Jharkhand High School Teachers News: नियोजन नीति रद होने से 8 हजार हाई स्‍कूल शिक्षकों की जाएगी नौकरी, जानें पूरा मामला

Jharkhand High School Teachers News झारखंड के 13 अधिसूचित जिलों में नियोजन नीति के आधार पर की गईं नियुक्तियां रद होंगी। इसके लिए फिर से नियुक्ति प्रक्रिया होगी। राज्‍य के 11 गैर अनुसूचित जिलों में जारी नियुक्ति प्रक्रिया बरकरार रहेगी।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Mon, 21 Sep 2020 11:55 PM (IST) Updated:Wed, 23 Sep 2020 09:09 AM (IST)
Jharkhand High School Teachers News: नियोजन नीति रद होने से 8 हजार हाई स्‍कूल शिक्षकों की जाएगी नौकरी, जानें पूरा मामला
एक स्‍कूल में पढ़ाते महिला शिक्षक की फाइल फोटो।

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। Jharkhand Planning Policy News झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की नियोजन नीति को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद कर दिया है। अदालत के इस आदेश का सीधा असर अभी 13 अधिसूचित जिलों में 2018-19 में नियुक्त हुए 8423 हाईस्कूल शिक्षकों पर पड़ेगा। इन सभी शिक्षकों की नौकरी चली जाएगी। नियोजन नीति रद होने से आने वाले दिनों में राज्य में 22 हजार पदों पर होने वाली नियुक्ति रुक जाएगी। शिक्षकों और पुलिसकर्मियों की बहाली प्रक्रिया पाइप लाइन में थी।

इसी तरह नई नियोजन नीति बनने तक तृतीय और चतुर्थ वर्ग की सभी नियुक्तियां प्रभावित होंगी। सोमवार को जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस दीपक रोशन की पीठ ने सर्वसम्मति से सरकार की नियोजन नीति पर फैसला सुनाते हुए कहा कि उक्त नीति संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं हैं।

अदालत ने कहा कि इस नीति के कारण 13 अधिसूचित जिलों के सभी पद आरक्षित हो जा रहे हैं, जबकि संविधान के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी हाल में कहीं भी नौकरियों में शत-प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जा सकता, इसलिए राज्य की नियोजन नीति से संबंधित अधिसूचना को निरस्त किया जाता है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में इस नीति के तहत हुई नियुक्ति प्रक्रिया को रद करते हुए दोबारा विज्ञापन निकाल कर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया।

अदालत ने इस अवधि में 11 गैर अनुसूचित जिलों में हुई नियुक्ति प्रक्रिया और नियुक्तियों को बरकरार रखा है। इसके पीछे अदालत का तर्क है कि प्रार्थी ने नियोजन नीति और इसके तहत जारी विज्ञापन की शर्त को ही हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

गैर अधिसूचित जिलों में होने वाली नियुक्ति को किसी ने भी चुनौती नहीं दी है। इसलिए उसे रद नहीं किया जा रहा। इस मामले में सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने 21 अगस्त 2020 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

आरक्षण की अधिकतम सीमा है 50 प्रतिशत

अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी और आंध्रप्रदेश के चेबरू लीला प्रसाद राव के मामले में कहा है कि किसी भी हाल में शत-प्रतिशत पद आरक्षित नहीं किए जा सकते हैं। अदालत ने माना है कि अधिकतम 50 फीसद आरक्षण हो सकता है। ऐसे में नियोजन नीति के चलते 13 अधिसूचित जिलों में सभी पद 100 फीसद आरक्षित हो गए हैं, जो असंवैधानिक है। राज्य सरकार को इस तरह की नीति बनाने का अधिकार नहीं है। इसलिए नियोजन नीति को निरस्त किया जाता है।

पलामू की सोनी कुमारी ने दाखिल की थी याचिका

पलामू की रहने वाली सोनी कुमारी ने नियोजन नीति और अधिसूचित जिलों में हुई हाईस्कूल शिक्षकों की नियुक्ति को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। प्रार्थी के अधिवक्ता ललित कुमार ङ्क्षसह ने अदालत को बताया कि सरकार की यह नियोजन नीति सही नहीं है और यह समानता के अधिकार का हनन है। सरकार के इस फैसले से किसी खास जिले के लोगों के लिए ही सारे पद आरक्षित हो गए हैं।

संविधान के अनुसार किसी भी पद को शत- प्रतिशत आरक्षित नहीं किया जा सकता। सरकार की इस नीति से इस राज्य के लोगों को ही अपने राज्य में नौकरी के अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है। प्रार्थी ने अदालत को बताया था कि वह गैर अनुसूचित जिले की रहने वाली है और 2017 में शुरू हुई हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति परीक्षा में उसने अनुसूचित जिले में शिक्षक के पद के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उनका आवेदन रद कर दिया गया।

जुलाई 2016 में बनी थी स्थानीय नीति

झारखंड सरकार ने 14 जुलाई  2016 को नियोजन नीति की अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत 13 जिलों को अधिसूचित व 11 को गैर अधिसूचित जिला घोषित किया गया। इस नीति के तहत राज्य में तृतीय और चतुर्थवर्गीय पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन (विज्ञापन संख्या 21-2016) निकाला गया।

इसमें 13 अधिसूचित जिलों की नौकरी में स्थानीयता और जन्म स्थान के आधार पर केवल वहीं के लोगों ही नियुक्त करने का प्रावधान किया गया था। इस कारण गैर अनुसूचित 11 जिलों के अभ्यर्थी इन जिलों में नियुक्ति के लिए आवेदन भी नहीं कर सकते थे। दूसरी ओर गैर अनुसूचित जिले में सभी जिलों के लोग आवेदन कर सकते थे। सरकार ने 10 साल के लिए यह प्रावधान किया था।

तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नियुक्ति प्रक्रिया भी इसी आधार पर हुई थी रद

राज्य सरकार की नियोजन नीति के आधार पर तृतीय और चतुर्थ वर्ग के लिए नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई थी। सोनी कुमारी ने उसे भी चुनौती देते हुए कहा कि जब तक शिक्षक नियुक्ति के मामले में अदालत का आदेश नहीं आ जाता, तब तक नियुक्ति नहीं की जा सकती।

इसके बाद अदालत ने सितंबर 2019 को तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी और नियुक्ति परीक्षा में शामिल सभी लोगों को नोटिस जारी कर प्रतिवादी बनाया था। इसके बाद कई लोग प्रतिवादी बने और सरकार की नीति को सही ठहराया था। बाद में एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने गैर अनुसूचित जिलों में शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दे दी थी।

परिस्थिति के अनुसार बनी नीति : सरकार

सरकार ने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया था कि राज्य की वर्तमान स्थिति और परिस्थिति को देखते हुए सरकार ने यह नीति बनाई है। स्थानीय लोगों की उन्नति के साथ-साथ रोजगार देने के लिए यह अस्थाई व्यवस्था की गई है जो 10 साल के लिए ही है। 10 साल बाद यह नीति स्वत: समाप्त हो जाएगी। सरकार ने कहा था कि कई राज्यों में भी इस तरह का प्रावधान किया गया है। इसलिए यह नीति संवैधानिक है और इसे गलत करार नहीं दिया जा सकता।

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