अपनों के बीच पहुंचे मजदूरों की आंखों से छलके आंसू, कहा, फिर न जाएंगे परदेस

उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के मुंडेरा गांव में ईंट भट्ठे से मुक्त कराए मजदूर अपने गांव पहुंचे।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 08:01 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 08:01 AM (IST)
अपनों के बीच पहुंचे मजदूरों की आंखों से छलके आंसू, कहा, फिर न जाएंगे परदेस
अपनों के बीच पहुंचे मजदूरों की आंखों से छलके आंसू, कहा, फिर न जाएंगे परदेस

प्रदीप मिश्रा, चान्हो : उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के मुंडेरा गांव में ईंट भट्ठे से मुक्त कराए गए श्रमिकों का जत्था गुरुवार को रांची पहुंचा। गांव में परिवार के लोग पलकें बिछाए अपनों का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही यह मजदूर गांव की सीमा में दाखिल हुए, परिवार के लोग उनकी ओर दौड़ पड़े। गले से लगाया। आंखों में बस आंसू थे। अपनों से दूर जाने की बेबसी और अफसोस एक साथ आंखों से निकल रहा था। मुंह से निकला- फिर परदेस न जाएंगे। परिवार के लोगों ने अपने परिजनों को असहनीय पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व श्रम विभाग प्रवासी नियंत्रण कोषांग एवं ़िफया फाउंडेशन के प्रति आभार व्यक्त किया। विधायक बंधु तिर्की के प्रति अपनी कृतज्ञता जताई। चान्हो प्रखंड के अलग-अलग गांव में सकुशल पहुंचे मजदूरों ने अपनी अलग-अलग कहानी बयां की। अधिकतर ने बताया कि वह जनवरी माह में रोजगार की तलाश में यूपी गए थे। करीब छह माह बाद घर वापसी पर प्रखंड के टांगर, सोनचीपी, लुंडरी, सिलागाईं व चोड़ा गांव में उत्साह का माहौल रहा। परिवार के साथ-साथ दोस्त, यार, सहेलियां और रिश्तेदार तक खुशी के पल में शामिल हुए। टांगर गांव निवासी 27 वर्षीय मजदूर शीबा उरांव अपनी पत्नी व चार छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर ईंट भट्ठे में मजदूरी करने गए थे। परदेस पहुंचकर वह ईंट भट्टा मालिक की मर्जी के गुलाम हो गए। बताया कि उन्हें दस हजार रुपये मासिक के साथ ईंट ढुलाई के बदले प्रतिदिन 250 रुपये देने का वादा कर ले जाया गया था। भट्ठे पर पहुंचने के बाद उनका आधार कार्ड, वोटर आइडी जब्त कर लिया गया। वादे के विपरीत काफी कम मजदूरी दी गई। आवाज उठाने पर भट्ठा मालिक ने वह भी रोक दी। खाने-पीने के लाले पड़ गए। किसी तरह वह इस मुश्किल से बाहर निकले। कहा कि अब वह नौकरी की तलाश में कहीं और नहीं जाएंगे। खेती और पशुपालन से ही जिंदगी की गाड़ी खींचेंगे। सोनचिपि गांव में पहुंचे मजदूर प्रवीण उरांव और पत्नी सालो देवी ने बताया कि लोहरदगा के भंडरा प्रखंड की दो महिलाएं साथ काम करने के लिए गई थी। गत 19 जून से वह गायब हो गईं। नहीं बता सकते कि उनके साथ क्या हुआ। वेतन मांगने पर अक्सर उनके साथ मारपीट की जाती थी। किसी तरह से जान बचाकर घर वापस लौट सके हैं। सोनचिपी गांव के मजदूर पंचू उरांव अपनी पत्नी व एक तीन वर्ष के बच्चे के साथ वापस लौटे हैं। बेटे की वापसी का इंतजार कर रहीं पंचू की मां मंगी उराइन का रो-रो कर बुरा हाल था। फोन पर बहू ने पूरी कहानी बयां की। इसके बाद मां ने मदद के लिए लोगों से फरियाद की। बेटे, बहू और पोते की सकुशल घर वापसी के बाद मां को सारे जहां की खुशियां मिल गई। बेटे से वादा लिया है कि अब वह गांव व घर छोड़कर नहीं जाएगा।

-------------------------------------

मौर्या एक्सप्रेस ट्रेन से रांची स्टेशन लाये गए चान्हों प्रखंड के 33 आदिवासी श्रमिक और उनके नौ बच्चे

- रंग लाई 104 हेल्पलाइन नंबर की पहल, श्रमिकों के बकाया पांच लाख रुपये भी हुआ भुगतान

जागरण संवाददाता, रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पहल पर रांची स्टेशन पर चान्हों प्रखंड के 33 आदिवासी श्रमिक और उनके नौ बच्चों को श्रम विभाग के राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष और फिया फाउंडेशन के संयुक्त प्रयास से उत्तर प्रदेश के देवरिया स्थित ईंट भट्ठा से मुक्त करा लाया गया। गुरुवार की सुबह सभी श्रमिक मौर्या एक्सप्रेस ट्रेन से रांची स्टेशन लाए गए। ईंट भट्ठा में काम करनेवाले आदिवासी मजदूरों को राज्य सरकार ने मेहनताना भी दिलाया। इस मौके पर मांडर के विधायक बंधु तिर्की भी पहुंचे थे। यह लोग जिस ईट भट्टे पर काम करते थे, वहां 5 साल से भी अधिक समय से मजदूरी नहीं दी गई थी। बंधुआ मजदूर की तरह इनसे काम लिया जाता था। सरकार के संज्ञान में आने के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस और श्रम विभाग की संयुक्त पहल पर म•ादूरों को करीब सात लाख मजदूरी दिलाई गई। 104 हेल्प लाइन नंबर के माध्यम से यह पहल की गई। सभी मजदूर चान्हों के टांगर गांव के निवासी हैं।

-----------

जनवरी में काम की तलाश में पहुंचे थे उत्तर प्रदेश

ये श्रमिक जनवरी माह में अपने परिवार के साथ उत्तर प्रदेश काम की तलाश में गए थे। वहां उनकी मुलाकात एक ठेकेदार से हुई जिसने उन्हें देवरिया जिला के गांव मुंडेरा स्थित रजत ईंट भट्ठा पर काम पर लगा दिया। छह महीने काम करने के बाद भी उन्हें मेहनताना नहीं दिया गया था। श्रमिकों का ईंट भट्ठा संचालक के पास मजदूरी के मद में लगभग सात लाख रुपया बकाया था। श्रमिकों को अमानवीय परिस्थिति में रखा जा रहा था। श्रमिकों को रहने के लिए जो जगह दी गयी थी वह रहने लायक नहीं थी। खराब हालत में रहने के कारण श्रमिकों के बच्चे भी बीमार रहने लगे थे।

chat bot
आपका साथी