कामर्शियल टैक्स आफिसर नियुक्ति मामले में दाखिल हुई ओएमआर सीट की मूल प्रति

झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस डा. एसएन पाठक की पीठ में ओएमआर सीट दाखिल की गई।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 09:01 AM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 09:01 AM (IST)
कामर्शियल टैक्स आफिसर नियुक्ति मामले में दाखिल हुई ओएमआर सीट की मूल प्रति
कामर्शियल टैक्स आफिसर नियुक्ति मामले में दाखिल हुई ओएमआर सीट की मूल प्रति

राज्य ब्यूरो, रांची: झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस डा. एसएन पाठक की पीठ में ओएमआर सीट में संशोधन कर मूल्यांकन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद अदालत के निर्देश पर जेपीएससी की ओर से संबंधित ओएमआर सीट की मूल कापी सीलबंद लिफाफे में अदालत में दाखिल की गई। इस पर जवाब देने के लिए प्रार्थी की ओर से समय की मांग की गई। इस मामले में अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी। इस संबंध में हुलास नायक ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि कामर्शियल टैक्स आफिसर की नियुक्ति परीक्षा में प्रार्थी भी शामिल हुआ था। लेकिन जेपीएससी ने ओएमआर सीट सही से नहीं भरने पर उनके उत्तरपुस्तिका का मूल्यांकन नहीं किया। जबकि आरटीआइ से जरिए पता चला है कि एक दूसरे अभ्यर्थी संतोष कुमार द्वारा भी ओएमआर सीट भरने में गड़बड़ी की गई है। लेकिन आयोग ने उसे सफल घोषित किया है। इस मामले में जेपीएससी के अधिवक्ता संजय पिपरवाल और प्रिस कुमार सिंह ने का कहना है कि विज्ञापन में इसकी स्पष्ट जानकारी दी गई थी कि ओएमआर सीट में अनुक्रमांक और बुकलेट संख्या सही से भरनी है, नहीं तो ओएमआर जांच मशीन उसका मूल्यांकन नहीं करेगी। जहां तक संतोष कुमार की बात है, तो उन्होंने रजिस्ट्रेशन संख्या भरने में गड़बड़ी की है। इसलिए उन्हें सफल घोषित किया गया है। इस पर अदालत ने पिछली सुनवाई के दौरान संतोष कुमार की ओएमआर सीट सीलबंद लिफाफे में मांगी थी।

लेक्चरर और रीडर की प्रोन्नति मामले में सरकार से मांगा जवाब

झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डा. रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत में एकल पीठ के आदेश के खिलाफ सरकार की ओर से दाखिल अपील पर सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए समय की मांग की गई। इस पर अदालत ने सरकार को अंतिम मौका देते हुए जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। दरअसल, एकल पीठ ने मई 2017 में दुखुराम कोईरी के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों के लेक्चरर और रीडर को प्रोन्नति देने के लिए गाइडलाइन बनाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाए। इस आदेश में अदालत ने माना था कि समयबद्ध प्रोन्नति वर्ष 1998 तक थी। लेकिन राज्य सरकार ने अदालत के इस पार्ट को चुनौती देते हुए कहा है कि समयबद्ध प्रोन्नति वर्ष 1995 तक ही लागू थी। इस मामले में पूर्व में हाई कोर्ट ने सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा था, लेकिन उनकी ओर से जवाब दाखिल नहीं किया। इस पर अदालत ने सरकार को अंतिम मौका देते हुए जवाब दाखिल करने को कहा है।

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