पहुंचे हुए नेताजी के साथ ऐसा सुलूक ! हैरान हैं सभी... पढ़ें शहरनामा Koderma News
Jharkhand News Koderma Samachar नेताजी 20 साल पहले एक बड़े राष्ट्रीय पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। फिर दस वर्ष पूर्व जिला पर्षद का सदस्य बने। इधर सूबे के मुखिया ने हालचाल बताने का मौका दिया तो मैडमों ने मांगों की झड़ी लगा दी।
कोडरमा, [अनूप कुमार]। थानेदार साहब का नाम है अब्दुल्ला। सबकी खबर रखनेवाला अब्दुल्ला सभी का रिकाॅर्ड भी दुरुस्त रखते हैं, बिना किसी पक्षपात के। इसी कड़ी में थानेदार ने इलाके के एक जानेमाने व पुराने नेताजी की ऐसी की तैसी कर दी। उन्हें सामान्य मारपीट के मामले में इस तरह जेल भेजा, जिसे देख मंझोले कद के सारे नेता सकते में आ गए। कुख्यात अपराधियों की तरह स्लेट पर नाम, पता लिखकर सीने से लगवाया और तस्वीरें खींचकर सरेआम कर दी। नेताजी 20 साल पहले एक बड़े राष्ट्रीय पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। भले ही विधानसभा नहीं पहुंच पाए लेकिन प्रदर्शन शानदार किया। फिर दस वर्ष पूर्व जिला पर्षद के सदस्य बने। अध्यक्ष का भी चुनाव लड़ा। वोटिंग में टाई हुए, लेकिन सिक्का उछला तो किस्मत ने साथ नहीं दिया। पिछली दफा नेताजी मुखिया का चुनाव लड़ गए। लेकिन इसबार किस्मत दगा दे गई। अब इतने पहुंचे हुए नेताजी के साथ ऐसा सुलूक...! वाकई हैरान करनेवाला है।
मांगने में हर्ज क्या है
जब राजनीति मांग कर ही चलानी है तो मांगने में क्या हर्ज है। वैसे भी कोरोना ने राजनीति पर लाॅकडाउन लगा दिया है। डेढ़-दो वर्षों से कोई काम-धाम नहीं। हालत ऐसी कि मिलनेवालों को भी पास में फटकने का मौका नहीं। लेकिन आनेवाले दिनों में पास तो जाना ही है। इधर, फेसबुकिए भी हिसाब मांगने लगे हैं। जिनकी मैजिक के भरोसे अबतक निश्चिंत थे, वह तिलिस्म भी टूट रहा है। इसलिए कुछ काम दिखे या न दिखे, मांग तो दिखना चाहिए। सूबे के मुखिया ने हालचाल बताने का मौका दिया तो मैडमों ने मांगों की झड़ी लगा दी। गांव-गांव में अस्पताल खोलने से लेकर पेंशन, अनाज तक की मांग। गांव-गांव में ऑक्सीजन सिलेंडर से लेकर वेंटीलेटर और डॉक्टर बहाली तक की मांग। अब मांग पूरी हो या ना हो, लेकिन जनता के पास बताने के लिए रिकाॅर्ड हो ही गया।
भ्रष्टाचार का विष पीनेवाला सड़क
नाम है विशुनपुर रोड। यह सड़क जबसे पथ निर्माण वालों के कब्जे में गई है, तबसे खुद भ्रष्टाचार का विष पी रहा है, लेकिन अधिकारियों-ठेकेदारों के लिए दुधारू बना है। रोड इतना वीआइपी है कि हर वर्ष इसकी मरम्मत होती है। कभी आधे की, कभी पूरे की, कभी बीच के हिस्से की। दरअसल इसकी बुनियाद ही गलत पड़ गई थी। बालू की किल्लत थी तो क्रशर की छाई से ढाल दिया। फिर शुरू हुई मरम्मत पर मरम्मत। मरम्मत का कार्य इतना लाभदायी कि ठेकेदार ने 45 फीसद तक नीचे जाकर इसका काम ले लिए। अधिकारियों की दरियादिली भी ऐसी कि काम भले ही अधूरा रहा, लेकिन भुगतान पूरा हो गया। जेई एमबी बुक करने से कतराते रहे तो दूसरे जेई से एमबी तैयार करवा दिया। मरम्मत के नाम पर कुछ किया तो बस जगह-जगह सड़क को अलकतरा चटवा दिया।
दानवीर प्रमुख की दरियादिली
महामारी के इस दौर में अपने डोमचांच वाले प्रमुख साहब की दरियादिली के सभी कायल हैं। दिल खोलकर पीड़ितों के लिए खाद्य व अन्य जरूरत की सामग्री दान कर रहे हैं। अधिकारी पीठ थपथपा देते हैं तो इनका उत्साह भी बढ़ जाता है। दूसरी-तीसरी दफा भी सामानों की खेप लेकर पहुंच रहे हैं। पहली लहर में भी नेताजी ने दिल खोलकर पीड़ितों की मदद की थी। संकट की घड़ी में जहां बड़े-बड़े नेता अपनी मुट्ठी दबाए घरों में दुबके हैं, वहीं ये नेताजी नारायण रूप में आगे बढ़कर जरूतमंदों की सहायता कर रहे हैं। नेताजी की इस दरियादिली से कई बड़े नेता असहज महसूस कर रहे हैं। इनकी चिंता और असहज होना स्वाभाविक भी है। डोमचांच वाले नेताजी इसी तरह दान करते रहे तो बिहार वाले पप्पू यादव की तरह इनकी लोकप्रियता बढ़ जाएगी। ऐसे में उनके लिए भी अंटी ढीला करना मजबूरी हो जाएगी।