कुर्सी हाथ से खिसकती है, तो दिमाग नरभसा जाता है... पढ़ें राजनीति की अंदरुनी खबर

Jharkhand Politics कुर्सी हाथ से खिसकती है तो दिमाग नरभसा जाता है। उछलकूद मचाकर लाल बत्ती का सुख पा चुके नेताजी इसी फेर में बड़ी गलती कर बैठे हैं। फिसली जुबान के कारण अगर बड़े घर जाने की नौबत आ गई तो इनके चाहने वालों पर बिजली गिरेगी सर्दी में।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Sun, 24 Jan 2021 05:54 AM (IST) Updated:Mon, 25 Jan 2021 09:36 AM (IST)
कुर्सी हाथ से खिसकती है, तो दिमाग नरभसा जाता है... पढ़ें राजनीति की अंदरुनी खबर
Jharkhand Politics जामताड़ा के ठगों की हौसला आफजाई के बाद अब खाकी वाले इनके पीछे पड़ गए हैं दाना-पानी लेकर।

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। झारखंड की सियासत में उलटफेर चलता रहता है। वार-पलटवार भी खूब होते हैं। जिसको मौका मिले वही चढ़ बैठता है। यहां पढ़ें राज्‍य ब्‍यूरो के प्रभारी प्रदीप सिंह के साथ सत्ता के गलियारे से... 

उड़ा दी गिल्ली

सेहत वाले मंत्री जी को हल्के में लेने वाले भूल जाते हैं कि वे गमले में नहीं पले-बढ़े हैं। बहुत हिचकोले खाए हैं, तो यह मंजिल मिली है। अब भी काफी लंबा सफर करना है, लेकिन हड़बड़ी में परिणाम की आशा करने वाले अक्सर उनसे धोखा खा जाते हैं। दरअसल, राजनीतिक पिच पर धुरंधरों की गिल्ली उड़ाने वाले क्रिकेट की पिच पर भी कमाल की कलाकारी दिखाते हैं। पहले ही गेंद में ऐसे ही सूरमा को ढेर नहीं कर दिया कि सीधे पैवेलियन लौटना पड़ा। साहब को भी ऐसी ही गलतफहमी थी। वे भी इसी के शिकार हुए। दरअसल, राजनीति और क्रिकेट को करीब से जानने वाले बखूबी समझते हैं कि जरा सी गेंद से नजर हटी और बल्ला हवा में घूमा कि क्लीन बोल्ड तय है। इसी फेर में हंसते-मुस्कराते साहब की विदाई भी हो गई और ज्यादा हो-हल्ला भी नहीं मचा। इसे ही कहते हैं मुकद्दर का सिकंदर। 

तारे जमीन पर

जमीन पर लंबे वक्त तक टिके रहने वाले साहब अब बेदखल हो गए हैं। वैसे भी इन्होंने लंबी पारी खेली, लेकिन इन दिनों दुश्मनों की कुछ ज्यादा ही नजर थी इनकी भोली मुस्कराहट पर। वैसे भी झारखंड में इसके सिवा बचा भी क्या है। जमीन के फेर में न जाने कितने आए-गए। वैसे भी हुजूर तो एक जरिया थे हुक्म पर अमल करने का। जब जैसा आदेश मिला, वैसा आदेश सुनाया। वैसे, जमीन के इस खेल में ऐसा कोई नहीं बचा, जो डुबकी लगाने से चूक गया हो। जमीन का मायाजाल ही कुछ ऐसा होता है। इसके आकर्षण से शायद ही कोई बचे। एक प्रजाति हमेशा तत्पर रहती है सेवा करने के लिए। इसके फेर में बड़े-बड़े सूरमा भी मात खा चुके हैं। कुछ इस फेर में भी लगे हैं कि दुश्मनों की नजर उनतक नहीं जाए। वरना, जमीन के जंजाल में उनकी कुर्सी भी डगमगाने का पूरा खतरा है। 

सबका नंबर आएगा

कुर्सी हाथ से खिसकती है, तो दिमाग नरभसा जाता है। उछलकूद मचाकर लाल बत्ती का सुख पा चुके नेताजी इसी फेर में बड़ी गलती कर बैठे हैं। फिसली जुबान के कारण अगर बड़े घर जाने की नौबत आ गई, तो इनके चाहने वालों पर बिजली गिरेगी सर्दी में। वैसे, हुजूर का दिल इन दिनों साइबर अपराधियों के लिए धड़क रहा है। बस इसी रौ में कर गए जामताड़ा के ठगों की हौसला आफजाई। अब खाकी वाले इनके पीछे पड़ गए हैं दाना-पानी लेकर। जैसे कमान से छूटा तीर नहीं लौटता, वैसे ही अब मुंह से निकली बात तो वापस ली नहीं जा सकती, तो बेचारे जगह-जगह सफाई देते घूम रहे हैं। अब इसकी तफ्तीश पूरी हो जाए, तो बात बने। वैसे भी खराब वक्त में बातों का बतंगड़ कुछ ज्यादा ही बन जाता है। हुजूर इस फेर से बाहर निकल जाएं, तो ऐसी बातें फिर दोहराने से तौबा कर लेंगे। 

खतरों के खिलाड़ी

साहब ने कभी किसी से ना तो जोर-जबरदस्ती की, और ना ही जोर-जबरदस्ती बर्दाश्त की। अपने इसी मिजाज के कारण कभी चढ़े नहीं सियासत की नजर में। जब मौका मिला, तो केवल डंडा घुमाया। अब जब समय बदला, तो इन्हें ठिकाने लगाने वाले ही अब इनके निशाने पर आ गए हैं। सिंघम का माथा भी घूम रहा है। सामने वाला थरथर कांप रहा है इनके कोप से। एक ने तो खुद को प्रस्तुत कर दिया है इनके सामने। कभी इनका जलवा ऐसा था कि समानांतर सरकार थे हुजूर। अच्छे-अच्छों के होश उड़ जाते थे इनका नाम सुनकर। लेकिन, इनकी अब ऐसी मिट्टीपलीद हुई है कि तड़ीपार हैं महीनों से। अब ना तो उगलते बन रहा है, और ना निगलते। वैसे, पीछा छुड़ाने की कोशिश का कोई खास फायदा होता दिख नहीं रहा है। सही भी है, बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं कि करनी का फल धरती पर ही भुगतना पड़ता है।

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