दोनों पक्षों को समाधान खोजने में मदद करता है मध्यस्थ: जस्टिस अपरेश कुमार सिंह
झारखंड विधिक सेवा प्राधिकार के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस अपरेश कुमार ने कहा कि दोनो पक्षों को समाधान खोजने में मदद करता है मध्यस्थ।
राज्य ब्यूरो, रांची: झारखंड विधिक सेवा प्राधिकार के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने कहा कि मध्यस्थ का कर्तव्य होता है कि वह दोनों पक्षों को समाधान खोजने में मदद करे। उसे जज बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। मध्यस्थ का कार्य उन्हें समाधान खोजने में सुविधा प्रदान करता है। इससे दोनों पक्षों को आपसी सहमति बनाने में सहूलियत होती है। जस्टिस अपरेश कुमार सिंह मध्यस्थता प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उक्त बातें कही। उन्होंने कहा कि आपसी रजामंदी से ही सुलह करना एक अच्छी सभ्यता की निशानी है। प्राचीन भारत में भी मध्यस्थता किसी न किसी रूप में मौजूद थी। इसके जरिए ही हमारे पंचायतों में निर्णय लिए जाते थे। वर्ष 1999 से सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा -89 के द्वारा मध्यस्थता को भी एडीआर के अंतर्गत कानूनी रूप दिया गया। जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने संस्कृत के श्लोक संतोषम परमं सुखम का जिक्र करते हुए कहा कि मध्यस्थता एक शांति प्राप्त करने का तरीका है। इसके जरिए अपने वादों का निबटारा कराने के बाद दोनों पक्ष सुख-शांति के साथ रहते हैं। इसमें न किसी की हार और न किसी की जीत होती है। साथ ही इसकी अपील या अन्य मुकदमा दाखिल करने की आवश्यकता भी नहीं रहती है।
इस दौरान झारखंड हाई कोर्ट के राज्यस्तरीय मध्यस्थता निगरानी समिति की सदस्य जस्टिस अनुभा रावत चौधरी ने कहा कि मध्यस्थता के जरिए मामलों को निपटाए जाने की वजह से दोनों पक्षों का समय और धन के साथ-साथ संबंधों को भी बचाती है। बता दें कि झालसा स्थित न्याय सदन में रांची के 22 अधिवक्ताओं को मध्यस्थ बनने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस दौरान झालसा के सदस्य सचिव मो शकिर, संतोष कुमार सहित अन्य लोग मौजूद रहे।