिक्षकों द्वारा की गई कोशिशों की प्रशंसा की। उन्होंने अपने संबोधन में शिक्षकों को उनके कर्तव्यों की याद दिलाई। कहा कि हमें बच्चों के भविष्य के लिए काम करना है। इसी से शिक्षकों का मान बढ़ सकता है।

मनोज ने आकृतियां बनाकर बच्चों को पढ़ाया

मनोज कुमार ने बताया कि उन्होंने शिक्षक के रूप में सेवा देना 1994 से शुरू किया। इस दौरान उनकी ज्यादातर पोस्टिंग गांव के इलाके में रही। बच्चे पाठ नहीं समझ पाते थे। ऐसे में उन्होंने रस्सी के सहारे ज्यामिति की शिक्षा दी। आकृतियां बनाकर उन्हें समझाया। बाजार ले जाकर पैसों के लेन-देन और छोटे-छोटे खिलौने से उन्हें पाठ समझाया। इसका असर हुआ कि बच्चों को सभी पाठ समझ में आने लगे।

प्रकृति की प्रयोगशाला में बच्चे आसानी से पाठ को बिना रट्टा मारे समझ रहे थे। इसके साथ ही, कोरोना संक्रमण काल में बच्चे आनलाइन शिक्षा में दिलचस्पी नहीं ले रहे थे। ऐसे में उन्होंने खिलौना आधारित पैडागोजी अपनाया। घर में पड़े वेस्ट मैटेरियल से खिलौने बनाकर पढ़ाया। बच्चों को लगा कि मनोरंजन हो रहा है, लेकिन इसी से उन्होंने पाठ भी समझ लिया। ट्वाय बेस पैडागोजी का इस्तेमाल किसी भी वर्ग के बच्चों के लिए किया जा सकता है।

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