यहां आज भी हैं 80 से 90 कमरों की हवेलियां, बयां कर रहीं सुनहरे अतीत व वैभव की कहानी Koderma News
Jharkhand Latest News कोडरमा जिले में जंगल से घिरे खूबसूरत वादियों में नौ से 13 लाख रुपये में बनी ये हवेलियां कुछ जर्जर हो चुकी हैं तो कुछ आज भी वैसी ही चमक रही है।
कोडरमा, [अनूप कुमार]। कोडरमा जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर डोमचांच प्रखंड के ग्राम मसनोडीह में बनी शानदार हवेलियां इस इलाके में माइका उद्योग के सुनहरे अतीत की कहानी बयां कर रही है। यहां एक ही परिवार की लगभग एक दर्जन हवेलियां हैं। इनमें 80 से 90 कमरे हैं। इनमें कुछ खंडहर में तब्दील हो गई है, जबकि कुछ अब जीर्णशीर्ण हालत में है। दो-तीन हवेलियों की शानदार रंगाई-पुताई के बाद नया लुक दिया गया है।
सारी हवेलियां करीब 200 एकड़ के एक ही परिसर में स्थित हैं। इसमें कई आम के बगीचे भी हैं। बीच-बीच में एक दो रास्ते इन हवेलियों को एक-दूसरे से अलग करते हैं। परिसर में करीब आधा दर्जन मंदिर भी हैं जो इसी परिवार के अलग-अलग लोगों द्वारा स्थापित किए गए थे। आज भी कुछ मंदिरों की मूर्तियों से लेकर दरवाजे-खिड़की व चौखट तक चांदी के हैं। यहां बनी हवेलियों की कहानी शुरू होती है बिहार के नवादा जिला अंतर्गत बारतगढ़ एस्टेट से।
तूफानी सिंह हवेली।
इस परिवार के वंशज त्रिपुरारी सिंह बताते हैं, उनके पूर्वज धर्मनारायण सिंह बारतगढ़ एस्टेट के राजा थे। करीब दो सौ साल पहले वहां हुए दंगे के दौरान सबकुछ छोड़कर मसनोडीह चले आए थे। उस समय यह इलाका दुर्गम व जंगली था। बाद में यहीं आसपास के इलाके की जमीन को खरीदकर अपनी बसावट शुरू की। कारोबार के लिए इस क्षेत्र में बहुतायत में पाए जानेवाले माइका से जुड़े। धर्मनारायण सिंह के चार पुत्र तूफानी सिंह, गंगा सिंह, झरी सिंह और प्रयाग सिंह थे।
यह है तेरह लखा बिल्डिंग, जो अभी रंग-रोगन के बाद चकाचक है।
झरी सिंह इनके परदादा थे। त्रिपुरारी सिंह बताते हैं कि अभी कुछ हवेलियां देखरेख के अभाव में जर्जर हो गई हैं। इन एक-एक हवेलियों में 80-90 तक कमरे हैं। पूर्व के समय में जब माइका का कारोबार अपने चरम पर था, तब इससे हुई अकूत आय से हवेलियां बनाई गई थी। इन हवेलियों में परिवार के लोगों के अलावा नौकर-चाकर, माइका के मजदूरों के अलावा कारोबार से जुड़े अतिथियों के लिए अलग गेस्ट हाउस के इंतजाम थे। हवेलियों के अलग-अलग नाम हैं।
नौलखा बिल्डिंग, तेरहलखा बिल्डिंग, तूफानी सिंह बिल्डिंग जैसे नाम हैं। परिवार के लोग बताते हैं कि उस दौर में जब सीमेंट 1 रुपये बैग मिलता था, तब इन हवेलियों के निर्माण में 9 लाख व 13 लाख की लागत आई थी। इसीलिए भवनों का नाम नौलखा, तेरह लखा रखा गया। धर्मनारायण सिंह की चौथी पीढ़ी के 67 वर्षीय गिरीश सिन्हा उर्फ मोती प्रसाद सिं संत कोलंबस कॉलेज हजारीबाग से स्नातक हैं। इनके पुत्र आइआइटियन हैं और पुणे के एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत हैं।
दुर्गा मंदिर में लगा चांदी का विशाल दरवाजा व चौखट।
गिरीश सिन्हा जमीन व वन संबंधी कानूनों के अच्छे जानकार हैं। वे कहते हैं, इनके पूर्वजों ने बारतगढ़ से आने के बाद यहां रैयतों से सैकड़ों एकड़ जमीन खरीदी थी। परिवार में माइका की लगभग 50 खदानें थी, जिससे उन्नत किस्म की माइका का खनन होता था। कारोबार विदेशों तक फैला था। 1940-50 के दशक में जब झुमरीतिलैया शहर सहित पूरे जिले में कहीं बिजली नहीं थी, सबसे पहले इन हवेलियों में आपूर्ति करने के लिए इनका अपना बिजली घर था। इसमें चारकोल पानी आदि से बिजली का निर्माण होता था।
मंदिर में स्थापित विभिन्न देवी-देवताओं की रत्न जड़ित मूर्तियां। यह पत्थर काफी दुर्लभ व महंगे किस्म के हैं।
आज भी बिजलीघर के अवशेष मौजूद हैं। गिरीश सिन्हा बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ही परिवार की सैकड़ों एकड़ जमीन को वनभूमि में अधिसूचित कर दिया गया। इससे उक्त जमीन पर उनके पूर्वजों की दर्जनों माइका खदानें बंद हो गई। आजादी के बाद भी भारत सरकार के द्वारा लाए गए वन अधिनियमों की वजह से जंगली क्षेत्र में स्थित परिवार के लोगों की माइका की खदानें बंद होती चली गई। धीरे-धीरे परिवार के लोग माइका के धंधे से विमुख होते चले गए और कारोबार सिमटता गया। अब परिवार के कुछ लोग पत्थर की खदानें चलाते हैं। वहीं नई पीढ़ी के बच्चे पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। अधिकतर बच्चे बड़े शहरों में रहकर अच्छी पढ़ाई कर रहे हैं।
एक और पुरानी हवेली जो खंडहर में तब्दील हो चुकी है।
राजनीतिक हस्तियों से था गहरा नाता
मसनोडीह स्थित धर्मनारायण सिंह परिवार की अकूत संपत्ति व राजशाही वैभव की चर्चा एक समय पूरे एककीकृत बिहार में थी। उस समय बिहार कांग्रेस की बड़ी हस्तियों में इस परिवार के नजदीकी व पारिवारिक संबंध थे। गिरीश सिन्हा, कपिलदेव नारायण सिंह, त्रिपुरारी सिंह आदि कहते हैं, आजादी के बाद बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने श्रीकृष्ण सिंह से इनके पारिवारिक संबंध थे।
मुख्यमंत्री बनने के बाद अक्सर मसनोडीह उनके आवास में आना होता था। इस तरह के संबंध एलपी शाही, बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रामाश्रय प्रसाद सिंह से थे। इस परिवार का जैसा वैभव था, वैसे ही उस दौर के लोग कला व संस्कृति के भी शौकीन थे। सुरैया, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसे कलाकार कई बार यहां कार्यक्रम के लिए आए हैं।