Jharkhand: भूमि का स्वास्थ्य प्रबंधन समय की मांग, उर्वरक का सही इस्तेमाल करें किसान
Birsa Agriculture University Ranchi Jharkhand News बताया गया कि संतुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग से ही खेतों से वर्षों तक अच्छी उपज के साथ भूमि की गुणवत्ता बहाल रखी जा सकती है। वेबिनार में बेहतर उपज लेने की तकनीकों के बारे में भी बताया गया।
रांची, जासं। बीएयू यानि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय प्रसार शिक्षा निदेशालय के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), गढ़वा के द्वारा संतुलित उर्वरक व्यवहार पर राज्यस्तरीय ई-किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया। वर्चुअल माध्यम से आयोजित इस कृषक जागरूकता अभियान में प्रदेश के 60 से अधिक किसान जुड़े। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता अध्यक्ष (मृदा विभाग), बीएयू ने कहा कि फसलों की खेती में भूमि का स्वास्थ्य प्रबंधन वर्त्तमान समय की सबसे बड़ी मांग है।
संतुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग से ही खेतों से वर्षों तक अच्छी उपज के साथ भूमि की गुणवत्ता बहाल रखी जा सकती है। उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग खेतों की मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उन्होंने मिट्टी जाँच के आधार पर संतुलित मात्रा में उर्वरकों, जैविक एवं जीवाणु खादों के प्रयोग पर प्रकाश डाला। कहा कि इसके साथ ही समय-समय पर मिट्टी की जांच भी जरूर करवाते रहें। बीएयू के मुख्य वैज्ञानिक (एग्रोनोमी) डॉ. एस कर्मकार ने मक्का–गेहूं, सोयाबीन–गेहूं, धान–गेहूं फसल प्रणाली, दलहनी एवं तेलहनी फसलों जैसे– चना, मटर, मसूर, अरहर, मूंग, मूंगफली एवं सोयाबीन एवं सब्जी फसलों में संतुलित उर्वरक प्रबंधन से बेहतर उपज लेने की तकनीकों को बताया।
इसके साथ ही उन्होंने किसानों को जैविक खेती के लिए भी प्रेरित किया। ऑनलाइन कार्यक्रम में उप क्षेत्र प्रबंधक इफको, रांची चंदन कुमार ने बदलती खेती तकनीक परिवेश में उर्वरकों के महत्त्व एवं उपयोगिता की जानकारी दी। केवीके वैज्ञानिक डाॅ. सुधीर कुमार झा ने भूमि एवं पर्यावरण को हानि से बचाव में समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के अवयवों के योगदान की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राज्य में बड़े स्तर पर भूमि अपनी उपज शक्ति ज्यादा उर्वरक के इस्तेमाल से खो रही है। इसका अब किसानों के साथ कृषि विज्ञानियों को भी ध्यान रखने की जरूरत है।